कश्मीर घाटी के कई किसान देश के दूसरे किसानों की ही तरह धान की खेती करते हैं. धान यहां के कई परिवारों के लिए महत्वपूर्ण फसल है. पिछले दिनों यहां पर एक ऐसी स्टडी हुई है जो बाकी किसानों के लिए भी बड़ा उदाहरण बन सकती है. रिसर्च में साबित हुआ है कि घाटी के किसान अगर सोच-समझकर उर्वरकों का प्रयोग करें तो उपज में इजाफा होगा. सिर्फ इतना ही नहीं किसानों का मुनाफा भी कई गुना तक बढ़ सकता है.
कश्मीर घाटी में किए गए एक नई रिसर्च से पता चला है कि नाइट्रोजन और सल्फर उर्वरकों की अतिरिक्त खुराक के समझदारी भरे उपयोग से चावल की वृद्धि और उपज में खासा सुधार किया जा सकता है. करंट रिसर्च इंटरनेशनल के रिकॉर्ड के जुलाई 2025 वर्जन में आई इस रिसर्च का नेतृत्व शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कश्मीर (SKUAST-K) की एक टीम ने किया था. इसमें घाटी भर के विभिन्न अनुसंधान केंद्रों के दस वैज्ञानिकों ने सहयोग किया था.
कश्मीर रोजगार 2021 खरीफ सीजन के दौरान फसल रिसर्च खेत पर किया गया यह क्षेत्र प्रयोग धान की खेती में एक सतत समस्या, मिट्टी में पोषक तत्वों के असंतुलन, विशेष तौर पर सल्फर जैसे सेकेंडरी पोषक तत्वों की कमी, को दूर करने के लिए डिजाइन किया गया था. हाल के वर्षों में उर्वरकों का प्रयोग तेजी से बढ़ा है.
रिसर्चर्स ने लोकप्रिय चावल किस्म 'शालीमार चावल-4' पर नाइट्रोजन और सल्फर के विभिन्न संयोजनों और खुराकों को टेस्ट किया. साथ ही पौधों की वृद्धि, उपज विशेषताओं और आर्थिक लाभ पर उनके प्रभाव को भी देखा गया. नतीजों से पता चलता है कि 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन के साथ 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर सल्फर का प्रयोग करने से बेस्ट नतीजे मिलते हैं. इससे न सिर्फ फसल की वृद्धि और पुष्पगुच्छों की संख्या में वृद्धि हुई, बल्कि टेस्ट किए गए ट्रीटमेंट्स में 2.23 का सबसे ज्यादा फायदा-लागत अनुपात भी हासिल हुआ.
निष्कर्ष बताते हैं कि इस संयोजन से तय नाइट्रोजन की मात्रा 120 किलोग्राम से घटकर 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रह जाती है. इससे नाइट्रोजन के उपयोग में 33 प्रतिशत की बचत होती है और साथ ही उपज और लाभप्रदता को बनाए रखा जा सकता है या उसमें सुधार भी किया जा सकता है.
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