धान की खेती का समय नजदीक आ चुका है. यह खरीफ सीजन की प्रमुख फसल है. यह सर्वाधिक क्षेत्रफल पर रोपी जाती है तथा इसकी उत्पादकता बढ़ने की काफी संभावना अभी मौजूद है. इसकी खेती से पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों के किसान काफी मुनाफा कमाते हैं. अगर आप भी इसमें लगने वाले कीटों और रोगों का ठीक प्रकार से नियंत्रण कर लेते हैं तो अच्छा फायदा कमा सकते हैं. कीटों के आक्रमण से फसल की उपज में हानि होती है तथा उपज की गुणवत्ता और मात्रा में भी कमी आती है. धान की फसल में कीट लगने से 22 प्रतिशत तक उपज का नुकसान होता है. ऐसे में जानिए कुछ टिप्स के बारे में जिन पर अमल करके आप धान की बंपर पैदावार हासिल कर सकते हैं.
कृषि वैज्ञानिक अर्चना देवी, प्रीति कुमारी और डीके द्विवेदी बताते हैं कि धान की फसल को सबसे अधिक नुकसान सितंबर से नवंबर के दौरान होता है. प्रति एकड़ 100 लीटर पानी में 400 मिलीलीटर एकालक्स/क्विनगार्ड 25 ईसी (क्विनलफोस) मिलाकर फसल पर छिड़काव करके कीट को नियंत्रित किया जा सकता है. चूंकि कीट का व्यवहार रात्रिचर है, इसलिए बेहतर परिणाम प्राप्त करने के लिए छिड़काव शाम के समय किया जाना चाहिए. आईए जानते हैं कि धान की खेती में कौन-कौन से प्रमुख कीट लगते हैं.
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यह एक सामाजिक कीट है तथा ये कॉलोनी बनाकर रहते हैं. श्रमिक पीलापन लिए हुए सफेद रंग के पंखहीन होते हैं, जो उग रहे बीज और पौधों की जड़ों को खाकर क्षति पहुंचाते हैं.
इस कीट की गिडार उबले हुए चावल के समान सफेद रंग की होती है. सूंडियां जड़ के मध्य में रहकर हानि पहुंचाती हैं जिसके फलस्वरूप पौधे पीले पड़ जाते हैं.
इस कीट की सूंडी गोभ के अन्दर मुख्य तने को प्रभावित कर प्याज के तने के आकार की रचना बना देती है, जिसे सिल्वर शूट कहते हैं. ऐसे ग्रसित पौधों में बाली नहीं बनती है.
इस कीट की सूंडियां भूरे रंग की होती हैं, जो दिन के समय कल्लों के मध्य अथवा भूमि की दरारों में छिपी रहती हैं. सूंडियां शाम को निकलकर पौधों पर चढ़ जाती हैं तथा बालियों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर नीचे गिरा देती हैं.
इस कीट की गिडार पत्तियों में सुरंग बनाकर हरे भाग को खाती हैं, जिससे पत्तियों पर फफोले जैसी आकृति बन जाती है.
इस कीट की सूंडियां पत्तियों को अपने शरीर के बराबर काटकर खोल बना लेती हैं तथा उसी के अन्दर रहकर दूसरी पत्तियों से चिपककर उसके हरे भाग को खुरचकर खाती हैं.
इस कीट की मादा, पत्तियों पर समूह में अंडे देती है. अंडों से सूडियां निकलकर तनों में घुसकर मुख्य शूट को क्षति पहुंचाती हैं, जिससे बढ़वार की स्थिति में मृत गोभ तथा बालियां आने पर सफेद बाली दिखाई देती हैं.
इस कीट के प्रौढ़ हरे रंग के होते हैं तथा इनके ऊपरी पंखों के दोनों किनारों पर काले बिन्दु पाये जाते हैं. इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ दोनों ही पत्तियों से रस चूसकर हानि पहुंचाते हैं. इससे ग्रसित पत्तियां पहले पीली व बाद में कत्थई रंग की होकर नोंक से नीचे की तरफ सूखने लगती हैं.
समय से रोपाई करनी चाहिए.
कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण के लिए शत्रु कीटों के अंडों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-पर्चर में डालना चाहिए.
दीमक बाहुल्य क्षेत्र में कच्चे गोबर एवं हरी खाद का प्रयोग करना चाहिए.
उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए.
भूरा फुदका एवं सैनिक कीट बाहुल्य क्षेत्रों में 20 पंक्तियों के बाद एक पक्ति छोड़कर रोपाई करनी चाहिए.
तनाबेधक कीट के पूर्वानुमान एवं नियंत्रण के लिए 5 फेरोमोन ट्रैप का प्रति हेक्टेयर में प्रयोग करना चाहिए.
नीम की खली 10 क्विंटल प्रति हैक्टर की दर से बुआई से पूर्व खेत में मिलाने से दीमक के प्रकोप में कमी आती है.
कीट के शिशु एवं प्रौढ़ दोनों ही पत्तियों एवं कल्लों के मध्य रस चूसते हैं, जिससे पौधे पीले पड़कर सूख जाते हैं.
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