आज के समय में भले ही तालाब का इस्तेमाल सिंचाई और दूसरे कामों के लिए किया जा रहा हो, लेकिन ग्रामीण और शहरी इलाकों में आज भी इसका इस्तेमाल मछली पालन के लिए बड़ी संख्या में किया जाता है. ग्रामीण इलाकों की बात करें तो यह आज भी उनकी आय का मुख्य जरिया बना हुआ है. ग्रामीण इलाकों में इसे आय और पोषण दोनों से जोड़ा जाता है. यही वजह है कि तालाबों का अस्तित्व आज भी जिंदा है. लेकिन पुराने तालाबों के साथ एक बड़ी समस्या ये आ गई है कि इनके रख-रखाव में किसानों को न सिर्फ ज्यादा पैसे बल्कि ज्यादा समय भी खर्च करना पड़ता है. जिसके चलते ज्यादातर किसान पुराने तालाबों को मिट्टी से भरकर बंद कर देते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आप पुराने तालाब का रख-रखाव बेहद आसानी से और सिर्फ इन 5 टिप्स को अपनाकर कर सकते हैं. क्या है वो तरीका, आइए जानते हैं.
अक्सर पुराने तालाबों में कुछ हानिकारक कीड़े (जल बॉटममैन, रानात्रा, जल बिच्छू आदि) पनप जाते हैं, जो मछलियों की त्वचा पर चिपक जाते हैं और अपने चूसने वाले से उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं. इनसे मछलियों को बचाने के लिए ऑयलशॉप इमल्शन को 56:18 के अनुपात में मिलाकर पानी की सतह पर फैलाना चाहिए. इससे जलीय कीड़ों से छुटकारा पाने में मदद मिल सकती है.
तालाब के किनारों को मजबूत किया जाता है ताकि मिट्टी का कटाव न हो और पानी अंदर न जाए. जहां भी ज़रूरत हो, पत्थर या घास का इस्तेमाल किया जा सकता है. तालाब के बांधों पर हरी सब्जियां (लौकी, कद्दू, तुरई आदि) और कुछ छायादार पेड़-पौधे (केला, शहतूत, पपीता आदि) लगाए जाने चाहिए. पेड़-पौधों की जड़ें मिट्टी को एक साथ रखती हैं, जिससे बाँधों का कटाव कम होता है. बाँध की समय-समय पर मरम्मत की जानी चाहिए. बाँध ढलानदार होने चाहिए ताकि कटाव कम से कम हो.
पुराने तालाब के पानी की गुणवत्ता सुधारने और कीटाणुओं को मारने के लिए उसमें चूना छिड़का जाता है. इसकी मात्रा मिट्टी और पानी की गुणवत्ता पर निर्भर करती है. आम तौर पर प्रति हेक्टेयर 250 से 300 किलोग्राम चूना इस्तेमाल करना चाहिए. इस विधि का इस्तेमाल कर आप अपने पुराने तालाब को भी नया बना सकते हैं.
पुराने तालाब में मछलियों के लिए प्राकृतिक भोजन (प्लवक आदि) बढ़ाने के लिए जैविक या रासायनिक खादों का संतुलित उपयोग किया जाता है. सामान्यतः हर साल 5 से 6 किस्तों में प्रति हेक्टेयर 1000 से 1500 किलोग्राम गोबर की खाद डालना चाहिए. तालाब की उत्पादन क्षमता की जांच करके ही खाद और उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए.
पुराने तालाबों में मछली पालन करते समय जलवायु, पानी की गुणवत्ता, तालाब की गहराई, पानी के स्रोत की स्थिरता और बाजार की मांग को ध्यान में रखते हुए मछली की उपयुक्त प्रजातियों का चयन करना बहुत जरूरी है. सही प्रजातियों के चयन से उत्पादन और लाभ दोनों में वृद्धि होती है. रोहू, कतला, मृगल, तिलापिया या सिंघी जैसी उपयुक्त प्रजातियों का चयन स्थानीय जलवायु और बाजार की मांग को ध्यान में रखते हुए किया जाता है. एक लोकप्रिय तरीका रोहू, कतला, मृगल जैसी प्रजातियों को एक साथ पालना है. ये तीनों तालाब के विभिन्न स्तरों (ऊपरी, मध्य और निचले) पर भोजन करते हैं, जिससे तालाब की पूरी क्षमता का उपयोग होता है.
पुराने तालाब न केवल जल संचयन का साधन हैं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत भी हैं. यदि उनका सही ढंग से रखरखाव किया जाए और मछली पालन जैसी गतिविधियों के लिए उपयोग किया जाए, तो वे रोजगार, पोषण और पर्यावरण संरक्षण का मजबूत आधार बन सकते हैं अतः यह आवश्यक है कि हम अपने पुराने तालाबों को व्यापारिक और पारिस्थितिक दृष्टि से पुनर्जीवित करें, ताकि 'जल है तो कल है' की भावना को साकार किया जा सके.