मोती की मांग स्थानीय बाजार से लेकर अंतरराष्ट्रीय बाजार में काफी बढ़ी है, जिसमें साधारण मोती से लेकर डिजाइनर मोती की बढ़ती मांग को देखते हुए किसानों के बीच भी मोती की खेती को बढ़ावा दिया है. ऐसे में किसान इसकी खेती बड़े पैमाने पर कर रहे हैं. किसान कम खर्च में इसकी खेती से अधिक मुनाफा कमा सकते हैं. बिहार के नालंदा जिले की रहने वाली मधु पटेल पिछले चार सालों से डिजाइनर मोती की खेती कर रही हैं, जो कहती हैं कि मोती की खेती पुरुष से लेकर महिला किसान कर सकती हैं.
आज भी आम लोगों में एक धारणा बनी हुई है कि मोती समुद्र से प्राप्त होता है, लेकिन यह बातें पुरानी हो गई है. अब तालाब या टैंक में इसकी खेती करके डिजाइन मोती नेचुरल तरीके से हासिल किया जा सकता है. इसके लिए किसान को बेहतर संस्थान से प्रशिक्षण लेना होगा. आज किसान तक आपको मोती की खेती से जुड़ी अहम जानकारी व लाभ के बारे में बताने जा रहे हैं. मोती एक्वाकल्चर व्यवसाय का हिस्सा है. वहीं एक सीप में मोती तैयार में होने में कम से कम डेढ़ साल तक समय लग जाता है. साथ ही कुछ डिजाइनर मोती को तैयार होने में दो से ढाई साल तक भी समय लगता है.
ये भी पढ़ें- Success Story: बिंदु बाला ने खेती में किया कमाल, पहली बार में फ्रेंच बीन्स का लिया डबल उत्पादन
मधु पटेल किसान तक को बताती हैं कि आज बाजार में कई तरह के डिजाइनर मोती मौजूद है, लेकिन यह डिजाइनर मोती को बनाने के लिए उसके आकार का न्यूक्लीयस तैयार किया जाता है. यानी सांचा की मदद से बेकार सीप का पाउडर एवं एरलडाइट (एक तरह का गोंद) का मिश्रण तैयार किया जाता है और उसके मिश्रण को अलग-अलग डाई के मदद से विभिन्न डिजाइन के न्यूक्लीयस तैयार किया जाता है. जहां एक न्यूक्लीयस तैयार होने में एक से दो रुपए तक का खर्च आता है. वहीं बाहर तीन से छह रुपए तक दाम है. आगे वह बताती है कि मोती की खेती का पहला चरण न्यूक्लीयस तैयार करना ही होता है. क्योंकि इन्हीं न्यूक्लीयस को सीप में रखा जाता है, जो आगे चलकर मोती का रूप लेते हैं. वहीं अक्षर वाले न्यूक्लीयस बेकार पड़े सीप से कटिंग करके निकाला जाता है. इस तरह प्रति न्यूक्लीयस को बाहर से खरीदने पर 40 रुपए तक खर्च आता है.
चार साल से मोती की खेती कर रही मधु पटेल कहती हैं कि मोती की खेती के लिए सबसे पहले अच्छे सीप की जरूरत होती है. इसकी खेती तालाब, टैंक में की जा सकती है. सीप लाने के एक दो दिन बाद उसकी सर्जरी की जाती है. जिसमें सीप के कवच को 2 से 3 एमएम तक खोला जाता है, और उसमें न्यूक्लीयस डाल दिया जाता है. उसके बाद सीप को एक सप्ताह के लिए टैंक में एंटीबॉडी के लिए रखा जाता है. 2 से 3 सीप को एक नायलॉन के बैग में रखकर, तालाब में बांस या किसी पाइप के सहारे छोड़ दिया जाता है. सीप से मोती तैयार होने में 15 से 20 महीने का समय लगता है. और एक बेहतर मोती तैयार होने में दो से ढाई साल भी लग जाता है. इसके बाद कवच को तोड़कर मोती निकाल लिया जाता है.
ये भी पढ़ें-किसानों ने क्लब बना कर शुरू की थी खेती, अब घाटा सहने वाले लाखों कमाने लगे
एंटीबॉडी के दौरान जिस सीप का द्वार खुल जाता है. उसे तालाब में नहीं रखा जाता है, क्योंकि वह सीप बेकार हो जाता है. वहीं एक सीप में डिजाइनर न्यूक्लीयस दो से अधिक नहीं रखा जाता है. गोल आकार के चार न्यूक्लीयस रखा जा सकता है. आगे वह बताती हैं कि एक सीप के लिए करीब तीन लीटर तक पानी की जरूरत होती है. अगर कोई किसान टैंक में मोती की खेती करता है तो उसे 20 से 25 लीटर पानी की जरूरत होगी. मछली पालन के साथ मोती की खेती करने में खर्च कम आता है. मछली के चारे से ही सीप को भी अपना भोजन मिल जाता है. मोती की खेती में एक सीप पर 60 से 70 रुपये तक खर्च आता है. बाजार में वहीं मोती 500 से 2000 रुपये तक बिकते हैं. या इससे अधिक दाम पर भी बिकता है. साथ ही तालाब या टैंक से समय-समय पर पानी निकालना भी जरूरी होता है. जब भी पानी गंदा दिखे. तो टैंक या तालाब का 40 प्रतिशत पानी निकाल देना चाहिए. और उसमें नया पानी डाल देना चाहिए.
मधु पटेल बताती हैं कि एक अच्छा मोती के लिए बेहतर सीप का होना जरूरी है. वहीं अगर कोई किसान सीप किसी से सीप खरीदता है. तो वह खरीदते समय यह ध्यान रखें कि उसकी लंबाई कम से कम 6 सेंटीमीटर हो. साथ ही उसके ऊपर का चपटा हुआ भाग इंद्रधनुष की तरह दिखना चाहिए और वजन 35 ग्राम से कम नहीं होना चाहिए. एक सीप 4 रुपये से 10 रुपये तक मिलता है.
देश के सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वॉटर एक्वाकल्चर (CIFA) मोती की खेती का प्रशिक्षण देता है. इसका मुख्यालय भुवनेश्वर में है. इसके अलावा रीजनल केंद्र भटिंडा, बेंगलुरू और विजयवाड़ा से भी ट्रेनिंग लिया जा सकता है. वहीं मोती की खेती के लिए जितना ज़रूरी प्रशिक्षण है. उससे कहीं ज्यादा उसका सही तरीके से रखरखाव.