फलों का राजा आम अभी से ही बाजार में दस्तक देने लगा है, लेकिन अभी उत्तर भारत में पैदा होने वाले दशहरी, लंगड़ा और चौसा आम को आने में लगभग 1 महीने से ज्यादा का समय है.आम को यूं ही ‘फलों का राजा’ नहीं कहा जाता. इसकी मिठास बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी को लुभाती है. लेकिन जिस आम का स्वाद हम गर्मियों में चाव से चखते हैं, उसे खेतों में सहेजना किसानों के लिए किसी जंग से कम नहीं होता. कीटों और बीमारियों का हमला कई बार आम की पूरी फसल को तबाह कर देता है. ऐसे में आइए जानते हैं आम में लगने वाली प्रमुख कीट और रोग कौन से हैं और क्या है इससे बचाव के उपाय.
गुठली का घुन: यह कीट घुन वाली इल्ली की तरह होता है, जो आम की गुठली में छेद करके घुस जाता है और उसके अंदर अपना भोजन बनाता रहता है. कुछ दिनों बाद ये गूदे में पहुंच जाता है और उसे नुकसान पहुंचाता है. इस कीड़े को नियंत्रित करना थोड़ा कठिन होता है. इसलिए जिस भी पेड़ से फल नीचे गिरे उस पेड़ की सूखी पत्तियों और शाखाओं को नष्ट कर देना चाहिए. इससे कुछ हद तक कीड़े की रोकथाम हो जाती है. इसके अलावा इसमें नीम का छिड़काव करें.
गोभ छेदक कीट: इस कीट की सुंडियां पीले नारंगी रंग की होती हैं. शुरुआत में ये कीट पत्तियों की शिराओं में छेद बनाकर खाती हैं. इसके बाद नए टहनियों को भी खाने लगती हैं. यह कीट गर्मी में तेजी से सक्रिय हो जाता है. यह कीट पुराने वृक्षों को ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं. इसके बचाव के लिए 125 मिली डाइक्लोरवास को 250 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव कर सकते हैं.
थ्रिप्स कीट:आम के पेड़ों पर थ्रिप्स कीट का अटैक देखने को मिल रहा है. इस कीट के लगने पर पत्तियों, नई कलियों और फूलों को क्षति पहुंचता है. साथ ही इसके प्रकोप से फल भी गिर सकते हैं. ऐसे में इसके बचाव के लिए इमिडाक्लोप्रिड (0.3 ml/L) या थायोमेथोक्साम (0.5g/L) का छिड़काव किया जा सकता है.
ब्लैक टिप रोग: आम में यह रोग भट्टों से निकलने वाली जहरीली गैस से फैलता है. इस रोग के लगने पर फल सिरे से बेढंगे होकर जल्दी पक जाते हैं और आधा फल खराब हो जाता है. इसके बचाव के लिए मई में एक लीटर पानी में 6 ग्राम बोरेक्स मिलाकर फूल आने से पहले 2 छिड़काव किया जाना चाहिए. फल आने के बाद तीसरा छिड़काव कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का करें.
सफेद चूर्णी रोग: इस रोग के लगने पर फूलों पर सफेद चूरन छा जाता है, जिससे फूल छोटे होने लगते हैं और फल गिरने लगते हैं. वहीं, इस रोग से प्रभावित होने पर फलों का आकार भी छोटा रह जाता है. इसकी रोकथाम के लिए कैराथिऑन 1 ग्राम प्रति लीटर या केलिक्सिन 0.2 प्रतिशत का छिड़काव किया जाना चाहिए.