अप्रैल महीने में बादलों की ओट के बीच बारिश ने लोगों को गर्मी से राहत दी है. वहीं मई महीने के आगमन के साथ ही गर्मी का असली रंग शुरू होने वाला है. इस दौरान गरमा सब्जियों सहित अन्य फसलों में कीट और रोगों का प्रकोप बढ़ने की आशंका भी रहती है. इसे ध्यान में रखते हुए डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा की ओर से साप्ताहिक कृषि सलाह जारी की गई है. इसमें कृषि वैज्ञानिकों ने भिंडी की फसल में लीफ हॉपर कीट और लतर वाली सब्जियों में मक्खी के प्रकोप से बचाव के उपाय बताए हैं.
वहीं, राज्य में बारिश की स्थिति को देखते हुए कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को सलाह दी है कि वे समय पर गेहूं, अरहर और मक्का की कटाई पूरी कर लें. इसके साथ ही ओल की रोपाई का काम जल्द शुरू करें. किसान मूंग और उड़द की फसल में रस चूसने वाले कीट जैसे माहू, हरा फुदका, सफेद मक्खी और थ्रिप्स कीट की नियमित निगरानी करते रहें.
कृषि विश्वविद्यालय की ओर से जारी सलाह के अनुसार, इस मौसम में भिंडी की फसल पर लीफ हॉपर कीट का प्रकोप अधिक होता है, जिससे फसल को भारी नुकसान पहुंचता है. यह कीट बहुत छोटा होता है और इसके नवजात और वयस्क कीट पत्तियों पर चिपककर रस चूसते हैं. इससे पत्तियों पर छोटे-छोटे धब्बे बन जाते हैं, पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं और पौधा कमजोर हो जाता है. इससे उपज पर असर पड़ता है. इस कीट का प्रकोप दिखाई देने पर किसान इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मिली प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर पौधों पर छिड़काव करें. साथ ही माइट कीट की भी निगरानी करते रहें. वहीं, बारिश की स्थिति को देखते हुए दवा का छिड़काव सावधानीपूर्वक करें.
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गर्मी के मौसम में लतर वाली गरमा सब्जियों जैसे नेनुआ, करेला, लौकी और खीरा की फसलों पर मक्खी कीट का प्रकोप अधिक होता है. यह भूरे रंग की कीट घरेलू मक्खी जैसी दिखती है. इनका मादा कीट फलों की त्वचा के अंदर अंडे देती है और उनसे निकले पिल्लू फल के अंदर के भाग को खा जाते हैं, जिससे फल सड़कर नष्ट हो जाते हैं. इसका प्रकोप दिखते ही 1 किलोग्राम छोआ, 2 लीटर मैथालियान 50 ईसी को 1000 लीटर पानी में घोलकर 15 दिनों के अंतराल पर दो बार छिड़काव करना चाहिए. वहीं, बारिश होने की स्थिति में दवा का छिड़काव स्थगित कर देना चाहिए.
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, वर्तमान समय ओल की रोपाई के लिए उपयुक्त है. जो किसान पहली बार ओल की खेती कर रहे हैं, उन्हें सलाह दी जाती है कि ओल के कटे हुए कंदों को 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा भिरिडी प्रति लीटर गोबर के घोल में मिलाकर 20–25 मिनट तक डुबोकर रखें. इसके बाद कंदों को निकालकर छाया में 10–15 मिनट तक सूखने दें और फिर रोपाई करें. इससे मिट्टी जनित बीमारियों की संभावना कम होती है और अच्छी उपज मिलती है.
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