खरीफ सीजन की शुरुआत होते ही किसान अपने खेतों में कपास की खेती के लिए उतर गए हैं. किसान कपास की खेती नकदी फसल के रूप में होती है. वहीं, इसकी खेती भारत के कई राज्यों में की जाती है. इसकी खेती से किसानों को अच्छा मुनाफा मिलता है. लेकिन किसान खेती से कई बार कुछ छोटी गलती कर देते हैं, जिससे उनकी मेहनत पर पानी फिर जाता है. दरअसल, वो गलती है बुआई के समय सही पोषक तत्वों का न डालना है. ज्यादातर किसान बुआई के साथ कई महत्वपूर्ण पोषक तत्व नहीं डालते, जिससे शुरुआत में ही फसल कमजोर हो जाती है और अंत तक अच्छा उत्पादन नहीं दे पाती. ऐसे में आइए जानते हैं खरीफ सीजन में कैसे करें कपास की खेती और कौन सा पोषक तत्व कब डालें.
किसान बंपर उपज पाने के लिए कपास की खेती से पहले बीज का उपचार जरूर करें. कृषि एक्सपर्ट भी फसलों की बुवाई से पहले बीज उपचार करने की सलाह देते हैं. ताकि बीजों में लगे बीमारी का इलाज पहले ही किया जा सके. इससे ना सिर्फ फसलों की उपज बढ़ती है बल्कि मिट्टी की उर्वरक क्षमता भी बनी रहती है.
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कपास की बुआई के समय किसान अगर पोटाश, फास्फोरस और नाइट्रोजन की सही मात्रा खेत में डाल दें, तो फसल को शुरुआती 30-60 दिन में जरूरी पोषण मिल जाता है. इससे पौधे मजबूत होते हैं. साथ ही बीमारियों से बचाते हैं और फूल-छंटाई के समय जबरदस्त ग्रोथ देते हैं. बता दें कि पोटाश, फास्फोरस, और नाइट्रोजन तीनों ही कपास के लिए आवश्यक पोषक तत्व हैं. नाइट्रोजन पौधों के विकास और वृद्धि को बढ़ावा देता है, फास्फोरस जड़ और फूल के विकास में मदद करता है और पोटाश पौधों को रोगों से लड़ने और स्वस्थ रखने में मदद करता है.
अब बात करते हैं कि इसका उपयोग कैसे करें. दरअसल, कपास की बुवाई के समय 50 फीसदी पोटाश, 50 फीसदी फास्फोरस और 10 फीसदी नाइट्रोजन का इस्तेमाल करना चाहिए. वहीं, जब फसल 60 दिन का हो जाए तब बचा हुआ पोषक तत्व फसलों में डालें. इस तरीके से आप न केवल फसल की बुनियाद मजबूत करते हैं, बल्कि बंपर उत्पादन की नींव भी डालते हैं.
बता दें कि ये कपास की बुवाई का बिल्कुल सही समय है. इसलिए कृषि एक्सपर्ट का मानना होता है कि किसानों को कपास की खेती कतार से कतार की दूरी 108 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 60 सेंटीमीटर पर करना चाहिए. वैकल्पिक रूप से 67.5 गुणा 90 सेंटीमीटर की दूरी पर भी बुवाई की जा सकती है. वहीं, खाद और उर्वरक में 40 किलो यूरिया प्रति बीघा तीन हिस्सों में दें. खेत तैयारी के समय आखिरी जुताई में कुछ मात्रा गोबर की खाद सड़ी खाद में मिलाकर डालें.साथ ही एक तिहाई बुवाई के समय, एक तिहाई पहली सिंचाई के साथ और बाकी कलियां बनते समय दें.