कुरमुला भारत में एक मुख्य हानिकारक कीट के रूप में जाना जाता है. यह कीट विभिन्न राज्यों जैसे-हिमाचल प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश में बहुतायत रूप में पाया जाता है. यह कीट मौसम और फसल की उपलब्धता के अनुसार काफी हानि पहुंचाता है. मुख्यतः यह कीट मॉनसून के समय पर अधिक नुकसान पहुंचाता है. भारत में यह कीट पर्वतीय और मैदानी दोनों इलाकों में काफी क्षति पहुंचाता है.
अलग-अलग राज्यों में उगाई जाने वाली फसलों में अधिक नुकसान पहुंचाने के कारण इसे कई राज्यों जैसे-उत्तराखंड में राजकीय/राज्य कीट का दर्जा भी दिया गया है. दरसअल, इसके बारे में ICAR के वैज्ञानिक अंशुमन सेमवाल, निकिता चौहान, ओजस चौहान, राकेश कुमार और विश्व गौरव सिंह चंदेल का मानना है कि यह कीट पर्वतीय क्षेत्रों में बरसात में बोई जाने वाली फसलों में 20 से 75 प्रतिशत तक का नुकसान पहुंचाता है. वहीं, मैदानी क्षेत्रों में यह कीट फसलों को 90 प्रतिशत तक की हानि पहुंचाता है. ऐसे में आइए जानते हैं इस कीट के खतरे से अपनी फसलों को कैसे बचाएं?
कुरमुला कीट से बचाव के किसान मेटाराइजियम एनीसोपली और ब्युवेरिया बेसियाना 1.0×104 प्रति ग्राम वाले फार्मूलेशन का 3.0 ग्राम प्रति वर्गमीटर की दर से प्रयोग करने पर कीट की संख्या में काफी कमी आती है. वहीं, कीट के नियंत्रण के लिए कीटनाशक दवा को मिट्टी में शाम के समय मिलाना चाहिए. इसके अलावा कई फसलों की बुवाई से पहले खेत में इमिडाक्लोप्रिड 200 एसएल कीटनाशक को 0.048 किग्रा की दर से प्रति हेक्टेयर प्रयोग करके कुरमुला कीट से फसलों को बचाया जा सकता है. साथ ही सोयाबीन और अन्य खरीफ फसलों में कीट से बचाव के लिए थायामेथोक्साम 25 डब्ल्यू एस नामक कीटनाशक का 1.2 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए.
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