भारत में कपास की खेती किसानों की आमदनी का एक प्रमुख स्रोत है. अगर उन्नत किस्में, सही बुआई तकनीकों और वैज्ञानिक प्रबंधन को अपनाया जाए, तो कपास की पैदावार में काफी बढ़ोतरी हो सकती है. ऐसे में हम आपको कपास की उन्नत किस्मों, बुआई का समय और तरीका, सिंचाई प्रबंधन और पोषक तत्वों के इस्तेमाल की जानकारी सरल भाषा में दे रहे हैं.
भारत में मुख्यतः तीन प्रकार की कपास की किस्में उगाई जाती हैं, अमेरिकन कपास (Gossypium hirsutum), संकर (हाइब्रिड) कपास, और देसी कपास (Gossypium arboreum). अमेरिकन कपास की प्रमुख उन्नत किस्में हैं: एफ. 286, एल.एस. 886 और एफ. 414. संकर कपास में फतेह, एल.डी.एच. 11, एल.एच. 144, धनलक्ष्मी, एच.एच.एच. 223 और सी.एस.ए.ए. 2 प्रमुख किस्में हैं. वहीं देसी कपास की उन्नत किस्मों में एच. 777, एच.डी. 1, एच. 974, एच.डी. 107, डी.एस. 5, के. 10 और के. 11 शामिल हैं. ये सभी किस्में भारत के विभिन्न हिस्सों में अच्छी उपज देती हैं.
बुआई के समय की बात करें तो अमेरिकन कपास की बुआई देसी कपास से थोड़ी पहले की जाती है. पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में गेहूं की कटाई के तुरंत बाद यानी अप्रैल-मई के महीने में इसकी बुआई करना सबसे लाभदायक होता है. बुआई पंक्तियों में करनी चाहिए, जिसके लिए सीड ड्रिल या देसी हल के पीछे कूड़ बनाकर बीज बोए जाते हैं.
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बीज की मात्रा और दूरी भी उपज को प्रभावित करती है. अमेरिकन कपास के लिए 15-20 किलो, संकर कपास के लिए 2-2.5 किलो और देसी कपास के लिए 15-16 किलो बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है. साथ ही, अमेरिकन व देसी कपास के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60×30 सेमी और संकर कपास के लिए 90×60 सेमी रखनी चाहिए. इससे पौधों को बढ़ने के लिए उचित स्थान मिलता है.
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जल प्रबंधन की बात करें तो जिन क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा है, वहां 15 से 25 मई के बीच बुआई कर देनी चाहिए. इससे फसल समय पर पककर तैयार हो जाती है. कपास को सामान्यतः 3-4 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है. अंतिम सिंचाई तब करनी चाहिए जब पौधे के लगभग एक-तिहाई टिण्डे (बोल्स) फटने लगें. बारानी क्षेत्रों में बारिश के साथ ही बुआई करना सही रहता है.
पोषक तत्व प्रबंधन में उर्वरकों का इस्तेमाल मिट्टी परीक्षण के आधार पर करना चाहिए. देसी कपास के लिए 50-70 किलो नाइट्रोजन और 20-30 किलो फॉस्फोरस पर्याप्त होता है. अमेरिकन कपास के लिए 60-80 किलो नाइट्रोजन, 30 किलो फॉस्फोरस और 20-30 किलो पोटाश की आवश्यकता होती है. वहीं संकर कपास के लिए 150 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो फॉस्फोरस और 60 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर आवश्यक होता है. इसके अलावा 25 किलो जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर डालना भी लाभकारी साबित होता है.
उर्वरक देने की विधि भी महत्वपूर्ण है. बुआई के समय नाइट्रोजन की आधी मात्रा और अन्य उर्वरकों की पूरी मात्रा खेत में डाल देनी चाहिए. बाकी नाइट्रोजन की मात्रा फूल आने के समय, सिंचाई के तुरंत बाद देनी चाहिए ताकि पौधों को विकास के समय पूरा पोषण मिल सके.
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