पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की हरमेटिक तकनीक से अब सालों साल खराब नहीं होगा अनाज 

पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की हरमेटिक तकनीक से अब सालों साल खराब नहीं होगा अनाज 

जल्द ही हरमेटिक सिस्टम वाला यह कवर और गैस की तकनीक बाजार में आ जाएगी. जिसका लाभ किसानों के साथ ही प्रोसेसिंग प्लांट संचालक भी उठा सकेंगे. भारत में पूर्ण रूप से विकसित होने के बाद यह तकनीक इतनी सस्ती हो जाएगी कि हर एक किसान इसका फायदा उठा सकेगा. 

अनाज स्टोर करने की नई तकनीक. फोटो क्रेडिट-किसान तकअनाज स्टोर करने की नई तकनीक. फोटो क्रेडिट-किसान तक
नासि‍र हुसैन
  • Noida ,
  • Apr 12, 2023,
  • Updated Apr 12, 2023, 5:04 PM IST

देश में गेहूं-चावल और दालों को अच्छी तरह से सुराक्षित स्टोर करना एक बड़ी परेशानी है. लाखों-करोड़ों रुपये खर्च करने वाले एफसीआई के गोदामों में भी अनाज खराब होता है. अनाज-दाल कहीं पानी से भीग जाते हैं, तो कहीं उनमे कीड़े या फफूंदी लग जाती है. इसी परेशानी को दूर करने के लिए पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (पीएयू), लुधियाना एक रिसर्च कर रहा है. हालांकि रिसर्च में एक बड़ा हिस्सा विदेशी बाजार का है, लेकिन अगर यह कामयाब रहती है तो आने वाले वक्त में इसे पूरी तरह से देश में ही विकसित किया जा सकेगा. 

हरमेटिक सिस्ट म वाले इस कवर में एक बार अनाज और दालें रखने के बाद उन्हें लम्बे वक्त  तक रखा जा सकता है. वक्त  की कोई लिमिट नहीं है. अफ्रीका जैसे कई देशों में यह तकनीक बहुत ही कारगर है. हमारे देश में अनाज और दाल तो बड़ी मात्रा में होते हैं, लेकिन स्टो‍रेज तकनीक अच्छी न होने की वजह से उन्हें लम्बे वक्त तक रखना मुमकिन नहीं हो पाता है.

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ऐसे काम करेगा अनाज स्टोर करने वाला हरमेटिक सिस्टम

पीएयू के प्रोसेसिंग डिपार्टमेंट में प्रोफेसर डॉ. महेश ने किसान तक को बताया कि हरमेटिक सिस्तम के तहत अभी हम ट्रायल बतौर पांच टन दाल और अनाज स्टोर कर रहे हैं. हरमेटिक सिस्ट म में अनाज की बोरियों को नीचे यानि तले की तरफ से और ऊपर की तरफ से प्लास्टिक का एक खास कवर पहना दिया जाता है. बीच में यह कवर चेन (जिप) से जुड़ा है. जिप भी लगने के बाद प्लास्टियक के कवर से ढक जाती है. 

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तो सबसे पहले बोरियों को दोनों तरफ से कवर पहनाने के बाद कवर के अंदर कार्बन डाइऑक्साइड का एक सिलेंडर जो 450 रुपये का आता है वो छोड़ दिया जाता है. गैस को इस तरह से छोड़ा जाता है कि वो पूरी तरह से कवर के अंदर फैल जाए. इसके साथ ही 10 फीसद ऑक्सीजन भी कवर के अंदर छोड़ी जाती है. फिर जिप से कवर को अच्छी तरह से बंद करने के बाद छोड़ दिया जाता है. 

20 साल तक चलता है एक बार खरीदा गया प्लास्टिक का कवर 

डॉ. महेश ने बताया कि बामुश्किल कवर के अंदर गैस भरने का खर्च 500 रुपये है. वहीं पांच टन वजनी बोरियों को ढकने के लिए उस साइज का कवर 1.25 लाख रुपये का आता है. लेकिन एक बार खरीदा गया कवर 20 साल तक चलता है. क्योंकि अभी यह कवर फिलीपींस से खरीदा जा रहा है तो इसलिए महंगा आ रहा है. लेकिन जैसे ही यह कवर भारत में बनने लगेगा तो बहुत ही सस्ता  हो जाएगा.   

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