
भारत को कृषि क्षेत्र में बिखरी हुई तकनीकी पहलों के बजाय एकीकृत एग्री-टेक पारिस्थितिकी तंत्र की ओर बढ़ना होगा, ताकि उन 86 प्रतिशत किसानों तक तकनीक पहुंच सके जो अब तक किसी भी नवाचार से वंचित हैं. उद्योग संगठन एसोचैम (ASSOCHAM) की ताजा रिपोर्ट में यह सुझाव दिया गया है. रिपोर्ट के अनुसार, कृषि तकनीक को छोटे किसानों तक पहुंचाने के लिए मौजूदा ढांचे में बुनियादी बदलाव की जरूरत है. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का भविष्य तैयार कृषि तंत्र इस बात पर निर्भर करेगा कि तकनीक को कितनी प्रभावी तरीके से समावेशिता, डेटा आधारित निर्णय और नवाचार के साथ जोड़ा जाता है.
इसके लिए राज्य-स्तरीय एग्री-टेक सैंडबॉक्स (Agri-Tech Sandboxes) बनाने की सिफारिश की गई है, जो वास्तविक परिस्थितियों में नई तकनीकों के परीक्षण और प्रयोग के लिए सहयोगात्मक प्लेटफॉर्म के रूप में काम करेंगे. इन सैंडबॉक्स में सरकारी एजेंसियां, स्टार्टअप्स और शोध संस्थान मिलकर काम करेंगे, ताकि किसी तकनीक को बड़े पैमाने पर लागू करने से पहले उसकी उपयोगिता सुनिश्चित की जा सके.
रिपोर्ट में बताया गया है कि देश में 90 से अधिक आईसीएआर (ICAR) संस्थान, 60 राज्य कृषि विश्वविद्यालय (SAUs) और 700 से अधिक कृषि विज्ञान केंद्र (KVKs) होने के बावजूद भारत के पास अभी भी उभरती एग्री-टेक तकनीकों के लिए कोई एकीकृत परीक्षण प्रणाली नहीं है. वर्तमान तंत्र बिखरा हुआ और धीमा है, जिससे नवाचारों को वैधता और विस्तार के लिए स्पष्ट मार्ग नहीं मिल पाता.
हर सैंडबॉक्स राज्य के कृषि विभाग के अधीन होगा और इसमें संबंधित विभागों, ICAR, SAU और नाबार्ड (NABARD) जैसी संस्थाओं की भागीदारी होगी. इसके संचालन और फंडिंग की निगरानी के लिए कृषि मंत्रालय और नीति आयोग की सह-अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय संचालन समिति गठित करने का प्रस्ताव है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में कृषि डेटा अभी भी अलग-अलग हिस्सों में बिखरा हुआ है. अनुसंधान डेटा ICAR और SAUs के पास है, बाजार से जुड़ा डेटा राज्य विपणन बोर्डों के पास है, जबकि फॉर्म-लेवल डेटा निजी एग्री-टेक स्टार्टअप्स के पास है. इस डेटा विखंडन के कारण नई तकनीकों के विकास और नवाचार की गति प्रभावित हो रही है.
इसी को ध्यान में रखते हुए रिपोर्ट में एग्रीकल्चरल डेटा कॉमन्स (Agricultural Data Commons) बनाने की सिफारिश की गई है, जो FAO द्वारा सुझाए गए FAIR सिद्धांतों- Findable, Accessible, Interoperable, Reusable पर आधारित होगा. रिपोर्ट ने तेलंगाना में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की साझेदारी से बने Agricultural Data Exchange (ADeX) को एक सफल उदाहरण बताया है, जो सुरक्षित और मानक आधारित डेटा साझाकरण सुनिश्चित करता है.
एसोचैम ने कहा है कि एग्री-टेक स्टार्टअप्स को उत्पाद-केंद्रित मॉडल से आगे बढ़कर किसानों की आर्थिक क्षमता और जरूरतों के अनुसार ‘संदर्भ-आधारित मॉडल’ अपनाने की जरूरत है. रिपोर्ट ने तकनीक की जटिलता और लागत के आधार पर विभिन्न कारोबारी मॉडल सुझाए हैं. सस्ते समाधान के लिए ‘डायरेक्ट टू फार्मर रिटेल मॉडल’ और महंगी, जटिल तकनीकों के लिए ‘सहयोगात्मक स्वामित्व मॉडल’.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि तकनीक अपनाने के लिए किसानों को क्रेडिट-लिंक्ड एडॉप्शन लोन, फसल चक्र आधारित भुगतान, कम्युनिटी-लेड डिस्ट्रीब्यूशन और आउटकम-लिंक्ड कमर्शियलाइजेशन जैसे वित्तीय मॉडलों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.
एसोचैम ने सुझाव दिया है कि सरकार को नवाचारी वित्तीय साधनों, ग्रामीण कोल्ड चेन, स्टोरेज और लॉजिस्टिक्स नेटवर्क को मजबूत करने पर ध्यान देना चाहिए. साथ ही AgriSURE Fund जैसी ब्लेंडेड फाइनेंस योजनाओं का विस्तार और एग्री-टेक निवेश के लिए टैक्स इंसेंटिव भी बढ़ाए जाने चाहिए.
रिपोर्ट ने यह भी रेखांकित किया है कि किसानों और किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) को डिजिटल साक्षरता और एआई आधारित सलाहकारी उपकरणों का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, ताकि तकनीक की समझ ज़मीन पर लागू हो सके.
रिपोर्ट के अंत में कहा गया है कि अगर भारत एग्री-टेक के नए आयामों को अपनाता है, तो वह कृषि क्षेत्र को एक डिजिटल रूप से बुद्धिमान, सतत और समावेशी पारिस्थितिकी तंत्र में बदल सकता है, जहाँ नवाचार से एकीकरण और एकीकरण से वास्तविक प्रभाव उत्पन्न होगा. (पीटीआई)