
भारत के कई हिस्सों की तरह, राजेंदर जी भी धान की पारंपरिक रोपाई तरीके से बहुत परेशान थे. यह तरीका कई चुनौतियां लेकर आता है. पहले खेत में पानी भरकर पडलिंग करो, फिर नर्सरी तैयार करो और उसके बाद मजदूरों से धान की रोपाई कराओ. इस पूरे काम में पैसा, पानी और समय, तीनों की भारी बर्बादी होती थी.
धान रोपाई के मौसम में मजदूर मिलना एक अलग सिरदर्दी थी और जो मिलते भी, वे महंगे मिलते थे. यह पूरा काम बेहद थकाऊ था. हरियाणा के हिसार जिले के सत्रोड़ गांव के किसान राजेंदर पुनिया हमेशा सोचते रहते थे कि इस जंजाल से कैसे निकला जाए. इसे देखते हुए एक ऐसा इनोवेटर बना दिया, जुगाड़ से ऐसी मशीन बना दी जिससे सारे झंझटों और परेशानी से मुक्ति मिल गई.
राजेंदर को साल 2020 मई में धान की खेती के समय मजदूरों की भारी किल्लत हो गई थी और धान की रोपाई सिर पर थी. ज्यादातर किसान परेशान थे, लेकिन राजेंदर जी के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था. उन्होंने तय किया कि वे किसी के भरोसे नहीं बैठेंगे. उन्होंने अपने जुनून और अनुभव को मिलाकर, खुद की DSR मशीन डिजाइन कर डाली.
जब उन्होंने अपनी बनाई मशीन से बिजाई की, तो नतीजा उम्मीद से कहीं बेहतर आया. बीजों का अंकुरण शानदार था और मशीन ने बहुत कुशलता से काम किया. राजेंदर यहीं नहीं रुके. उन्होंने अपनी मशीन को और बेहतर बनाया और उसमें रोटावेटर को भी जोड़ दिया. इससे खेत की तैयारी और बिजाई का काम एक साथ होने लगा.
यह मशीन बीज को मिट्टी में एक समान गहराई पर डालती है, जिससे 95 से 100% तक बीजों का जमाव होता है. यह नमी वाली और सूखी, दोनों तरह की जमीन पर सीधी बिजाई कर सकती है. साथ ही, यह मशीन जमीन की ऊपरी सख्त परत को भी तोड़ देती है. सबसे बड़ी बात यह है कि पारंपरिक रोपाई की तुलना में इस DSR मशीन से पानी और डीजल का खर्च काफी कम हो गया और पैदावार 5 से 6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक बढ़ गई. इसमें यूरिया की खपत भी कम हो गई.
राजेंदर जी ने 'टारजन' (Tarzan) नाम का एक अनोखा 'देसी जुगाड़' विकसित किया, जो खेतों में बिना ट्रैक्टर के चलने वाला एक चलता-फिरता कारखाना है. यह हल्की, खुद से चलने वाली मशीन डीजल की भारी बचत करती है और अकेले ही कई काम निपटा देती है, जैसे— खेत में पडलिंग करना, जमीन की पपड़ी तोड़ना, खेत से काई हटाना, खरपतवार को काबू करना, जड़ों के पास सीधे खाद (DAP/NPK) डालना और बूम स्प्रेयर से दवा का छिड़काव करना.
सबसे खास बात यह है कि यह मशीन 70 से 80% तक खरपतवार कम कर देती है, जो इसे जैविक या केमिकल-फ्री खेती करने वाले किसानों के लिए एक वरदान बनाती है.
राजेंदर पुनिया सिर्फ किसान नहीं, बल्कि एक 'किसान-वैज्ञानिक' हैं. उन्होंने अपनी एक वर्कशॉप भी बना रखी है, जहां वे 'लीक से हटकर' नए-नए प्रयोग करते रहते हैं. यहीं पर उन्होंने अनाज साफ करने के लिए एक सुपर पावर पंखा बनाया. यह पंखा इतना शक्तिशाली है कि एक घंटे में 120 से 150 क्विंटल अनाज जैसे गेहूं, धान, ग्वार, बाजरा, जौ आदि को साफ कर सकता है. इस बेहतरीन मशीन का उन्होंने पेटेंट भी हासिल किया है. राजेंदर की यह कहानी बताती है कि जरूरत और जुनून मिलकर किस तरह खेती की तस्वीर बदल सकते हैं.
राजेंदर पुनिया सिर्फ किसान नहीं, बल्कि एक 'किसान-वैज्ञानिक' हैं. उन्होंने अपनी एक वर्कशॉप भी बना रखी है, जहां वे 'लीक से हटकर' नए-नए प्रयोग करते रहते हैं. राजेंदर पुनिया के ये आविष्कार सिर्फ जुगाड़ नहीं हैं, बल्कि ये आज की खेती की सबसे बड़ी जरूरत है. ये मशीन कीमती समय बचाती हैं. लागत में मजदूर, डीजल, खाद, पानी कम करती हैं. कम मेहनत में ज्यादा काम करती हैं.