आमतौर पर जो ग्राउंड वाटर रिचार्ज सिस्टम बनाए जाते हैं, वो इस तरह के होते हैं कि बारिश का पानी कुछ छोटे-बड़े कंकड़-पत्थ र के बीच से होता हुआ जमीन के अंदर चला जाता है. लेकिन जमीन के अंदर जा रहे पानी की शुद्धता पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है. लेकिन पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (पीएयू), लुधियाना ने एक ऐसा ग्राउंड वाटर रिचार्ज सिस्टम तैयार किया है, जिसकी मदद से जमीन के अंदर कैमिकल और बैक्टीरिया फ्री पानी जाएगा. इतना ही नहीं यह सिस्टम खेतों में पड़े नाइट्रेट, पोटेशियम और फॉस्फोरस को भी पानी के साथ जमीन के अंदर नहीं जाने देता है.
पीएयू के वाटर एंड सॉइल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के साइंटिस्ट डॉ. जेपी सिंह ने बताया कि हमारे बनाए ग्राउंड वाटर रिचार्ज सिस्टम की लागत करीब 50 हजार रुपये आ रही है. लेकिन जल्द ही इसके लोहे के बने बाहरी कवर को सीमेंटेड करने से इसकी लागत 30 से 35 हजार रुपये तक आ जाएगी.
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पीएयू के वाटर एंड सॉइल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के डॉ. जेपी सिंह ने किसान तक को बताया कि हमारा ग्राउंड वाटर रिचार्ज सिस्टम अभी ट्रायल के तौर पर चल रहा है. जल्द ही इसे पेटेंट कराने के लिए भेज दिया जाएगा. हमारा सिस्टम दूसरों से इसलिए अलग है, क्योंकि यह पानी को कैमिकल और बैक्टीरिया फ्री करके जमीन के अंदर छोड़ता है. यह चार लेयर का सिस्टम है. इसकी सबसे पहली लेयर में पानी को जमा होने की जगह दी गई है. यहां पानी इकट्ठा होकर ठहर जाता है. जिससे उसकी तमाम तरह की गंदगी नीचे बैठ जाती है. फिर दूसरी लेयर कंकड़ की है. तीसरी लेयर में कोर सेंड है.
जो सबसे आखिरी लेयर है वो चारकोल की है. जीरो साइज के कंकड़ में चारकोल मिलाकर इस सिस्टम में भरा गया है. हमने इस सिस्टम में उस पानी का ट्रायल किया है जिसमे नाइट्रेट, पोटेशियम और फॉस्फोरस मिला हुआ था. जब हमने रिजल्ट देखा तो वो काफी चौंकाने वाला था. चारकोल के चलते तीनों ही कैमिकल 78 से 80 फीसद तक दूर हो गए थे.
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डॉ. जेपी सिंह ने बताया कि जब हम पानी को जमीन में रिचार्ज करते हैं तो उसके साथ बहुत सारे बैक्टीरिया भी जाते हैं. यह बैक्टीरिया भी पानी को प्रदूषित करते हैं. हमारा यह सिस्टम एक सेकेंड में दो से ढाई लीटर पानी रिचार्ज करता है. इसी को देखते हुए हम इसके साथ दो से ढाई एमएल क्लोरीन की ड्रॉप छोड़ते हैं. यह क्लो्रीन ही पानी को बैक्टीरिया फ्री बनाती है.
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