GI Tag Rice: बासमती के त‍िल‍िस्म से मुक्त‍ि के ल‍िए तड़प रहे खुशबूदार व‍िशेष चावल

GI Tag Rice: बासमती के त‍िल‍िस्म से मुक्त‍ि के ल‍िए तड़प रहे खुशबूदार व‍िशेष चावल

Rice Export Ban: गैर बासमती सफेद चावल एक्सपोर्ट बैन की चक्की में प‍िस रहे भारत के जीआई टैग वाले चावल. इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट में ग्लोबल कोर्डिनेटर रह चुके साइंट‍िस्ट ने एक्सपोर्ट के ल‍िए गैर बासमती, बासमती और विशेष चावल के नाम से तीन कैटेगरी बनाने के द‍िए सुझाव. 

जीआई टैग वाले खुशबूदार चावलों के साथ अन्याय क्यों (Photo-Kisan Tak). जीआई टैग वाले खुशबूदार चावलों के साथ अन्याय क्यों (Photo-Kisan Tak).
ओम प्रकाश
  • Aug 10, 2023,
  • Updated Aug 10, 2023, 11:38 AM IST

चावल की उत्पत्त‍ि भारत में ही मानी जाती है. मसलन, भारत चावल की कई क‍िस्मों का घर है. ये सद‍ियों पुरानी बात है, जो भी आज भी शाश्वत है. अगर भारत को देशज तरीके से जानने-समझने की कोश‍िश करें तो चावल की एक से बढ़कर एक खुशुबूदार क‍िस्में यहां की खान-पान पंरपरा की गवाही देंगी. लेक‍िन आजाद भारत में चावल की कहानी सकुंच‍ित होती द‍िखाई देती है. वैश्व‍िक नक्शे में भारतीय चावल की पहचान अगर सरकारी दस्तावेजों से करने की कोश‍िश करेंगे तो भारतीय चावल की तीन कैटेगरी ही नजर आएगी, ज‍िसमें बासमती, गैर बासमती और टूटा चावल शाम‍िल है. चावल के इस सरकारी वर्गीकरण में सबसे अध‍िक अन्याय अगर क‍िसी के साथ हुआ है तो वह भारत में उगने वाले खुशुबूदार चावल हैं. आज की कहानी बासमती के त‍िल‍िस्म से मुक्त‍ि के ल‍िए तड़प रहे खुशबूदार व‍िशेष चावल पर केंद्र‍ित है.

बेशक हम बासमती चावल के एक्सपोर्ट से सालाना 38 हजार करोड़ रुपये की व‍िदेशी मुद्रा कमा रहे हैं, लेक‍िन बासमती का त‍िल‍िस्म इतना बड़ा कर द‍िया गया है क‍ि उससे भी अध‍िक गुणवत्ता वाले चावल भी बौने साब‍ित हो गए हैं. बहरहाल, बात करते हैं एक्सपोर्ट बैन के भेदभाव को लेकर. गैर बासमती सफेद चावल एक्सपोर्ट बैन की चक्की में भारत के वो व‍िशेष चावल भी प‍िस रहे हैं ज‍िनका दाम घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों बाजारों में बासमती से ज्यादा है और उन्हें सार्वजन‍िक व‍ितरण प्रणाली यानी पीडीएस में बांटा भी नहीं जाता. 

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राइस साइंट‍िस्ट ने उठाए सवाल

एक तरफ ज्यादा भाव और पीडीएस में शाम‍िल न होने की वजह से बासमती चावल का एक्सपोर्ट बैन नहीं क‍िया गया है तो दूसरी ओर गैर बासमती सफेद चावल एक्सपोर्ट के नाम पर व‍िशेष खुशबूदार चावलों के न‍िर्यात पर भी रोक लगा दी गई है. इससे व‍िशेष चावल के उत्पादकों और न‍िर्यातकों में सरकार के खिलाफ आक्रोश है. ऑल इंड‍िया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन ने सरकार को व‍िशेष चावल की एक अलग कैटेगरी बनाकर उसका अलग न‍िर्यात कोड बनाने की मांग की है. कुछ ऐसी ही मांग मशहूर राइस साइंट‍िस्ट प्रो. रामचेत चौधरी ने भी उठाई है, जो काला नमक चावल पर अपने खास काम के ल‍िए जाने जाते हैं.

जीआई टैग वाले चावल पर क्यों बैन

घरेलू मोर्चे पर महंगाई से लड़ने के मकसद से केंद्र सरकार ने 20 जुलाई से गैर बासमती सफेद चावल के एक्सपोर्ट पर रोक लगा दी है. इसकी गैर बासमती चावल एक्सपोर्ट में करीब 36 फीसदी की ह‍िस्सेदारी है. टूटे चावल का एक्सपोर्ट 8 स‍ितंबर 2022 से ही बैन है. बासमती को छोड़ दें तो अब स‍िर्फ सेला चावल ही एक्सपोर्ट हो सकता है. ज‍िसकी गैर बासमती चावल एक्सपोर्ट में ह‍िस्सेदारी लगभग 44 परसेंट है. लेक‍िन एक्सपोर्ट बैन की चपेट में हमारे वो व‍िशेष चावल भी आ गए हैं ज‍िन्हें जीआई टैग म‍िला हुआ है और ज‍िनका दाम बासमती से भी ज्यादा है. व‍िशेष चावल के साथ इतना भेदभाव क्यों. भारत में कम से 15 ऐसे व‍िशेष चावल हैं ज‍िन्हें जीआई टैग म‍िला हुआ है. 

भारत के जीआई टैग वाले व‍िशेष चावल  

  • पलक्कडन मटका चावल, केरल
  • पोक्कली चावल, केरल
  • वायनाड जीरा कासला चावल, केरल
  • वायनाड गंधकसाला चावल, केरल
  • कालानमक चावल, उत्तर प्रदेश
  • कैपड (काइपाद) चावल, केरल
  • अजारा घनसाल चावल, महाराष्ट्र
  • अंबेमोहर चावल, महाराष्ट्र
  • असम का जोहा चावल, असम
  • गोबिंदोभोग चावल, पश्चिम बंगाल
  • तुलाईपंजी चावल, पश्चिम बंगाल
  • कतरनी चावल, बिहार
  • चोकुवा चावल, असम 
  • चक-हाओ चावल, मणिपुर

बासमती से अधिक वैल्यू वाले चावल

ऑल इंड‍िया राइस एक्सपोर्टर्स एसोस‍िएशन के सीन‍ियर एग्जीक्यूट‍िव डायरेक्टर ब‍िनोद कौल ने 'क‍िसान तक' से कहा क‍ि बासमती राइस की तरह व‍िशेष सुगंध‍ित चावल का एक अलग एचएसएन कोड (Harmonized System Nomenclature) बन जाए तो इनका एक्सपोर्ट आसान हो जाएगा. तब गैर बासमती सफेद चावल के साथ व‍िशेष चावल का एक्सपोर्ट भी नहीं बंद होगा. सुगंध‍ित स्पेशल वैराइटी की प्राइस वैल्यू बासमती से कहीं बहुत ज्यादा है. उसकी पीडीएस के ल‍िए खरीद भी नहीं होती. इसल‍िए उनका एक्सपोर्ट बैन करने का कोई तुक नहीं है. 

सरकार को द‍िया है सुझाव

एसोस‍िएशन ने कहा है क‍ि चावल की ज‍िन व‍िशेष क‍िस्मों की एक्सपोर्ट कीमत 700 डॉलर प्रत‍ि टन से अध‍िक हो उनका एक्सपोर्ट बैन न क‍िया जाए. इसे मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस घोष‍ित कर द‍िया जाए. कौल का कहना है क‍ि साल 2022-23 में बासमती चावल 89 रुपये प्रत‍ि क‍िलो पर एक्सपोर्ट हुआ. जबक‍ि काला नमक का एक्सपोर्ट प्राइस 106 रुपये के आसपास है. इसी तरह जीआई टैग वाले और भी कई चावल हैं ज‍िनका एक्सपोर्ट प्राइस बासमती से ऊंचा है. ऐसे में उनका एक्सपोर्ट खोला जाए. 

ऑर्डर म‍िला, एक्सपोर्ट नहीं हुआ

संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य और कृष‍ि संगठन (FAO) में चीफ टेक्न‍िकल ऑफीसर रह चुके प्रो. रामचेत चौधरी ने कहा क‍ि गैर बासमती सफेद चावल के एक्सपोर्ट बैन के साथ ही काला नमक भी बैन कर द‍िया गया है. पहले से ऑर्डर हैं लेक‍िन एक्सपोर्ट नहीं हो पा रहे हैं. गैर बासमती चावल पर मौजूदा निर्यात प्रतिबंध कई सवाल खड़े करता है. बासमती पर प्रतिबंध नहीं है क्योंकि यह भारत के जीआई क्षेत्र में किसानों और व्यापारियों के लिए प्रीमियम मूल्य लाता है. जबक‍ि, भारत में अब जीआई टैग वाली कई किस्में मौजूद हैं. इन सभी किस्मों को विशेष चावल के अंतर्गत रखा जा सकता है और बासमती के साथ निर्यात किया जा सकता है.

चावल की तीन श्रेणी बनाने का सुझाव

फिलीपीन्स स्थित इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट (इरी) में ग्लोबल कोर्डिनेटर रह चुके प्रो. चौधरी का कहना है क‍ि यदि सरकार बासमती क‍िस्म को चावल का अलग वर्ग मानकर काम करेगी तो दूसरी उससे अच्छी क‍िस्मों के साथ अन्याय होगा. इसल‍िए सरकार को एक्सपोर्ट के ल‍िए चावल की तीन श्रेणी बनाना चाह‍िए. गैर बासमती, बासमती और विशेष चावल. ऐसा हो जाएगा तब गैर-बासमती चावल पर रोक लगने के बाद भी व‍िशेष सुगंध‍ित चावल खासतौर पर जीआई टैग वाले चावल का एक्सपोर्ट बाध‍ित नहीं होगा. चौधरी ने केंद्र सरकार की एक्सपोर्ट संबंध‍ित एजेंस‍ियों को इसके ल‍िए पत्र ल‍िखा है.  

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