पूर्वोत्तर भारत के राज्य मेघालय में पहला नॉर्थ ईस्ट एफपीओ कॉन्क्लेव होने जा रहा है. खासी पहाड़ियों से घिरे उमियम (बारापानी) स्थित केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के कैंपस में यहां की खेती-किसानी को और आगे बढ़ाने के लिए इनवेस्टर समिट भी होगा. इसमें 'किसान तक' भी पहुंचा है. यहां 24 से 26 जून तक चलने वाले समिट से पहले हम आपको मेघालय की खेती-किसानी और उससे जुड़ी जानकारियां देंगे. देश में सबसे अधिक किसान आय वाला यह राज्य कृषि प्रधान है. इसकी करीब 80 फीसदी आबादी खेती पर ही निर्भर है. खेती के लिए पर्याप्त पानी है. यूं ही नहीं यहां पर सबसे अधिक बारिश होती है. दरअसल, मेघालय का मतलब ही होता है बादलों का घर.
बारापानी स्थित कॉलेज ऑफ पोस्ट ग्रैजुएट स्टडीज इन एग्रीकल्चरल साइंसेज में स्वायल साइंस के प्रोफेसर संजय स्वामी कहते हैं कि यहां की मिट्टी और जलवायु बाग़वानी फसलों के अनुकूल है. यहां फलों और सब्जियों का खूब उत्पादन होता है लेकिन इसे बढ़ने की और अपार संभावनाएं हैं. जिसकी कोशिश में सरकार जुटी हुई है.
प्रोफेसर स्वामी बताते हैं कि यहां के किसान चावल और मक्का खूब उगाते हैं. जबकि बागवानी फसलों में पाईनेपल, कटहल, केला और संतरे की बड़े पैमाने पर खेती होती है. जिसे खासी मेंडेरियन भी कहते हैं. अदरक और हल्दी का भी बड़े पैमाने पर उत्पादन हो रहा है. यहां की हल्दी बहुत खास है.
यहां ज्यादातर किसान जैविक खेती कर रहे हैं. लेकिन ऑर्गेनिक खाद बनाने का तरीका बिल्कुल अलग है. वो पत्तों और घास से ऐसी खाद बनाते हैं क्योंकि गोबर न के बराबर होता है. दरअसल, यहां के लोग गाय और भैंस बहुत कम पालते हैं. ऐसे में गोबर वाली ऑर्गेनिक खाद की बहुत कमी है. अगर कोई किसान गोबर की खाद मंगा कर खेत में डालेगा तो उत्पादन लागत बहुत बढ़ जाएगी. यहां एक ट्राली गोबर की खाद की कीमत 12 से 13 हजार रुपये तक है. यहां की मिट्टी लाल है. किसान रासायनिक खाद का बहुत कम इस्तेमाल करते हैं.
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मेघालय की एक खासियत यह भी है कि यहां किसानों की इनकम देश में सबसे अधिक है. साल 2019 में मेघालय के किसान परिवारों की मासिक आय 29,348 रुपए थी. किसानों की आय के मामले में देश के ज्यादातर राज्य इसके आसपास भी नहीं हैं. आखिर मेघालय में ऐसा क्या है जो यहां के किसानों की इनकम इतनी अधिक है.
हमें इस बात का जवाब मेघालय में लंबे समय से काम कर रहे कृषि वैज्ञानिक डॉ. एके सिंह ने दिया. उनका कहना है कि यहां के किसान जो फसलें उगाते हैं उनका दाम अच्छा मिलता है. वो यूरिया को आज भी दवाई बोलते हैं. उसका प्रयोग नहीं करना चाहते. ऑर्गेनिक खेती ज्यादा होने की वजह से फसलों की उत्पादन लागत कम है. हल्दी और अदरक जैसी फसलों के बीज किसान मार्केट से बहुत कम खरीदते हैं यानी बीज का खर्च भी बचता है. ट्रेडिशनल बीजों को तवज्जो देते हैं. इसलिए किसानों की औसत आय अच्छी है.
खेती की बात बिना पानी और मौसम के पूरी नहीं हो सकती. यहां के किसानों को सिंचाई के लिए पानी प्राकृतिक रूप से मिल जाता है. सबसे अधिक बारिश यहीं होती है. इसके लिए मशहूर चेरापूंजी का नाम तो आपने सुना ही होगा.
इससे जुड़ा एक दिलचस्प रिकॉर्ड भी है.भले ही सबसे ज्यादा बारिश के लिए चेरापूंजी का नाम लिया जाता हो, पर हकीकत में भारत ही नहीं पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा बारिश वाली जगह मेघालय का ही मासिनराम है. जिसका नाम गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज है. यहां सालाना औसत बारिश 11,872 मिलीमीटर होती है. जो चेरापूंजी से भी 100 मिलीमीटर ज्यादा है.