ओपन मार्केट सेल स्कीम के तहत रियायती दर पर गेहूं बेचने की घोषणा किए 12 दिन हो गए, लेकिन अब तक न तो गेहूं का दाम (Wheat Price) गिरा और न आटा का. हम यह बात सरकार की खुद की रिपोर्ट के आधार पर कह रहे हैं. जबकि, ई-नीलामी के पहले दौर में ही भारतीय खाद्य निगम (FCI) ने 9.2 लाख मीट्रिक टन गेहूं बेच दिया था. कमोडिटी विशेषज्ञों का कहना है कि दरअसल, दाम में कमी इसलिए नहीं हो रही है क्योंकि जितना गेहूं सस्ते में बेचा जाना है उतना सिर्फ दस दिन में ही खर्च हो जाता है. आटा बनाने के लिए जो तीन लाख टन गेहूं दिया गया है वो तो दो दिन की खपत जितना भी नहीं है.
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कमोडिटी के रिसर्चर इंद्रजीत पॉल कहते हैं कि गेहूं और आटा के एक्सपोर्ट पर बैन लगाकर भी सरकार इसके दाम पर काबू नहीं पा सकी है. ऐसे में अब इतने कम गेहूं की रियायती बिक्री से दाम पर बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ने वाला है. इससे माहौल भी नहीं बन पा रहा है. क्योंकि अपने देश में इसकी खपत बहुत है. ऐसा लगता है कि इस साल जब गेहूं कट रहा होगा तब भी दाम 28-29 सौ रुपये प्रति क्विंटल चल रहा होगा. किसान 2022 में गेहूं की मारामारी को देखते हुए इस बार बेचने की जल्दीबाजी नहीं करेंगे.
(Source: Department of Consumer Affairs)
केंद्रीय भंडार, भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (नेफेड) और राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता संघ लिमिटेड (एनसीसीएफ) को इस शर्त पर सिर्फ 2350 रुपये प्रति क्विंटल के रेट पर गेहूं दिया गया है कि वो 29.50 रुपये प्रति किलो के एमआरपी पर ही पैकेट पर बोल्ड उल्लेख के साथ 'भारत आटा' के नाम पर घरेलू आपूर्ति करेंगे.
उपभोक्ता कार्य, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के मुताबिक रियायती गेहूं के दूसरे चरण की ई-नीलामी 15 फरवरी को होगी. पहले चरण की नीलामी 1 और 2 फरवरी को हुई थी, जिसमें 1150 बोली लगाने वालों ने 9.2 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदा था.
भारतीय खाद्य निगम ने 1 और 2 फरवरी को आयोजित हुई पहली ई-नीलामी के सभी बोलीदाताओं को निर्देश दिए हैं कि वो आवश्यक मूल्य का भुगतान कर दें और देश भर में संबंधित डिपो से अपना स्टॉक तुरंत उठा लें. निर्देश में कहा गया है कि दाम को कंट्रोल करने के लिए भंडार वाले गेहूं को संबंधित बाजारों में उपलब्ध कराना जरूरी है.
एफसीआई का दावा है कि ई-नीलामी में बिकने वाले गेहूं का स्टॉक उठा लेने तथा बाजार में आटा उपलब्ध कराने के बाद इनकी कीमतों में गिरावट आना निश्चित है. हालांकि, अब तक मार्केट में ऐसा दिख नहीं रहा है. यह खुद उपभोक्ता मामले विभाग के प्राइस मॉनिटरिंग डिवीजन के आंकड़े कह रहे हैं.
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