वर्ष 2021-22 के खरीफ सीजन से धान की मिलिंग की समय सीमा को बढ़ाने से केंद्र सरकार के इनकार करने के बाद तेलंगाना सरकार ने कहा है कि इस निर्णय से राज्य सरकार पर कोई वित्तीय बोझ नहीं पड़ेगा. राज्य सरकार का कहना है कि उनके पास केंद्र के फैसले के नतीजतन, 2021-22 के खरीफ सीजन के बचे हुए स्टॉक में से दो लाख टन से अधिक चावल बचेगा. उस चावल का उपयोग राज्य सरकार PDS में करेगी. दरअसल, राज्य को 2021-22 के रबी सीजन से 30 अप्रैल 2023 तक बैकलॉग चावल की मिलिंग और डिलीवरी की अनुमति देते हुए केंद्र ने कहा है कि पिछले साल के खरीफ सीजन के बैकलॉग को स्वीकार करने का कोई सवाल ही नहीं है.
उन्होंने कहा कि यह भारतीय खाद्य निगम (FCI) को रबी सीजन के बैकलॉग चावल की मिलिंग और वितरण के लिए और विस्तार के लिए अनुमति नहीं देगा.
बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार तेलंगाना के नागरिक आपूर्ति आयुक्त अनिल कुमार ने इस चिंता का खंडन करते हुए कहा है कि खरीफ सीजन के बकाया के कारण राज्य सरकार पर वित्तीय बोझ पड़ सकता है. वहीं राज्य सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली PDS आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बचे हुए चावल का उपयोग करेगी.
उन्होंने कहा कि वचन बद्धता के अनुरूप वादा करके चावल नहीं देने वाले मिल मालिकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी और हम उन्हें बकाएदार घोषित करेंगे और उन पर 25 फीसदी की लेवी और पेनल्टी भी लगाएंगे. क्योंकि उनके वादा करके न देने से सरकार पर बोझ पड़ सकता है.
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PDS सरकार द्वारा चलाई गई प्रणाली है, जिसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली कहा जाता है. यह कम कीमत पर अनाज के वितरण और आपातकालीन स्थितियों में प्रबंधन को सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई एक प्रणाली है. इस प्रणाली की शुरुआत वर्ष 1947 में हुई थी जब देश आजाद हुआ था. दरअसल यह देश में गरीबों के लिए सब्सिडाइज्ड दरों पर खाद्य पदार्थों के वितरण का कार्य करता है. इसे भारत सरकार के उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के तहत स्थापित किया गया है और इसे केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा संयुक्त रूप से प्रबंधित किया जाता है.
'फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया' पीडीएस के लिए खरीद और रखरखाव का कार्य करता है, जबकि राज्य सरकारों को राशन और अन्य आवश्यक वस्तुओं का वितरण भी सुनिश्चित करना होता है. इसका लक्ष्य गरीब परिवारों खासकर दूर-दराज और पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों पर विशेष ध्यान देना है.