Explainer: गन्ना और मक्का की जोड़ी, बिहार के किसानों के लिए तरक्की की नई उम्मीद 

Explainer: गन्ना और मक्का की जोड़ी, बिहार के किसानों के लिए तरक्की की नई उम्मीद 

बिहार सरकार अगर गन्ना और मक्का को एक साथ जोड़कर खेती और उद्योग का नया मॉडल तैयार करती है, जो साल भर काम करे. सर्दियों में गन्ने से चीनी और एथेनॉल बनेगा, जबकि बाकी समय मक्के से एथेनॉल और पशु आहार तैयार हो. इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि बिहार का मक्का दूसरे राज्यों में भेजने की बजाय यहीं प्रोसेस होगा. इससे बिचौलियों की छुट्टी होगी और मक्का किसानों को भी चीनी मिल सिस्टम की तरह सीधा बैंक खाते में भुगतान मिलेगा. किसानों के लिए यह 'कैश क्रॉप' और रोजगार का बड़ा जरिया बनेगा.

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जेपी स‍िंह
  • नई दिल्ली,
  • Dec 13, 2025,
  • Updated Dec 13, 2025, 6:59 PM IST

बिहार में चीनी मिलों के खुलने का लंबा इंतजार अब खत्म होने की कगार पर है, लेकिन इस बार तैयारी केवल चीनी बनाने की नहीं, बल्कि उससे कहीं आगे की है. हाल ही में मुख्य सचिव प्रत्यय अमृत की अध्यक्षता में हुई उच्च स्तरीय बैठक ने राज्य में गन्ना और मक्का उद्योग को पुनर्जीवित करने की नई उम्मीद जगा दी है. सरकार का प्लान अब सिर्फ बंद मिलों को चालू करना नहीं है, बल्कि एक ऐसा 'एकीकृत सिस्टम' तैयार करना है जहां गन्ना और मक्का दोनों की प्रोसेसिंग एक ही जगह हो सके. इस बैठक में वित्त, उद्योग और कृषि विभाग के अधिकारियों ने हिस्सा लिया और यह तय किया गया कि पुराने ढर्रे को बदला जाएगा. गन्ना उत्पादक संघ ने भी इस मौके पर मंत्री संजय कुमार के सामने अपनी बात रखी है और गन्ने का भाव 600 रुपये प्रति क्विंटल करने की मांग की है. लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि अब बिहार को केवल कच्चा माल बेचने वाला राज्य नहीं, बल्कि 'प्रोसेसिंग हब' बनाने की तैयारी है. लक्ष्य साफ है—किसानों की आमदनी बढ़ाना और स्थानीय स्तर पर रोजगार पैदा करना.

'शुगर बेल्ट' और किसानों की उम्मीदें 

बिहार के गन्ना किसानों के लिए यह पहल किसी संजीवनी से कम नहीं है. राज्य में गन्ने की खेती मुख्य रूप से पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, गोपालगंज, सीतामढ़ी और मुजफ्फरपुर जैसे जिलों में होती है. ये जिले बिहार का 'शुगर बेल्ट' कहलाते हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि केवल मिलें चालू करने से काम नहीं चलेगा, बल्कि खेती के तरीके में भी बदलाव जरूरी है. नई रणनीति के तहत, गन्ने की ऐसी उन्नत किस्में विकसित की जाएंगी जो कम लागत में ज्यादा पैदावार दें. इसके साथ ही, 'इंटर-क्रॉपिंग' को बढ़ावा दिया जाएगा. इसका मतलब है कि किसान गन्ने के साथ-साथ आलू, दाल या सब्जियों की खेती भी करें. इससे किसानों की प्रति एकड़ आमदनी दोगुनी हो सकती है. साथ ही, किसानों की सबसे बड़ी मांग यह है कि चीनी मिलों की तरह ही गन्ने का भुगतान पारदर्शी हो और तोलने की मशीनें मिल के पास लगें, ताकि घटतौली का डर खत्म हो.

मक्का उत्पादन और बाजार का गणित 

बिहार के दूसरे सबसे बड़े खजाने यानी मक्का की, जिसे 'पीला सोना' भी कहा जाता है. बिहार मक्का उत्पादन में देश का एक प्रमुख राज्य है. यहां मक्का की खेती मुख्य रूप से सीमांचल और कोसी क्षेत्र में होती है. पूर्णिया, कटिहार, भागलपुर, मधेपुरा, सहरसा, खगड़िया और समस्तीपुर इसके प्रमुख उत्पादक जिले हैं. बिहार में सालाना लगभग 35 से 40 लाख मीट्रिक टन मक्का का उत्पादन होता है. यहां की खास बात यह है कि यहां तीनों मौसम रबी, खरीफ और गरमा में मक्का होता है, लेकिन 'रबी मक्का' अपनी उच्च गुणवत्ता और दाने के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. विडंबना यह है कि बिहार का यह उच्च कोटि का मक्का यहां प्रोसेस होने के बजाय पंजाब, हरियाणा, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों में भेजा जाता है. वहां इसका इस्तेमाल पोल्ट्री फीड स्टार्च और एथेनॉल बनाने में होता है. यानी कच्चा माल बिहार लेकिन उससे बनने वाले प्रोडक्ट और मुनाफा दूसरे राज्यों का होता है.

समस्या का असली समाधान 

बिहार की सबसे बड़ी समस्या यह है कि यहां प्रोसेसिंग यूनिट्स की कमी है, जिसका फायदा बिचौलिए उठाते हैं. मक्का किसान अपनी फसल औने-पौने दाम पर व्यापारियों को बेचने को मजबूर होते हैं क्योंकि उनके पास स्टोरेज या डायरेक्ट मिल में बेचने की सुविधा नहीं होती. यहीं पर 'एकीकृत प्रोसेसिंग मिल' का विचार गेम-चेंजर साबित हो सकता है. इसका मॉडल यह है कि एक ही फैक्ट्री परिसर में चीनी मिल, एथेनॉल प्लांट और पोल्ट्री/डेयरी फीड का कारखाना साथ-साथ चले. जब गन्ने का सीजन हो तो मिल गन्ने से चीनी और एथेनॉल बनाए. जब गन्ने का सीजन खत्म हो जाए, तो वही एथेनॉल प्लांट मक्के और टूटे चावल का उपयोग करके साल भर चालू रहे. साथ ही, मक्के और एथेनॉल उत्पादन से जो बॉये उत्पाद निकलता है, जिसे DDGS कहते हैं, वह उच्च प्रोटीन वाला पशु आहार है. इससे वहीं के वहीं पोल्ट्री और डेयरी फीड तैयार हो जाएगा, जो अभी हमें दूसरे राज्यों से मंगवाना पड़ता है.

रोजगार और भुगतान का नया सिस्टम

अगर बिहार सरकार इस 'इंटीग्रेटेड मॉडल' को लागू करती है, तो इसके दूरगामी परिणाम होंगे. सबसे पहला फायदा भुगतान प्रणाली में होगा. जैसे अभी चीनी मिलें किसानों के बैंक खाते में सीधा पैसा भेजती हैं, वैसे ही मक्का किसानों को भी 'डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर' (DBT) का लाभ मिलना चाहिए. इससे बिचौलियों की भूमिका खत्म हो जाएगी और किसानों को सही दाम मिलेगा. दूसरा बड़ा फायदा रोजगार का होगा. जब प्रोसेसिंग बिहार के अंदर ही होगी, तो पोल्ट्री और डेयरी फीड की फैक्ट्रियां यहां लगेंगी, जिससे हजारों युवाओं को नौकरी मिलेगी. अभी बिहार का पैसा फीड खरीदने में दूसरे राज्यों में जाता है, वह पैसा बिहार में ही घूमेगा. मुख्य सचिव के निर्देश पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों की मदद ली जा रही है ताकि बंद पड़ी मिलों के दस्तावेजों की जांच कर एक ठोस रोडमैप तैयार किया जा सके. अगर गन्ने की मिठास के साथ मक्के की ताकत मिल जाए, तो बिहार न केवल आत्मनिर्भर बनेगा, बल्कि देश का प्रमुख 'फूड एंड एनर्जी हब' बनकर उभरेगा.

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