
उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में अक्सर देखा गया है कि किसान धान, गन्ना या आलू की फसल लेने के बाद गेहूं की बुवाई करते हैं. पिछली फसल की कटाई में देरी होने के कारण गेहूं की बुवाई 'पिछैती' या 'बहुत पिछैती' (जनवरी तक) हो जाती है. आमतौर पर, पुरानी किस्में देर से बुवाई करने पर गर्मी की मार झेल नहीं पाती थीं और उनका दाना पिचक जाता था, जिससे पैदावार गिर जाती थी. लेकिन HD 3298 को विशेष रूप से इसी समस्या के समाधान के लिए तैयार किया गया है. यह किस्म बहुत देर से बुवाई की स्थिति में भी तेजी से बढ़ती है और कम समय में पक कर तैयार हो जाती है. यह किस्म लगभग 100 से 105 दिनों में पक जाती है, जिससे किसान अगली फसल की तैयारी भी समय पर कर सकते हैं.
किसी भी नई किस्म की सफलता उसकी पैदावार क्षमता पर निर्भर करती है. वैज्ञानिकों के अनुसार, HD 3298 की औसत पैदावार बहुत देर से बुवाई की स्थिति में भी 39.0 क्विंटल प्रति हेक्टेयर दर्ज की गई है, जबकि इसकी अधिकतम पैदावार क्षमता 47.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक जा सकती है. जहां पुरानी किस्में देर से बुवाई में 30-35 क्विंटल तक सिमट जाती थीं, वहीं यह नई किस्म किसानों को प्रति हेक्टेयर 4 से 8 क्विंटल तक अधिक अनाज दे सकती है. यह अतिरिक्त उत्पादन सीधे तौर पर किसान की आमदनी बढ़ाने में मदद करेगा.
HD 3298 केवल पेट भरने के लिए नहीं, बल्कि कुपोषण से लड़ने के लिए भी एक हथियार है. इसे 'बायोफोर्टिफाइड' किस्म की श्रेणी में रखा गया है. सामान्य गेहूं की तुलना में इसमें पोषक तत्वों की मात्रा काफी अधिक है. इसमें प्रोटीन की मात्रा लगभग 12.12% है, जो शरीर के विकास और मजबूती के लिए जरूरी है. इसके अलावा, इसमें आयरन की मात्रा 43.1 पीपीएम (ppm) है, जो कि सामान्य किस्मों से काफी ज्यादा है.
जलवायु परिवर्तन के कारण मार्च और अप्रैल महीने में अचानक तापमान का बढ़ जाना गेहूं की फसल के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है. तेज गर्मी के कारण गेहूं का दाना दूधिया अवस्था में ही सूखने लगता है. लेकिन HD 3298 को 'क्लाइमेट-रेजिलिएंट यानी जलवायु-अनुकूल बनाया गया है. यह किस्म 'टर्मिनल हीट स्ट्रेस' यानी पकते समय की गर्मी को सहन करने की खास क्षमता रखती है. इसके अलावा, यह किस्म कई गंभीर बीमारियों जैसे पीला रतुआ, भूरा रतुआ, करनाल बंट और पाउचरी मिल्ड्यू के प्रति भी प्रतिरोधी है.
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने इस किस्म को मुख्य रूप से उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों (NWPZ) के लिए अनुशंसित (Recommend) किया है. इन क्षेत्रों में पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा और उदयपुर को छोड़कर), पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्से, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के तराई क्षेत्र शामिल हैं. इन राज्यों के किसान, जो सिंचित अवस्था में खेती करते हैं और जिनकी बुवाई किसी कारणवश जनवरी के पहले सप्ताह तक खिंच जाती है, वे आंख मूंदकर इस किस्म पर भरोसा कर सकते हैं. इसकी खेती से न केवल उनकी उपज सुरक्षित रहेगी, बल्कि उन्हें बाजार में क्वालिटी वाले अनाज का बेहतर दाम भी मिलेगा.
संक्षेप में कहें तो, HD 3298 उन किसानों के लिए एक 'स्मार्ट चॉइस' है जो बदलते मौसम और खेती की मजबूरियों के बीच भी मुनाफे की खेती करना चाहते हैं. उच्च पैदावार, रोग प्रतिरोधक क्षमता और पोषण का यह अनोखा संगम निश्चित रूप से भारतीय किसानों की तकदीर बदलने में मददगार साबित होगा.