महाराष्ट्र सोयाबीन का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, लेकिन यहां के किसान इसकी खेती करके इस साल बहुत पछता रहे हैं. क्योंकि दाम एमएसपी से भी बहुत कम मिल रहा है. चन्द्रपुर जिले की वरोरा शेगांव मंडी में सोयाबीन का न्यूनतम दाम सिर्फ 3000 रुपये प्रति क्विंटल रह गया है, जो एमएसपी से 1600 रुपये प्रति क्विंटल कम है. केंद्र सरकार ने एमएसपी घोषित करते हुए माना था कि किसानों को इसकी उत्पादन लागत 3029 रुपये प्रति क्विंटल पड़ती है. यानी उत्पादन लागत के ही जितना दाम मिल रहा है. उसे बाजार तक ले जाने का खर्च कग है. इसकी एमएसपी 4600 रुपये है. इसलिए किसानों को इस साल सोयाबीन की खेती में काफी घाटा हो रहा है.
वरोरा शेगांव मंडी में 17 मार्च को अधिकतम दाम 4000 और औसत दाम 3500 रुपये प्रति क्विंटल रहा. यह भी एमएसपी से कम है. वर्तमान में सोयाबीन देश में कुल तिलहन फसलों का 42 प्रतिशत और कुल खाद्य तेल उत्पादन में 22 प्रतिशत का योगदान दे रहा है. जनसंख्या वृद्धि के साथ खाद्य तेलों की मांग बढ़ रही है, इसके बावजूद सोयाबीन की खेती करने वाले किसानों को एमएसपी से कम दाम मिल रहा है. कहा जाता है कि सोयाबीन में खाद्य तेल के उत्पादन में भारत को आत्मनिर्भर बनाने की क्षमता है लेकिन अगर दाम कम मिलेगा तो किसान खेती छोड़ने लगेंगे.
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राज्य के किसानों का कहना है कि 2021 में उन्हें सोयाबीन का सबसे ज्यादा 11 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक का दाम मिला था. उसके बाद कभी इतना पैसा नहीं नहीं मिला. किसानों का कहना है कि दाम 7000 से ज्यादा मिले तब फायदा होगा. महाराष्ट्र स्टेट एग्रीकल्चर प्राइस कमीशन के चेयरमैन पाशा पटेल के अनुसार महाराष्ट्र में सोयाबीन उत्पादन की लागत प्रति क्विंटल 6234 रुपये आती है. यह लागत चार कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा दी गई रिपोर्ट पर आधारित है. इसलिए इससे ज्यादा दाम मिलने पर ही फायदा है.
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