दुनिया के सबसे बड़े राइस एक्सपोर्टर भारत ने इस साल चावल के अंतरराष्ट्रीय व्यापार को लेकर अपना रुख बिल्कुल बदल दिया है. पहले चावल एक्सपोर्ट बढ़ाने की कोशिश हो रही थी लेकिन, अब ऐसा लग रहा है कि इसे घटाने वाली पॉलिसी पर काम हो रहा है. यही वजह है कि इस वक्त हर तरह के चावल एक्सपोर्ट पर किसी न किसी तरह की सरकारी शर्त लगी हुई है. किसी का एक्सपोर्ट बैन है तो किसी पर एक्सपोर्ट ड्यूटी लगी हुई है और किसी पर भारी भरकम न्यूनतम निर्यात मूल्य (MEP) फिक्स कर दिया गया है. हालात ऐसे हो गए हैं कि इस वक्त चावल का इंटरनेशनल ट्रेड आसान नहीं है. इसकी वजह से न सिर्फ अपने देश के एक्सपोर्टरों में हाहाकार मचा हुआ है बल्कि कई दूसरे देश हमारे सामने चावल के लिए गिड़गिड़ा रहे हैं. अगर कोई देश हमारा मित्र है और वो विशेष आग्रह कर रहा है तभी हम उसे चावल देने का भरोसा दे रहे हैं. गेहूं का एक्सपोर्ट पहले ही सरकार ने 13 मई 2022 से अब तक बैन रखा हुआ है.
सवाल यह है कि सरकार चावल को लेकर इतनी चौकन्ना क्यों है? ऐसा भी नहीं है कि उत्पादन कम हुआ है या फिर धान की आने वाली फसल का रकबा कम हो गया है. तो फिर सरकार आखिर क्यों चावल को लेकर इस तरह के फैसले ले रही है जिससे विदेशी मुद्रा का भी नुकसान होगा. चावल की कौन सी खिचड़ी पकाई जा रही है, जिससे किसानों को नुकसान पहुंच रहा है? विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार की चिंता घरेलू मोर्चे पर महंगाई को काबू करने की है. इसलिए उसका ध्यान किसान पर कम, कंज्यूमर पर अधिक है. चावल पर लिए गए सरकारी फैसलों की वजह से किसानों को धान का उतना दाम नहीं मिल पा रहा है जितना मिलना चाहिए. बासमती धान का दाम पिछले साल के मुकाबले 800 रुपये क्विंटल तक कम हो गया है.
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पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया चल रही है. लोकसभा चुनाव में भी अब बहुत देर नहीं है. विशेषज्ञों का मानना है कि चुनावों को देखते केंद्र सरकार चावल की कीमतों पर काबू रखने की हर मुमकिन कोशिश करेगी. ताकि इसकी महंगाई न बढ़े. क्योंकि महंगाई बढ़ेगी तो सत्ताधारी पार्टी को नुकसान होगा. पहले ही एक साल में चावल के औसत दाम में 4.5 रुपये और अधिकतम भाव में 10 रुपये प्रति किलो की वृद्धि हो चुकी है.
उपभोक्ता मामले विभाग के प्राइस मॉनिटरिंग डिवीजन के अनुसार 16 अक्टूबर 2022 को भारत में चावल का औसत दाम 38.07 जबकि अधिकतम दाम 60 रुपये प्रति किलो था. जबकि 16 अक्टूबर 2023 को चावल का औसत दाम 42.57 और अधिकतम भाव 70 रुपये प्रति किलो हो गया. महंगे होते चावल और चुनावी चिंता के बीच अलनीनो यानी सूखे के संभावित संकट से अभी हम मुक्त नहीं हुए हैं. ऐसे में सरकार सबसे पहले अपनी घरेलू खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहती है. पहले खुद के हितों को देखना है फिर दूसरे देशों की जरूरतों को देखा जाएगा.
कृषि क्षेत्र के एक जानकार से जब मैंने यह सवाल किया कि इस तरह की नीतियों से तो चावल एक्सपोर्ट नहीं के बराबर रह जाएगा. फिर कहीं चावल इतना न हो जाए कि गोदामों में सड़ने लगे. यही नहीं चावल बेचकर जो डॉलर हम कमा रहे हैं उसका भी नुकसान होगा. एक्सपोर्ट बंद होने से किसानों को तो नुकसान हो ही रहा है. तो एक्सपर्ट ने कहा कि ऐसी नौबत नहीं आएगी, क्योंकि सरकार इथेनॉल बना लेगी. एक्सपोर्ट न होने से जितनी विदेशी मुद्रा का नुकसान हो रहा है उसकी भरपाई इथेनॉल बनाने से पूरी हो जाएगी.
भारत दुनिया का सबसे बड़ा चावल एक्सपोर्टर है. दुनिया के कुल चावल निर्यात में हमारी हिस्सेदारी 40 फीसदी है. भारत ने 2022-23 में रिकॉर्ड 90 हजार करोड़ रुपये का चावल एक्सपोर्ट किया था. कुछ कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि दरअसल, हम चावल नहीं बल्कि पानी एक्सपोर्ट कर रहे हैं. क्योंकि एक किलो चावल तैयार करने में करीब 3000 लीटर पानी की खपत होती है. यह एक अलग बहस का मुद्दा हो सकता है क्योंकि पंजाब और हरियाणा जैसे कई चावल चावल की खेती की वजह से अब जल संकट का सामना करने लगे हैं.
बहरहाल, 2022-23 में हमने 38,523.54 करोड़ रुपये का बासमती चावल एक्सपोर्ट किया. यह पिछले साल के मुकाबले 45.83 फीसदी अधिक है. इसी तरह हमने 51,088.69 करोड़ रुपये का गैर बासमती चावल एक्सपोर्ट किया, जो पिछले साल के मुकाबले करीब 12 फीसदी अधिक है. लेकिन इस साल सरकार ने एक्सपोर्ट को लेकर रणनीति बदल दी है. जिससे एक्सपोर्टर हैरान और परेशान हैं. जिस तरह की पॉलिसी अभी है उसके असर से एक्सपोर्ट घट जाएगा. जिसकी वजह से पहले जितनी विदेशी मुद्रा हमारे पास नहीं आ पाएगी.
खरीफ मार्केटिंग सीजन 2021-22 के मुकाबले 2022-23 में करीब 10 लाख मीट्रिक टन कम खरीद हुई है. इतनी कमी कोई बड़ी चिंता का विषय नहीं है. एफसीआई के अनुसार 2022-23 में सरकार ने 847.66 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा है. जबकि 2021-22 में हमने 857.30 और 2020-21 में 895.65 लाख टन धान खरीदा गया था. इतने धान की खरीद कभी नहीं हुई थी.
अब चावल उत्पादन की भी बात कर लेते हैं. साल 2021-22 में 1294.71 लाख मीट्रिक टन चावल का उत्पादन हुआ था. जबकि 2022-23 में 1355.42 लाख मीट्रिक टन चावल पैदा हुआ है. यानी पिछले साल के मुकाबले 60.71 लाख टन अधिक पैदावार हुई है. फिर इतना संकट क्यों है. फिर चावल का दाम क्यों बढ़ रहा है. यह बड़ा सवाल है.
यही नहीं धान के मौजूदा सीजन में 2022 के मुकाबले रकबा 7.68 लाख हेक्टेयर बढ़ गया है. केंद्र सरकार ने खरीफ फसलों के रकबे का 29 सितंबर को जो फाइनल आंकड़ा जारी किया है उसके अनुसार इस साल 411.96 लाख हेक्टेयर में धान की रोपाई हुई है. जबकि साल 2022 में 404.27 लाख हेक्टेयर ही एरिया कवर हुआ था.
धान की बुवाई तो बढ़ी है लेकिन इस बार बारिश का पैटर्न बहुत खराब रहा है, इस पर भी गौर करने की जरूरत है. इसका असर उत्पादन पर पड़ सकता है. अल नीनो के संभावित प्रभाव के बारे में चिंताएं बनी हुई हैं. उत्पादन में किसी भी तरह की कमी से वैश्विक आपूर्ति में कमी आने का खतरा है. कीमतों में नए सिरे से तेजी आ सकती है. इसलिए बुवाई ज्यादा होने के बावजूद सरकार इस मामले में फूंक-फूंककर कदम उठा रही है.
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हालांकि, बासमती का मसला कुछ और भी लगता है. क्योंकि इसका एक्सपोर्ट 900 से 1000 डॉलर प्रति टन पर होता आया है. और इसका न्यूनतम निर्यात मूल्य 1200 डॉलर प्रति टन तय कर दिया गया है. यह भारत का प्रीमियम चावल है. जो पीडीएस में नहीं दिया जाता. भारत अपने कुल बासमती उत्पादन का करीब 80 फीसदी एक्सपोर्ट कर देता है. ऐसे में एक्सपोर्टर परेशान हैं कि आखिर इसका एक्सपोर्ट क्यों कम करने की कोशिश की जा रही है. कुल मिलाकर चावल एक्सपोर्ट के मसले पर सरकार जो खिचड़ी पका रही है उसके मूल में यही है कि घरेलू मोर्चे पर महंगाई काबू में रहे, जिससे सियासत की खिचड़ी पकती रहे और बिरियानी बनती रहे.