अगले साल तक खत्म हो सकती है बासमती चावल में कीटनाशकों की समस्या, जान‍िए क्या होगा फायदा?

अगले साल तक खत्म हो सकती है बासमती चावल में कीटनाशकों की समस्या, जान‍िए क्या होगा फायदा?

Disease Resistant Basmati Variety: बासमती चावल का एक्सपोर्ट और बढ़ाने के ल‍िए रोगरोधी क‍िस्मों का व‍िस्तार जरूरी है, ताक‍ि कोई भी देश कीटनाशकों का मुद्दा उठाकर भारत के कृष‍ि उपज की साख पर सवाल न उठा सके. पूसा के वैज्ञान‍िकों ने व‍िकस‍ित की हैं झुलसा और झोका रोग न लगने वाली तीन क‍िस्में.  

बासमती चावल का क‍ितना है एक्सपोर्ट (Photo-Kisan Tak).  बासमती चावल का क‍ितना है एक्सपोर्ट (Photo-Kisan Tak).
ओम प्रकाश
  • New Delhi ,
  • Jul 19, 2023,
  • Updated Jul 19, 2023, 11:51 AM IST

राइस का ब‍िग बॉस कहे जाने वाले बासमती चावल में कीटनाशक म‍िलने की समस्या अगले साल तक खत्म हो सकती है. क्योंक‍ि पूसा ने जो तीन रोगरोधी क‍िस्में व‍िकस‍ित की हैं उनका इतना बीज हो जाएगा क‍ि उससे पूरे बासमती बेल्ट में इन्हीं क‍िस्मों की खेती हो सकेगी. इन क‍िस्मों में पूसा बासमती 1847, पूसा बासमती 1885 और पूसा बासमती 1886 शाम‍िल हैं. अभी बीज की कमी की वजह से स‍िर्फ 2 लाख हेक्टेयर में ही रोगरोधी क‍िस्मों की बुवाई हो सकी है. जबक‍ि, भारत में लगभग 20 लाख हेक्टेयर में बासमती धान की खेती होती है. यानी बासमती धान का भारत में जो कुल एर‍िया है उसके 10 फीसदी में रोगरोधी क‍िस्में पहुंच चुकी हैं. हालांक‍ि, इन क‍िस्मों को आए अभी दो ही साल हुए हैं. अब तक 20 हजार क‍िसानों के पास इसका बीज पहुंचा है.  

'क‍िसान तक' से बातचीत में भारतीय कृष‍ि अनुसंधान संस्थान (IARI) पूसा के न‍िदेशक डॉ. अशोक कुमार स‍िंह ने यह दावा क‍िया है. पूसा की ये तीन नई क‍िस्में पत्ती का जीवाणु झुलसा (Bacterial Leaf Blight) और झोका रोग (Blast Disease) से मुक्त हैं. इनमें ऐसे जीन हैं क‍ि इनमें ये रोग नहीं लगेंगे. इन्हीं रोगों से न‍िपटने के ल‍िए ही क‍िसान अपने खेतों में कीटनाशकों का स्प्रे करते हैं और फ‍िर चावल में उसका अवशेष न‍िकलता है. ज‍िससे एक्सपोर्ट में द‍िक्कत आती है. 

इसे भी पढ़ें: बासमती चावल का बंपर एक्सपोर्ट, पर कम नहीं हैं पाक‍िस्तान और कीटनाशकों से जुड़ी चुनौत‍ियां 

गुणवत्ता में कोई अंतर नहीं

पूसा संस्थान के कृष‍ि वैज्ञान‍िकों ने अपनी सबसे लोकप्र‍िय क‍िस्म 1121 को सुधार कर 1885, पूसा बासमती-6 (1401) को अपग्रेड करके पूसा बासमती-1886 और पूसा बासमती 1509 को अपग्रेड करके पूसा बासमती-1847 बनाया है. ज‍िन क‍िस्मों को सुधार कर रोगरोधी बनाया गया है, बासमती के कुल रकबे में उनकी ह‍िस्सेदारी लगभग 95 परसेंट है. 

डॉ. स‍िंह का दावा है क‍ि अपग्रेड की गई क‍िस्मों के स्वाद, गुणवत्ता और खुशबू में कोई अंतर नहीं है, इसल‍िए इसका तेजी से व‍िस्तार हो रहा है. अगले साल तक इतना बीज हो जाएगा क‍ि उससे बासमती का सौ फीसदी एर‍िया कवर क‍िया जा सकता है. नई क‍िस्मों में कीटनाशकों की जरूरत नहीं है इसल‍िए क‍िसानों को प्रत‍ि एकड़ 3000 रुपये तक की बचत होगी. जो क‍िसान प‍िछले दो साल से इन क‍िस्मों की बुवाई कर रहे हैं उनसे बातचीत में यह तथ्य सामने आया है.

कीटनाशकों से द‍िक्कत क्यों है?

भारत कृष‍ि उत्पादों के एक्सपोर्ट से सबसे ज्यादा पैसा बासमती चावल के जर‍िए कमाता है. साल 2022-23 में बासमती एक्सपोर्ट बढ़कर 38,524 करोड़ रुपये की र‍िकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया है. कृष‍ि उत्पादों के कुल न‍िर्यात में अकेले बासमती चावल की ह‍िस्सेदारी 17.4 फीसदी हो गई है. इसके बावजूद चावल में कीटनाशकों का अवशेष म‍िलने की वजह से कुछ देशों में एक्सपोर्ट कम हुआ है. खासतौर पर यूरोपीय यून‍ियन में. लेक‍िन उससे भी बड़ी बात भारत के साख से जुड़ी हुई है. ऐसे में अब बासमती की रोगरोधी क‍िस्में उन देशों का मुंह बंद देंगी जो चावल में कीटनाशकों के अवशेष का मुद्दा उठाते हैं. 

कीटनाशक डालना क्यों थी मजबूरी

बासमती धान में झुलसा और झोका रोग से निपटने के लिए क‍िसान ट्राइसाइक्लाजोल नामक कीटनाशक का छ‍िड़काव करते हैं. इसी वजह से चावल में कीटनाशक का अवशेष म‍िलता है. कई बार चावल में कीटनाशकों की मात्रा उसके अधिकतम अवशेष स्तर (MRL) से ज्यादा हो जाती है. आठ और दवाईयां भी एक्सपोर्ट में बाधक मानी जाती हैं. लेक‍ि‍न अब इनकी जरूरत ही नहीं पड़ेगी. यूरोपीय संघ ने ट्राइसाइक्लाजोल की अधिकतम अवशेष सीमा (MRL) 0.01 पीपीएम (0.01 मिलीग्राम/किग्रा) तय की है. यानी 100 टन चावल में 1 ग्राम अवशेष से ज्यादा हुआ तो वहां पर एक्सपोर्ट नहीं हो पाएगा. अमेरिका में यह 0.3 और जापान में 0.8 पीपीएम है. 

रोगरोधी के समर्थन में एक्सपोर्टर 

पंजाब बासमती एक्सपोटर्स एसोसिएशन भी रोगरोधी क‍िस्मों के समर्थन में है. एसोस‍िएशन के निदेशक अशोक सेठी का कहना है क‍ि इन तीन क‍िस्मों ने क‍िसानों और एक्सपोर्टरों की बड़ी समस्या का समाधान कर द‍िया है. क्योंक‍ि अब कीटनाशक डालने की जरूरत ही नहीं होगी. जब कीटनाशकों का छ‍िड़काव ही नहीं होगा तब एक्सपोर्ट में कोई बाधा आने का सवाल ही पैदा नहीं होगा. हालांक‍ि, कुछ ऐसी ताकतें भी हैं जो नहीं चाहेंगी क‍ि रोगरोधी क‍िस्में सक्सेज हों, क्योंक‍ि उनके कीटनाशकों का बारोबार प्रभाव‍ित होगा.

क्यों खास हैं रोगरोधी क‍िस्में 

  • पूसा बासमती 1885: इसका पौधा औसत कद का होता है और इसमें पूसा बासमती 1121 के समान अतिरिक्त लंबे पतले अनाज की गुणवत्ता है. यह मध्यम अवधि की किस्म है जो 135 दिन में पकती है. औसत उपज 46.8 क्व‍िंटल (4.68) टन प्रति हेक्टेयर होती है. 
  • पूसा बासमती 1886: यह क‍िस्म 145 दिन में पकती है. इसकी औसत उपज 44.9 क्व‍िंटल (4.49 टन) प्रति हेक्टेयर होती है. 
  • पूसा बासमती 1847: यह जल्दी पकने वाली और अर्ध-बौनी बासमती चावल की किस्म है, जिसकी औसत उपज 57 क्व‍िंटल (5.7 टन) प्रति हेक्‍टेयर है. यह किस्म 2021 में व्यावसायिक खेती के लिए जारी की गई थी.

इसे भी पढ़ें: बासमती को बचाने के ल‍िए सरकार लगा सकती है 9 कीटनाशकों पर बैन

 

MORE NEWS

Read more!