
पंजाब सरकार उन एग्रो केमिकल्स पर बैन लगाने की तैयारी में जुट गई है जो बासमती चावल के एक्सपोर्ट में बाधा बन रहे हैं. इस संबंध में राज्य सरकार ने 11 जुलाई को चंडीगढ़ में एक बैठक बुलाई हुई है. माना जा रहा है कि इस दौरान बासमती धान में इस्तेमाल किए जाने वाले 9 कीटनाशकों के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाने का फैसला हो सकता है. बासमती चावल के एक्सपोर्ट से राज्य के पास बहुत पैसा आता है. ऐसे में सरकार नहीं चाहती कि कीटनाशकों के इस्तेमाल के कारण एक्सपोर्ट में कुछ कमी आए. पंजाब बासमती की खेती करने वाले आधिकारिक क्षेत्रों में से एक है. देखने में आया है कि कई सूबों में कीटनाशकों का इस्तेमाल अधिकतम अवशेष स्तर ( MRL-Maximum Residue limit) से ज्यादा हो रहा है. इस वजह से कई देशों में चावल एक्सपोर्ट करने में दिक्कत आ रही है. खासतौर पर यूरोपीय यूनियन के देशों में जहां कीटनाशकों के अवशेष के मानक बहुत कड़े हैं.
बैठक की अध्यक्षता कृषि विभाग पंजाब के स्पेशल चीफ सेक्रेटरी केएपी सिन्हा करेंगे. विभाग के प्लांट प्रोटक्शन डिवीजन से इस संबंध में एक पत्र जारी करके संबंधित पक्षों को बुलाया गया है. इसमें एपिडा के अधीन आने वाले बासमती एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन के डायरेक्टर, पंजाब राइस मिलर्स एंड एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन अमृतसर, क्रॉप लाइफ इंडिया और क्रॉप केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के प्रतिनिधियों को बुलाया गया है. सूत्रों का कहना है कि सभी पक्षों की राय लेने के बाद बासमती चावल एक्सपोर्ट के लिए खतरनाक साबित हो रहे एग्रो केमिकल्स पर बैन लगाने का फैसला लिया जा सकता है.
ट्राइसाइक्लाजोल, प्रोपिकोनाजोल, प्रोफेनोफोस, एसेफेट, थियामेथोक्सम, बुप्रोफेजिन, क्लोरपाइरीफोस, कार्बेन्डाजिम और मेथैमिडोफोस नामक 9 एग्रो केमिकल्स ऐसे बताए जाते हैं जिन पर सरकार रोक लगा सकती है. कीटनाशक अधिनियम 1968 के तहत किसी भी एग्रो केमिकल पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार के पास ही है. राज्य सरकार सिर्फ 60 दिन के लिए रोक लगा सकती है. इन कीटनाशकों पर रोक लगने की संभावना से बासमती एक्सपोर्टर तो खुश हैं लेकिन एग्रो केमिकल इंडस्ट्री नाराज है. सरकार चाहती है कि फसलों में कीटनाशकों का इस्तेमाल कम से कम हो. ताकि कृषि उपज भी ठीक हो और एक्सपोर्ट में दिक्कत भी न आए.
अगर धान की खेती में रोग ही न लगे तो कोई किसान भला क्यों कीटनाशकों का इस्तेमाल करेगा? बासमती एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. रितेश शर्मा ने बताया कि बासमती धान की खेती करने वाले किसानों को खेत में कुछ रोगों और कीटों का सामना करना पड़ता है. मुख्य तौर पर जीवाणु झुलसा (Bacterial Leaf Blight) और झोका रोग (Blast Disease) लगता है. जिसके लिए किसान मजबूरी में कीटनाशक डालते हैं. जब चावल में उसका अवशेष मिलता है तब एक्सपोर्ट में वो फेल हो जाता है. इससे देश का नुकसान होता है.
यूरोपीय संघ ने ट्राइसाइक्लाजोल की अधिकतम अवशेष सीमा 0.01 पीपीएम (0.01 मिलीग्राम/किग्रा) तय की हुई है. इसका मतलब यह हुआ कि 100 टन चावल में 1 ग्राम अवशेष के बराबर. अमेरिका में यह 0.3 और जापान में 0.8 पीपीएम है. भारत दुनिया का सबसे बड़ा बासमती चावल उत्पादक देश है. इससे हर साल देश के पास करीब 34 हजार करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा आती है. ऐसे में हमें कीटनाशकों का इस्तेमाल करते वक्त सावधानी रखनी होगी.
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भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. अशोक कुमार सिंह के मुताबिक भारत के बासमती चावल में कीटनाशक की मात्रा कई देशों द्वारा तय इसके अधिकतम अवशेष स्तर (MRL) से ज्यादा मिल रही थी. जिससे एक्सपोर्ट में कमी आ रही थी. साल 2016 में यूरोपीय यूनियन को लगभग 5 लाख टन बासमती चावल का निर्यात होता था, जो 2019-20 में घटकर सिर्फ 2.5 लाख टन रह गया. इसलिए पूसा इंस्टीट्यूट ने बासमती की तीन रोगरोधी किस्में विकसित की हैं, जिनमें जीवाणु झुलसा और झोका रोग नहीं लगेगा. ये किस्में पूसा बासमती 1847, पूसा बासमती 1885 और पूसा बासमती 1886 हैं.
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