जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक चुनौती है जो भारतीय कृषि को गहराई से प्रभावित कर रहा है. यह विशेष रूप से फसलों की उपज और कृषि उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है. बढ़ते तापमान, असामान्य वर्षा पैटर्न और बढ़ती जलवायु अस्थिरता ने भारतीय कृषि के लिए नई चुनौतियां उत्पन्न की हैं. गेहूं और मक्का जैसी प्रमुख फसलों की उपज तापमान वृद्धि के कारण घट रही है. इन चुनौतियों का सामना करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) जलवायु के अनुकूल फसल किस्मों को विकसित करने और उनका प्रसार करने के लिए निरंतर प्रयासरत है. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा में ICAR द्वारा विकसित 109 जलवायु अनुकूल और जैव-सशक्त फसलों की किस्मों का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विमोचन किया. जलवायु परिवर्तन के विपरीत प्रभाव को कम करने के लिए ICAR के संस्थानों ने मक्का की भी किस्में विकसित की हैं. इसके बारे में डिटेल जानकारी यहां दे रहे हैं.
अधिक तापमान फसलों की वृद्धि और विकास को प्रभावित करता है. अत्यधिक गर्मी की स्थिति में फसलों की वृद्धि धीमी हो जाती है और मक्का की फसल में बालियों में दाना न बनना जैसी समस्याएं अधिक देखने को मिलती हैं, जिससे उपज में कमी होती है. जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटते हुए मक्का की फसल से बेहतर उपज प्राप्त करने के लिए ICAR के संस्थानों ने विभिन्न जलवायु क्षेत्रों को ध्यान में रखते हुए जलवायु अनुकूल और जैव-सशक्त 6 बेहतरीन किस्में विकसित की हैं. आइए जानते हैं इन किस्मों के बारे में, जिनकी खेती कर किसान बेहतर पैदावार प्राप्त कर सकते हैं.
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इसे आईसीएआर के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), पूसा, नई दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है. यह किस्म रबी मौसम में सिंचित क्षेत्रों के लिए बेहतर है और 120 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. प्रति हेक्टेयर 46.04 क्विंटल उपज देती है और इसमें 98 परसेंट पॉपिंग प्रतिशत होता है. इसे पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश (पश्चिमी क्षेत्र), महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु में उगाया जा सकता है. यह चारकोल रोट के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है.
भरतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, IARI पूसा, नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई नवीनतम मक्का किस्म है. यह किस्म खरीफ मौसम के लिए बेहतर है और 80 से 95 दिनों में पक जाती है. ये किस्म प्रति हेक्टेयर 56 से 84.33 क्विंटल तक उपज देती है. यह MLB, BLSB और TLB रोगों के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है. यह पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश (पश्चिमी क्षेत्र), महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान राज्यों के लिए अनुमोदित है.
यह किस्म सिंचित परिस्थितियों में खरीफ मौसम के लिए उपयुक्त है जिसे भरतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, IARI पूसा, नई दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है. ये किस्म 53 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. इसकी उपज 14 से 19 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है और यह 100 परसेंट मेल स्टेराइल है. इसमें कोई एंथर एक्सर्शन नहीं होता और यह चारकोल रोट के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है. इसे बिहार, झारखंड, ओडिशा, उत्तर प्रदेश (पूर्वी क्षेत्र), पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, गुजरात, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में उगाया जा सकता है.
यह सिंगल क्रॉस हाइब्रिड मक्का की किस्म रबी मौसम के लिए बेहतर है जिसे भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान, लुधियाना द्वारा विकसित किया गया है. ये किस्म 145 दिनों में पक जाती है. इसकी उपज क्षमता 92.36 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है. यह जैविक तनाव, MLB, ChR और TLB के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है और चारकोल रोग और फॉल आर्मीवर्म के प्रति मध्यम सहनशीलता दर्शाती है. इसे पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में उगाया जा सकता है.
यह सिंगल क्रॉस हाइब्रिड मक्का की किस्म खरीफ सिंचित परिस्थितियों के लिए बेहतर है जिसे भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान, लुधियाना की ओर से विकसित किया गया है. ये किस्म 90 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. इसकी औसत उपज 70.28 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है. यह जलभराव के प्रति मध्यम सहनशीलता और लॉजिंग के प्रति सहनशील है और TLB, MLB रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोध दिखाती है. यह चारकोल रोग और फॉल आर्मीवर्म के प्रति भी मध्यम सहनशीलता दर्शाती है. इसे पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, उड़ीसा, और पश्चिम बंगाल में उगाया जा सकता है.
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यह किस्म रबी मौसम में बोई जाने वाली बेबी कॉर्न की किस्म है, जो 102 दिनों में तैयार हो जाती है और प्रति हेक्टेयर 45.13 क्विंटल उपज देती है. इसे महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु में उगाया जा सकता है. यह TLB रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है. यह बेहतर किस्म है, जिसे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), पूसा, नई दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है. इन नई किस्मों के माध्यम से किसानों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में मदद मिलेगी और उनकी फसल की उत्पादकता में सुधार होगा.