पहलगाम आतंकी हमले के बाद बढ़े तनाव के बीच जम्मू-कश्मीर में भी लाइन ऑफ कंट्रोल (एलओसी) और अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर (आईबी) पर काफी हलचल देखी जा रही हैं. यहां के करीब बसे इलाकों पर फसल की कटाई जल्द से जल्द पूरी करने के लिए किसान दिन रात मेहनत कर रहे हैं. राज्य में करीब 200 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा है और यहां पर रहने वाले किसान फसल की कटाई पूरी करने के लिए समय से संघर्ष कर रहे हैं.
जम्मू, सांबा और कठुआ के तीन जिलों में करीब 1.25 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि पाकिस्तान की गोलाबारी की रेंज में आती है. त्रेवा, महाशे-दे-कोठे, चंदू चक, घराना, बुल्ला चक और कोरोटाना कलां जैसे गांवों में हलचल देखी जा रही है. यहां पर परिवार दिन-रात फसल की कटाई में लगे हैं. परिवार अनाज को सुखा रहे हैं और मिलों में पहुंचाने के लिए पैक कर रहे हैं. गेहूं और बाकी फसलों की कटाई 90 फीसदी से ज्यादा पूरी हो चुकी है. लेकिन बाकी की कटाई, पैकेजिंग और मिलों में भेजने की प्रक्रिया अभी भी बाकी है.
अरनिया सेक्टर के त्रेवा गांव के 50 साल के किसान संतोष सिंह ने कहा, 'हम कटाई पूरी करने के लिए समय से संघर्ष कर रहे हैं. अब बहुत कम समय बचा है.' त्रेवा पाकिस्तान बॉर्डर से सिर्फ 1.5 किलोमीटर दूर है और यहां पर गांववालों को पाकिस्तान रेंजर्स से सीधा खतरा है. 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए हमले में 26 लोगों की मौत के बाद से त्रेवा में किसान चिंतित है.
त्रेवा के एक और किसान राकेश कुमार कहते हैं, 'अलर्ट जारी कर दिया गया है. तहसीलदार ने कटाई की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए 20 हार्वेस्टर की व्यवस्था की है. इन बेल्टों में 95 प्रतिशत कटाई पहले ही पूरी हो चुकी है.' उनका कहना है, 'हम खतरे वाले क्षेत्र में रहते हैं. जब भी गोलाबारी शुरू होती है हमें मौत और विनाश का सामना करना पड़ता है.' सुचेतगढ़ गांव के किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाली राधिका देवी ने कहा कि उनके परिवार ने कुछ ही दिनों में गेहूं के 300 से अधिक बैग पैक किए हैं. उनका कहना था कि यह एक आपातकालीन स्थिति है. मिल मालिक अच्छा भुगतान कर रहे हैं और जल्दी से बैगों को सुरक्षित क्षेत्रों में पहुंचा रहे हैं.
कोरोटाना कलां की तारिका देवी ने भी इस बात को दोहराया. उनका कहना था कि पहलगाम हमले के बाद उन्हें सतर्क कर दिया गया था. अब जबकि हमारे इलाके में कटाई का अधिकांश काम पूरा हो चुका है, फसल को स्टॉक करने के लिए होड़ लगी है. गोलाबारी कभी भी फिर से शुरू हो सकती है.
इस बीच बढ़ते तनाव के बीच, मजदूर ढूंढना एक चुनौती बन गया है. सुचेतगढ़ के किसान कुलदीप कुमार ने कहा, 'बिहार और उत्तर प्रदेश के मजदूर, जो आमतौर पर कटाई के दौरान हमारी मदद करते हैं, ने इन प्रतिकूल परिस्थितियों में खेतों में काम करने से इनकार कर दिया है.' पंजाब की सीमा से लगे कठुआ जिले के पहाड़पुर से लेकर जम्मू जिले के चिकन नेक तक का कृषि क्षेत्र असुरक्षित बना हुआ है. यहां सीमा से पांच किलोमीटर के भीतर रहने वाले हजारों परिवार लगातार खतरे में हैं.
चंदू चक गांव के किसान सरदार तेग सिंह ने कहा कि डर तो हमेशा बना रहता है लेकिन इसकी आदत हो गई है. इस बार किसान बेहतर तरीके से तैयार हैं. उनका कहना था कि किसान न सिर्फ अपनी जान और पशुधन बचा सकते हैं बल्कि अपनी फसलों को भी बचाने में कामयाब हो रहे हैं. जबकि किसान पहले ऐसा हमेशा नहीं कर पाते थे.
आर एस पुरा के बासमती चावल उत्पादक संघ (बीआरजीए) के अनुसार, करीब 1 से 1.25 लाख हेक्टेयर भूमि को वर्ल्ड क्लास बासमती चावल के लिए जानी जाती है. नियमित तौर पर सीमा पार से होने वाली गोलाबारी से फसल प्रभावित होती है. भारत और पाकिस्तान ने फरवरी 2021 में नए सिरे से संघर्ष विराम पर सहमति जताई थी, लेकिन पहलगाम आतंकी हमले के बाद नाजुक शांति फिर से तनाव में आ गई है.
सीमा पर रहने वाले लोगों में जो डर है, वह उन्हें 2021 की याद दिलाता है. उस समय भीषण गोलाबारी की वजह से बड़े पैमाने पर लोगों को गांव खाली करना पड़ा था. साथ ही अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर से लगे इलाकों से संपत्ति और मवेशियों को नष्ट करना पड़ा था. गांववालों का कहना है कि इस बार स्थिति 2021 की गोलाबारी से भी बदतर होगी. उनकी मानें तो हालात 1971 के जैसे और उन्हें युद्ध होने की संभावना नजर आती है. लेकिन किसान इस बार बेहतर तरीके से तैयार हैं. जम्मू के सीमावर्ती क्षेत्र के किसानों के लिए, फसल कटाई का मौसम, जो आमतौर पर उत्सव और राहत से भरा होता है, अब चिंता, इमरजेंसी और अस्तित्व का मौसम बन गया है.
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