60 से 70 दिनों में तैयार हो जाती है ये फसल, मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में भी है नंबर 1

60 से 70 दिनों में तैयार हो जाती है ये फसल, मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में भी है नंबर 1

अगर आप खेती से अच्छी कमाई करना चाहते हैं और साथ ही अपनी जमीन की सेहत भी सुधारना चाहते हैं तो मूंग की खेती एक बेहतरीन विकल्प है. यह पर्यावरण के लिए तो फायदेमंद है ही, साथ ही किसानों के लिए भी फायदेमंद है.

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60 से 70 दिनों में तैयार हो जाती है ये फसल, मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में भी है नंबर 1मूंग की खेती

भारत में उगाई जाने वाली दलहनी फसलों में मूंग का महत्वपूर्ण स्थान है. इसमें 24 प्रतिशत प्रोटीन के साथ-साथ फाइबर और आयरन भी प्रचुर मात्रा में होता है. मूंग की शीघ्र पकने वाली और उच्च तापमान सहन करने वाली किस्मों के विकास के कारण जायद मौसम में मूंग की खेती लाभदायक होती जा रही है. मूंग की उन्नत तकनीक अपनाकर जायद मौसम में 10-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक फसल उत्पादन लिया जा सकता है. साथ ही यह कम समय में पककर तैयार हो जाती है. साथ ही दलहनी फसलों का इस्तेमाल मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने के लिए किया जाता है. 

कम समय, ज्यादा फायदा

मूंग एक ऐसी फसल है जो बहुत कम समय यानी लगभग 2 महीने में तैयार हो जाती है. इसका मतलब यह हुआ कि आप एक साल में मूंग के साथ अन्य फसलें भी ले सकते हैं.

बढ़ाती है मिट्टी की उर्वरता

मूंग की जड़ों में ऐसे खास बैक्टीरिया (राइजोबियम) होते हैं जो हवा से नाइट्रोजन लेकर मिट्टी में जमा कर देते हैं. इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और अगली फसल (जैसे गेहूं, धान) को कम खाद में भी अच्छा उत्पादन मिलता है.

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कम लागत, अच्छी कमाई

मूंग की खेती में ज्यादा खर्च नहीं आता. सिंचाई की जरूरत कम होती है और बाजार में इसकी अच्छी मांग रहती है, जिससे किसानों को मुनाफा मिलता है.

फसल चक्र में लाभकारी

मूंग को आप मुख्य फसलों (जैसे रबी और खरीफ) के बीच में बो सकते हैं. इससे खेत खाली नहीं रहता और मिट्टी को प्राकृतिक रूप से आराम मिलता है. 

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ऐसे करें मूंग की खेती

खेत की पहली जुताई हैरो या राइजर हल से करनी चाहिए. इसके बाद कल्टीवेटर से दो-तीन जुताई करके खेत को अच्छी तरह भुरभुरा बना लेना चाहिए. आखिरी जुताई में समतलीकरण का इस्तेमाल करना बहुत जरूरी है, इससे खेत में नमी लंबे समय तक बनी रहती है. फसल को दीमक लगने से बचाने के लिए आखिरी जुताई से पहले खेत में क्विनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़कें और फिर उसे जुताई करके मिट्टी में मिला दें.

मूंग की इन किस्मों की करें बुवाई

पूसा वैसाखी- फसल अवधि 60-70 दिन, पौधे अर्ध-फैलने वाले, फलियाँ लम्बी, उपज 8-10 क्विंटल/हेक्टेयर

मोहिनी- फसल अवधि 70-75 दिन, उपज 10-12 क्विंटल/हेक्टेयर, पीला मोजेक वायरस और सर्कोस्पोरा लीफ स्पॉट रोग के प्रति सहनशील.

पंत मूंग 1- फसल अवधि 75 दिन (खरीफ) और 65 (जायद) दिन, उपज क्षमता 10-12 क्विंटल/हेक्टेयर

एमएल 1- फसल अवधि 90 दिन, बीज छोटे और हरे रंग के, उपज क्षमता 8-12 क्विंटल/हेक्टेयर.

वर्षा- यह एक अगेती किस्म है, उपज क्षमता 10 क्विंटल/हेक्टेयर

सुनैना- फसल अवधि 60 दिन, उपज क्षमता 12-15 क्विंटल/हेक्टेयर, गर्मी के मौसम के लिए उपयुक्त.

जवाहर 45- यह किस्म हाइब्रिड 45 के नाम से भी जानी जाती है, फसल अवधि 75-85 दिन, उपज क्षमता 10-13 क्विंटल/हेक्टेयर, खरीफ मौसम के लिए उपयुक्त.

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