
सोया राज्य के नाम से मशहूर मध्य प्रदेश एक नया मोड़ ले रहा है. अब मध्य प्रदेश ने अपने ज्यादा गेहूं प्रोडक्शन और क्वालिटी के लिए नाम कमाया है. मध्य प्रदेश के किसान KVK की मदद से साइंटिफिक खेती की ओर बढ़ रहे हैं. उन्होंने धीरे-धीरे भारत में सबसे अच्छा गेहूं उगाकर एक नई कामयाबी की कहानी लिखी है. इसी में उज्जैन जिले के मालवा क्षेत्र के किसान भी हैं जिन्होंने गेहूं की खेती में अपना लोहा मनवाया है. यहां के किसानों ने अपनी मेहनत और वैज्ञानिक तकनीक से पूरे मध्य प्रदेश की तस्वीर बदल डाली है.
जैसा कि आपको पता है, जब स्वाद, क्वालिटी और दूसरी खूबियों की बात आती है, तो मध्य प्रदेश का शरबती गेहूं महानगरों में डिमांड में सबसे ऊपर है. चमकदार, सुनहरे दाने की कीमत प्रीमियम होती है. मुंबई, पुणे, अहमदाबाद और हैदराबाद के होलसेल और रिटेल मार्केट में इसे गोल्डन या प्रीमियम गेहूं या दिल्ली जैसे बड़े नॉर्थ इंडिया मार्केट में MP गेहूं के नाम से जाना जाता है.
मध्य प्रदेश को इस मुकाम तक पहुंचाने में हजारों किसानों का योगदान है. उन सबका जिक्र करना यहां मुश्किल है, पर एक किसान के बारे में जरूर जानना चाहिए. इनका नाम है योगेंद्र कौशिक (61) जिन्होंने आईसीई (मेकेनिकल) की पढ़ाई की, इस उम्मीद में कि कोई बड़ी नौकरी करेंगे. लेकिन किस्मत को कुछ और मंजूर था. उन्होंने नौकरी करने के बजाय खेती पर फोकस किया, उसमें भी गेहूं को अपना आधार बनाया. बाद में स्थिति ऐसी हुई कि कौशिक की खेती कई अन्य किसानों के लिए नजराना साबित हुई.
ऐसे में यह जानना दिलचस्प होगा कि किसान योगेंद्र कौशिक ने गेहूं की खेती में ऐसा क्या किया जो पैदावार और कमाई लगातार बढ़ती गई. कौशिक की खेती पहले ऐसी थी कि वे 9.5 हेक्टेयर खेत में केवल सोयाबीन, चना और गेहूं की फसल ले सकते थे. इन फसलों की पैदावार इतनी भी ज्यादा नहीं थी जिससे उनका पूरा खर्च निकल सके.
इस तरह की खेती के पीछे उन्होंने 35 साल लगाए, मगर हिम्मत नहीं हारी. फिर कुछ नया करने की फिराक में वे 2005 में केवीके के संपर्क में आए. फिर क्या था, तभी से वैज्ञानिक खेती के प्रति उनकी सोच, दृष्टि और नजरिया बदल गया.
नजरिया बदलने के साथ ही उनकी खेती का पूरा पैटर्न बदल गया. गेहूं का उत्पादन 95.32 क्विंटल/हेक्टेयर तक पहुंच गया. इसमें गेहूं की एक वैरायटी सबसे अधिक काम आई जिसका नाम है HI-8663 (पोषण). KVK ने IARI, इंदौर से 50 kg ब्रीडर सीड उपलब्ध कराने में मदद की. फसल नवंबर महीने में पूरे तरीकों के साथ बोई गई. रेवेन्यू अधिकारियों, पटवारी, SADO, RAEO और दूसरे लोकल लोगों की मौजूदगी में क्रॉप कटिंग की गई, जिन्होंने गेहूं (HI-8663) की बंपर पैदावार देखी, जो 95.32 q/ha दर्ज की गई.
HI 8663 (पोषण) एक नया जीनोटाइप है जिसकी खासियत अनाज की बेहतरीन क्वालिटी, ज्यादा और स्थिर पैदावार है. यह एक नैचुरली बाई-फोर्टिफाइड फूड के तौर पर काम आने वाली किस्म है जिसका इस्तेमाल दो काम के लिए किया जाता है. एक, पोषण से भरपूर रोटी ('न्यूट्रिटिव चपाती') बनाने और सूजी में. सूजी फास्ट फ़ूड बनाने के लिए जरूरी है. इस लिहाज से गेहूं की यह किस्म अधिक कमाई देने वाली बन गई है.
यह बड़े पैमाने पर खेती की जाने वाली और अधिक उपज देने वाली वैरायटी है, जो चेक MACS 2846, NIDW 295 और GW 1189 जैसी किस्मों के मुकाबले 29% ज्यादा यील्ड देती है. HI 8663 में जल्दी पकने, टर्मिनल हीट स्ट्रेस को बर्दाश्त करने की क्षमता मिलती है.
तेजी से बदलते मौसम और जलवायु परिवर्तन के दौर में गेहूं की इस किस्म की मांग तेजी से बढ़ रही है. हाल ही में, इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की रिपोर्ट और कई दूसरी स्टडीज से पता चलता है कि 2080-2100 तक तापमान बढ़ने और सिंचाई के पानी में कमी होने से भारत और दक्षिण एशिया के दूसरे देशों में फसल उत्पादन में 10-40% नुकसान होने की आशंका है. कार्बन फर्टिलाइजेशन अपनाने के बाद भी, पूरे ग्रोइंग पीरियड में हर 10 C तापमान बढ़ने पर भारत में 40-50 लाख टन गेहूं का प्रोडक्शन कम हो सकता है. ऐसे में HI 8663 (पोषण) वैरायटी किसानों की मददगार बन सकती है.