सूरजमुखी की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद को लेकर हरियाणा में सरकार और किसानों के बीच शुरू हुआ विवाद दो सप्ताह बाद खत्म हो गया. राज्य सरकार सूरजमुखी को भावांतर भरपाई योजना के तहत खरीदने पर अड़ी हुई थी तो किसानों ने यह एलान किया हुआ था कि वो इसे एमएसपी पर ही बेचेंगे. अब जिस समझौते के तहत मामले का पटाक्षेप हुआ है उसमें दोनों पक्ष खुद को जीता हुआ महसूस कर रहे हैं. दोनों ने इसे मूंछ का सवाल बनाया हुआ था. लेकिन समझौते तो अक्सर मध्य मार्ग अपनाकर ही होते हैं. इस आंदोलन की शुरुआत करने वाले भारतीय किसान यूनियन (चढूनी) के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी बृहस्पतिवार को जेल से रिहा कर दिए जाएंगे और किसानों को पूरा दाम मिलेगा. देखना यह है कि जेल से रिहा होने के बाद एमएसपी पर उनका रुख क्या होगा?
दरअसल, समझौते के तहत राज्य सरकार एमएसपी जितनी रकम किसानों को देने के लिए राजी है. लेकिन खरीद एमएसपी पर न करके भावांतर भरपाई योजना के तहत ही करेगी. भावांतर के तहत किसानों को पहले एमएसपी के मुकाबले प्रति क्विंटल 1000 से 1200 रुपये तक का नुकसान हो रहा था. क्योंकि सरकार तब सिर्फ 1000 रुपये प्रति क्विंटल की भावांतर रकम देने को राजी थी. लेकिन, अब उसने कहा है कि यह अंतरिम रकम है. एमएसपी से कम दाम मिलने पर और भरपाई की जाएगी. सरकार ने सभी नौ किसान नेताओं को रिहा करने की भी बात मानी है. आईए पूरे आंदोलन की बड़ी बातों पर नजर डालते हैं.
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सूरजमुखी को एमएसपी की बजाय भावांतर भरपाई योजना के तहत बेचने के लिए किसान भले ही राजी हो गए हैं लेकिन उन्होंने एमएसपी की लड़ाई नहीं छोड़ी है. आने वाले दिनों में एमएसपी पर किसान आंदोलन करेंगे. किसानों को पहले भावांतर से घाटा हो रहा था लेकिन आंदोलन के बाद एमएसपी जितना पैसा मिलेगा. गुरनाम सिंह चढूनी और राकेश टिकैत के बीच मतभेद की खबरें आती रहती हैं. लेकिन, चढूनी की रिहाई के लिए राकेश टिकैत कुरुक्षेत्र में तीन दिन तक डंटे रहे. संयुक्त किसान मोर्चा से गुरुनाम सिंह चढूनी का संगठन भारतीय किसान यूनियन (चढूनी) बाहर था. लेकिन इस आंदोलन के दौरान उसकी भी इस मोर्चे में एंट्री हो गई.
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