“मेरा परिवार मूल रूप से जैसलमेर का है. मेरा जन्म ननिहाल नागपुर में हुआ,लेकिन पूरा बचपन और जवानी का शुरूआती हिस्सा जयपुर में बीता है. इसीलिए मेरी जैसलमेर के बारे में वहीं समझ बनी जितना किताबों में पढ़कर देश के बाकी हिस्सों के बारे में किसी छात्र की बनती है. लेकिन एक हादसे ने मेरी पूरी जिंदगी बदल दी. यह हादसा था मेरी मां की कैंसर से मृत्यु का. जब उन्हें कैंसर हुआ तो समझ आया कि जो अन्न हम खा रहे हैं वो दरअसल इस बीमारी की जड़ है.” ये बातें 39 वर्षीय पार्थ जगाणी की हैंं,जो यह बोलते हुए शून्य में चले जाते हैं. जैसलमेर वापस आने के सवाल पर वो बताते हैं कि 2012 में मौत के बाद वे जैविक खेती और जैसलमेर के इतिहास को पढ़ने लगा था. तब मुझे यहां की बारानी और खड़ीन कृषि पद्धति के बारे में पता चला. इसीलिए 2012 में मैं परिवार सहित जैसलमेर आ गया.
पार्थ किसान तक से बताते हैं कि मेरी ग्रेजुएशन इकोनॉमिक्स में हुई और फिर डिप्लोमा इंटरनेशनल बिजनेस से किया. इसके बाद मैंने जयपुर में रहकर ही एक शिपिंग कंपनी में काम किया. 2005 से 2010 तक साथ ही एक्सपोर्ट का काम भी किया. 2010 में मां को कैंसर डिटेक्ट हुआ. दो साल इलाज के बाद उनकी मौत हो गई. इन दो साल में ही मैंने ऑर्गेनिक फूड के बारे में खूब पढ़ा.
पार्थ जोड़ते हैं कि 2012 में जैसलमेर आने के बाद कुछ छोटे-मोटे काम करने लगा. साथ ही जैसलमेर के पर्यावरण, संस्कृति को लेकर समझ बढ़ाने लगा. इस दौरान ही मैंने यहां के पारंपरिक खड़ीनों और बारानी खेतों का फील्ड विजिट कीं. साथ ही जैविक खेती में कुछ प्रयोग करने शुरू किए.
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इन प्रयोगों में हम कुछ युवाओं ने एक ग्रुप बनाया और यहां के किसानों को ऑर्गेनिक खेती के बारे में जागरूक करने लगे. खेतों में ऑर्गेनिक खाद देने के लिए मैंने सबसे पहले जैसलमेर में वर्मी कंपोस्ट खाद का एक छोटा सा प्लांट लगाया. इसके साथ-साथ मैंने कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग शुरू की. 2020 तक जैसलमेर के किसानों को जैविक व प्राकृतिक खेती के लिए प्रोत्साहित करते रहे.
पार्थ पिछले दो साल से खड़ीन में गेहूं, चना और सरसों में नवाचार कर रहे हैं. इसके लिए उन्होंने 2020 में जैसलमेर के बड़ा बाग स्थित पूर्व राजपरिवार के 85 बीघा के खड़ीन को कुछ लाख रुपये में भेज (किराये या लीज पर खेती करना) पर लिया है.
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पार्थ जोड़ते हैं कि हमारे ऑर्गेनिक और पर्यावरण के काम को देखकर पूर्व राजपरिवार ने ही हमें संपर्क किया. इसके बाद मैंने खड़ीन में प्रयोग करने के लिहाज से जैसलमेर के पारंपरिक गेहूं बीज सोनामोती बोया.”
खड़ीन में खेती कर पार्थ जगाणी ने बाजार भाव से ज्यादा भाव मिला है. उन्होंने पिछले साल गेहूं का उत्पादन 21 क्विंटल, चना 110 क्विंटल और 11 किलो सरसों के बीज से 5.5 क्विंटल सरसों का उत्पादन लिया है. पार्थ कहते हैं कि बीते साल मैंने रिटेल में सरसों 7500 रुपये क्विंटल, सोनामोती किस्म की गेहूं 10 हजार रुपये क्विंटल में बेचा है. इस तरह पहले साल में ही मैंने साढ़े आठ लाख रुपये की फसल बेची थी. इसके अलावा खड़ीन में ऑर्गेनिक तरीके से सब्जी भी की है.” इस सब के अलावा पार्थ खड़ीन में कई फसलों को लेकर रिसर्च और नवाचार कर रहे हैं. इसमें गेहूं की सोनामोती किस्म के साथ-साथ चने और सरसों की कई किस्मों पर रिसर्च की जा रही है.
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