Saffron Farming Crisis: कश्मीर में केसर के खेतों पर गहराया संकट, पंपौर में पैदावार में भारी गिरावट

Saffron Farming Crisis: कश्मीर में केसर के खेतों पर गहराया संकट, पंपौर में पैदावार में भारी गिरावट

Kesar Ki Kheti: कश्मीर के पंपौर में इस साल केसर की पैदावार में भारी गिरावट दर्ज की गई है. इसका खेती क्षेत्र 1990 के दशक के 5700 हेक्टेयर से घटकर 3665 हेक्टेयर रह गया है, जिससे किसानों की आय पर बड़ा असर पड़ा है. यहां 20 हजार परिवार केसर की खेती पर निर्भर हैं.

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क‍िसान तक
  • Noida,
  • Nov 21, 2025,
  • Updated Nov 21, 2025, 3:46 PM IST

पहाड़ों से उतरती हल्की ठंड और साफ आसमान के बीच जब पंपौर के लेथपोरा में सुबह की धूप पड़ती है तो यहां की धरती पर बिछी हल्की बैगनी केसर की चादर किसी चित्र जैसा अहसास देती है. इन्हीं फूलों के बीच अली मोहम्मद रेशी धीरे-धीरे कदम रखते हैं और सावधानी से हर नाजुक फूल तोड़कर टोकरी में जमा करते जाते हैं. लेकिन, इस खूबसूरत नजारे के पीछे इस बार एक गहरी मायूसी छिपी है. रेशी ने कहा कि केसर की खेती में मेहनत के लिहाज से अब उपज बहुत घट गई है. इस साल बस 25 प्रतिशत उपज ही मिली है, जो पिछले साल के मुकाबले बेहद कम है.

इस बार पतले रह गए केसर के कंद

रेशी बताते हैं कि बीता साल भी कोई खास अच्छा नहीं था, लेकिन मौजूदा सीजन की गिरावट ने किसानों की कमर ही तोड़ दी है. आसपास के खेतों में भी यही हाल है. कई किसान सूखे सर्द महीनों को जिम्मेदार मानते हैं, जिन्होंने केसर के कंदों की बढ़वार बुरी तरह प्रभावित की. बिजनेसलाइन की रिपेार्ट के मुताबिक, स्थानीय किसान बिलाल अहमद ने बताया कि इस बार कंद पतले रह गए और अपेक्षित फूल नहीं दे पाए.

20 हजार परिवार केसर की खेती पर निर्भर

पंपौर सदियों से केसर की खेती का केंद्र माना जाता है. यहां करीब 20 हजार परिवार इसी फसल पर निर्भर रहते हैं, जबकि लगभग 3,200 हेक्टेयर भूमि पर केसर की पैदावार होती है. लेकिन, लगातार कम होती उपज ने किसानों की आय के साथ-साथ इस विरासत फसल के भविष्य पर भी खतरा खड़ा कर दिया है. 

कृषि अध‍िकारी ने मौसम काे बताया वजह

कृषि विभाग के एक अधिकारी बताते हैं कि मौसम का बदलता मिजाज पिछले दो वर्षों से खेती पर गहरा असर डाल रहा है. बर्फ रहित सर्दियां और लम्बे सूखे गर्मी के दिन अब आम हो गए हैं. यहां तक कि गर्म मौसम की वजह से सर्दियों में भी साही जैसे जानवर सक्रिय रहते हैं और कंदों को नुकसान पहुंचाते हैं.

इतना घट गया केसर का रकबा

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 1990 के दशक के आखिरी वर्षों में जहां 5,700 हेक्टेयर भूमि पर केसर उगाया जाता था, वहीं 2025 तक यह घटकर सिर्फ 3,665 हेक्टेयर रह गया है. किसानों का कहना है कि खेती योग्य जमीन की अनियंत्रित कटाई ने भी हालात बिगाड़े हैं. साल 2007 में सरकार ने जम्मू-कश्मीर केसर एक्ट लागू करके खेती की जमीन को बचाने की कोशिश की थी.

सरकारी योजना आज भी अधूरी

इसके बाद 2010 में 412 करोड़ रुपये का नेशनल केसर मिशन शुरू किया गया था, जिसमें सूखे से निपटने के लिए ड्रिप सिंचाई प्रणाली लगाने का वादा किया गया था. लेकिन, यह योजना कागजो से बाहर कभी ठीक से निकल नहीं पाई. चाटलाम गांव के किसानों का कहना है कि खेतों में पाइप की जालियां तो बिछा दी गईं, लेकिन पानी आज तक नहीं पहुंचा. किसानों को डर है कि अगर मौसम का मिजाज इसी तरह बिगड़ता रहा और योजनाएं जमीन पर नहीं उतरीं तो दुनिया के सबसे बेहतरीन माने जाने वाले कश्मीर केसर की खुशबू धीरे-धीरे मिट सकती है.

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