तेलंगाना में गन्ने की खेती संकट में: 10 लाख एकड़ से घटकर सिर्फ 35,641 एकड़, किसान धान की ओर शिफ्ट

तेलंगाना में गन्ने की खेती संकट में: 10 लाख एकड़ से घटकर सिर्फ 35,641 एकड़, किसान धान की ओर शिफ्ट

गन्ने की कम कीमत, बंद होती शुगर मिलें और सरकारी सपोर्ट की कमी से तेजी से गिरा रकबा. किसान बोले—इथेनॉल नीति और राज्य सहायता के बिना गन्ना लाभदायक नहीं, निजामाबाद की फैक्टरी दोबारा खोलने की मांग तेज.

गन्ना किसान (फोटो- सोशल मीडिया)गन्ना किसान (फोटो- सोशल मीडिया)
क‍िसान तक
  • New Delhi ,
  • Nov 20, 2025,
  • Updated Nov 20, 2025, 2:35 PM IST

तेलंगाना में गन्ने की खेती में भारी गिरावट आई है. गन्ने की कम कीमत, जागरुकता की कमी और दाम में भारी अंतर के कारण किसान तेजी से धान की खेती कर रहे हैं. 'डेक्कन क्रॉनिकल' की रिपोर्ट के अनुसार, पीढ़ियों से गुड़ और चीनी बनाने के लिए पूरे इलाके में गन्ना बड़े पैमाने पर उगाया जाता है. लेकिन अब किसान गन्ने की खेती से भाग रहे हैं.

तेलंगाना में 2000 के दशक की शुरुआत में, गन्ना फसल लगभग 10 लाख एकड़ में फैली हुई थी. आज, यह इलाका घटकर सिर्फ 35,641 एकड़ रह गया है. कृषि विभाग ने अनुमान लगाया था कि इस साल 59,275 एकड़ में गन्ने की खेती हो सकती है, लेकिन सिर्फ संगारेड्डी जिले में ही खेती में दिलचस्पी देखी गई, जहां 27,140 एकड़ में खेती हुई - जो राज्य में सबसे ज्यादा है.

गन्ने की खेती में परेशानी

गन्ना भारी बारिश और सूखे दोनों के प्रति बहुत सेंसिटिव होता है. पहले, निजामाबाद, मेडक और करीमनगर के मिले-जुले जिलों के किसान बड़े पैमाने पर इसकी खेती करते थे. हालांकि, बोधन में निजाम डेक्कन शुगर लिमिटेड की मुख्य यूनिट और मेटपल्ली और मेडक में इसकी ब्रांच बंद होने से इसमें भारी गिरावट आई. निजामाबाद कोऑपरेटिव शुगर फैक्टरी और कई प्राइवेट यूनिट के बंद होने से संकट और गहरा गया.

जहां गन्ने से बने इथेनॉल प्रोडक्शन ने कई दूसरे राज्यों में इस सेक्टर को फिर से खड़ा किया है, वहीं तेलंगाना अभी भी जूझ रहा है. भारत के कई इलाकों में, राज्य सरकारों की ओर से घोषित सपोर्ट प्राइस ने किसानों और मिलों को चलते रहने में मदद की है.

बोधन के एक किसान नवीन ने कहा कि NDSL के बंद होने के बाद उनके परिवार ने गन्ना उगाना बंद कर दिया. उन्होंने कहा, "गन्ने को उगने में पूरा एक साल लगता है, लेकिन इसके लिए ज्यादा टेंशन की जरूरत नहीं होती." उन्होंने याद किया कि पूर्व मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव और निजामाबाद के पूर्व MP कलवकुंतला कविता ने किसानों को भरोसा दिलाया था कि निजाम शुगर्स को फिर से शुरू किया जाएगा, लेकिन फैक्ट्री कभी दोबारा नहीं खुली.

किसानों ने उठाई ये मांग

नवीन ने सरकारी मिलों को सपोर्ट न करने के लिए कुछ चुने हुए प्रतिनिधियों की भी आलोचना की. उन्होंने कहा कि कोऑपरेटिव और राज्य द्वारा चलाई जाने वाली फैक्ट्रियों को फिर से खोलने से किसानों को बहुत फायदा होगा. उन्होंने आगे कहा कि किसान अब गन्ने की खेती पर प्रति एकड़ लगभग 1 लाख रुपये खर्च करते हैं. 

“पूरे देश में किसानों को गन्ने के लिए 3,550 रुपये प्रति क्विंटल मिल रहे हैं. उत्तर प्रदेश में, अतिरिक्त 400 रुपये प्रति क्विंटल दिए जाते हैं, जबकि हरियाणा और पंजाब क्रमशः 415 और 420 रुपये देते हैं. इथेनॉल उत्पादन ने पूरे देश में गन्ने को ज्यादा फायदेमंद बना दिया है. तेलंगाना सरकार को गन्ने की खेती को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाने चाहिए. अभी, यहां केवल प्राइवेट मिलें चल रही हैं, जिससे किसानों को अपनी फसल बेचने के लिए दूर जाना पड़ता है. कई किसानों ने निजामाबाद कोऑपरेटिव शुगर फैक्टरी को फिर से खोलने के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. अलग-अलग राज्यों के अपने दौरे के दौरान, मैंने दूसरी जगहों पर गन्ना किसानों को दी जा रही मदद देखी है,” भारतीय किसान संघ के नेशनल प्रेसिडेंट कोंडेला साई रेड्डी ने कहा.

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