इस रबी सीजन फसल रहेगी सुरक्षित, जानें गेहूं के 5 रोगों और उससे बचाव का तरीका

इस रबी सीजन फसल रहेगी सुरक्षित, जानें गेहूं के 5 रोगों और उससे बचाव का तरीका

रबी सीजन में गेहूं की फसल को सुरक्षित रखना हर किसान के लिए जरूरी है. इस लेख में जानें गेहूं के 5 प्रमुख रोगों-भूरा, काला और पीला रतुआ, एफिड और दीमक-के लक्षण, कारण और आसान बचाव के तरीके. समय पर पहचान और सही उपचार से उपज बढ़ाएं और नुकसान से बचें.

गेहूं की फसल में रोग और पहचानगेहूं की फसल में रोग और पहचान
क‍िसान तक
  • Noida ,
  • Nov 21, 2025,
  • Updated Nov 21, 2025, 7:10 AM IST

भारत में रबी सीजन की सबसे ज़रूरी फसल गेहूं की खेती मानी जाती है. रबी मौसम शुरू होते ही खेतों में नई उम्मीदें भी अंकुरित होने लगती हैं. गेहूं की बुवाई के साथ किसान भरपूर पैदावार और अच्छे मुनाफे का सपना सजोते हैं. लेकिन फसल पर अगर रोग या कीटों का हमला हो जाए, तो मेहनत और उम्मीद दोनों पर पानी फिर सकता है. ऐसे में जरूरी है कि किसान समय रहते गेहूं में लगने वाले प्रमुख रोगों को पहचानें और सही कदम उठाकर अपनी फसल को सुरक्षित रखें.

1. भूरा रतुआ रोग (Brown Rust)

लक्षण: इस रोग में गेहूं की पत्तियों पर छोटे-छोटे नारंगी या भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं. ये धब्बे पत्तियों की दोनों सतहों पर फैलते हैं और फसल बढ़ने के साथ इनका प्रकोप तेजी से बढ़ता है. यह रोग ज्यादातर पंजाब, बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे उत्तर और पूर्वी क्षेत्रों में देखा जाता है.

रोकथाम:

  • एक ही किस्म की फसल को बड़े क्षेत्र में न लगाएँ.
  • शुरुआती लक्षण दिखते ही प्रोपिकोनाजोल 25 EC या टेबुकोनाजोल 25 EC का 0.1% घोल बनाकर छिड़काव करें.
  • 10–15 दिनों के अंतराल पर दूसरा छिड़काव अवश्य करें.

2. काला रतुआ रोग (Black Rust)

लक्षण: इस रोग में तनों पर भूरे-काले धब्बे बन जाते हैं और बाद में ये पत्तियों तक फैलते हैं. तना कमजोर हो जाता है जिससे दाने छोटे और हल्के बनते हैं. यह रोग मुख्य रूप से दक्षिणी पहाड़ी क्षेत्रों और मध्य भारत में अधिक पाया जाता है.

रोकथाम:

  • फसल की नियमित निगरानी करें ताकि रोग जल्दी पकड़ा जा सके.
  • प्रोपिकोनाजोल 25 EC या टेबुकोनाजोल 25 EC का 0.1% घोल छिड़कें.
  • जरूरत पड़े तो 10–15 दिन बाद दूसरा छिड़काव करें.

3. पीला रतुआ रोग (Yellow Rust)

लक्षण: पत्तियों पर पीली धारियां बन जाती हैं और इन्हें हाथ से छूने पर पीला चूर्ण निकलता है. यह रोग ठंडे और पहाड़ी क्षेत्रों जैसे हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में ज्यादा देखा जाता है.

रोकथाम:

  • पीला रतुआ प्रतिरोधी किस्में उगाएँ.
  • खेत की नियमित निगरानी करें, खासकर पेड़ों या छाया वाले क्षेत्रों के पास उग रही फसल की.
  • प्रोपिकोनाजोल या टेबुकोनाजोल 25 EC का 0.1% घोल छिड़कें.

4. एफिड (माहू) का प्रकोप

लक्षण: एफिड छोटे हरे रंग के कीट होते हैं जो पत्तियों और बालियों का रस चूस लेते हैं. इनके वजह से काली फफूंद भी लग जाती है, जिससे पौधा कमजोर हो जाता है और दाने अच्छे से नहीं बन पाते.

रोकथाम:

  • खेत में गहरी जुताई करें ताकि इनका प्रकोप कम हो सके.
  • फेरोमोन ट्रैप का उपयोग करें.
  • क्विनालफॉस 25% EC की 400 मि.ली. मात्रा को 500–1000 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें.
  • खेत के चारों तरफ मक्का, ज्वार या बाजरा लगाना भी लाभदायक होता है.

5. दीमक का प्रकोप

लक्षण: दीमक पौधों की जड़ों को कुतरकर नुकसान पहुँचाती है. सूखी मिट्टी और नमी की कमी वाले क्षेत्रों में इनका प्रकोप ज्यादा होता है. प्रभावित पौधे पीले पड़ने लगते हैं और ऊपर से गिरते हुए दिखाई देते हैं.

रोकथाम:

  • खेत में समय पर गोबर की खाद डालें और पुरानी फसल के अवशेष नष्ट करें.
  • प्रति हेक्टेयर 10 क्विंटल नीम की खली मिलाकर बोआई करें.
  • सिंचाई के समय क्लोरपाइरीफॉस 20% EC की 2.5 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर प्रयोग करें.

अगर किसान गेहूं की फसल में होने वाले इन रोगों और कीटों की जल्दी पहचान कर लें और समय पर सही उपचार करें, तो फसल को होने वाला नुकसान काफी हद तक रोका जा सकता है. सही प्रबंधन और नियमित निगरानी से किसान अपनी उपज बढ़ाकर बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं.

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