देश में आजकल सबसे अधिक चर्चा मोटे अनाजों की खेती की है. ऐसा ही एक मोटा अनाज ज्वार है. इसकी खेती भारत में प्राचीन काल से होती आई है. भारत में ज्वार की खेती मोटे दाने वाली अनाज फसल और हरे चारे के रूप में की जाती है. वर्षा आधारित कृषि के लिए ज्वार सबसे उपयुक्त फसल है. साथ ही ज्वार की फसल कम बारिश ये सूखे क्षेत्र में भी अच्छी उपज दे सकती है. इसके अलावा ज्वार के दाने का उपयोग हाई क्वालिटी वाला अल्कोहल और इथेनॉल बनाने में भी किया जाता है. ज्वार की फसल दो सीजन में लगाई जाती है. खरीफ और रबी. अगर किसान ज्वार की खेती करना चाहते हैं तो ये उनके लिए चमत्कारी फसल है. आइए जानते हैं ज्वार की खेती के बारे में.
उत्पादन की दृष्टि से ज्वार में बुवाई का समय बहुत महत्वपूर्ण है. खरीफ के सीजन में ज्वार की फसल की मॉनसून आने के एक सप्ताह पहले बुवाई करनी चाहिए. इस समय ज्वार की बुवाई करने से उपज में 22.7 प्रतिशत वृद्धि पाई जाती है. साथ ही साथ जल्दी बुवाई से फसल में इसका मुख्य कीट तना मक्खी का प्रकोप कम पाया जाता है.
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ज्वार की खेती में जून के महीने में एक बार जुताई करने के बाद 2-3 हैरो से जुताई करनी चाहिए. इसके बाद प्रति हेक्टेयर लगभग 8-10 टन गोबर की खाद मिट्टी में मिला देनी चाहिए. बुवाई के समय मिट्टी में फोरेट या थिमेट 8-10 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से डालनी चाहिए. ऐसा करने से उत्पादन में बढ़ोतरी होती है. वहीं बात करें खरीफ सीजन में ज्वार की बुवाई के उपयुक्त समय की तो जून के तीसरे सप्ताह से जुलाई के पहले सप्ताह तक बेहतर मानी जाती है.
ज्वार की अच्छी उपज के लिए किसानों को 80 किलोग्राम नत्रजन, 40 किलो फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर देना चाहिए. इसके अलावा बुवाई के समय नत्रजन की आधी मात्रा और फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय बीज के साथ ही डाल देनी चाहिए. साथ ही नत्रजन की शेष बची मात्रा जब फसल 30-35 दिनों की हो जाए, यानी पौधे जब घुटनों की ऊंचाई के हो तब पौधों भूमि में मिला देना चाहिए. इससे ज्वार का अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त होता है.