
आंध्र प्रदेश में केले के किसान इस समय एक साथ एक सुर में बस एक ही आवाज उठा रहे हैं और वह है केले की कीमतों में तेजी से गिरावट आना. बाजार में जहां केले की कीमतें आसमान छू रही हैं तो वहीं किसानों से केले बहुत कम दामों पर खरीदे जा रहे हैं. राज्य के कई शहरों में दर्जन भर केले खरीदने के लिए 60 से 70 रुपये तक चुकाने पड़ रहे हैं. जबकि दूसरी ओर, किसानों से सिर्फ एक रुपये 1 प्रति किलो की दर पर केले खरीदे जा रहे हैं. केले के उत्पादन के लिए मशहूर प्रसिद्ध अनंतपुर जिले के किसान अपनी उपज बाजार में बेचने के बजाय सड़कों पर फेंकने को मजबूर हैं. कभी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक अपनी मिठास के लिए पहुंचने वाले केले की कीमत अब सिर्फ 1 रुपये प्रति किलो रह गई है.
अनंतपुर जिले की स्थिति इस समय बेहद गंभीर है. कभी केले की इतनी अधिक मांग थी कि सरकार ने तड़ीपत्री से 'बनाना ट्रेन' भी शुरू की थी. इसका मकसद केलों को देश के कई हिस्सों और विदेशों तक भेजना था. लेकिन आज यही किसान कठिनाई में हैं. एक टन केले की कीमत पहले 28,000 रुपये थी, लेकिन अब यह घटकर केवल 1,000 रुपये रह गई है. हिसाब लगाएं तो थोक बाजार में केले की कीमत सिर्फ 1 रुपये प्रति किलो बैठती है. एक साल की कड़ी मेहनत के बाद जब फसल तैयार हुई तो बाजार में किसानों की मेहनत का कोई मोल ही नहीं बचा है.
इतने बड़े अंतर के पीछे दो बड़े कारण हैं जिन्होंने उनकी कमर तोड़ दी है. पहला है मिडिलमैन और दूसरा है महाराष्ट्र से खेप का आना. बाजार पर मजबूत पकड़ रखने वाले मिडिलमेन या बिचौलियों किसानों की मजबूरी का फायदा उठा रहे हैं. ये बिचौलियो फसल को बहुत कम कीमत पर खरीद रहे हैं. वही केले जब उपभोक्ताओं तक पहुंचते हैं तो उनकी कीमत 50-60 गुना तक बढ़ जाती है.
दूसरा बड़ा कारण पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र से आने वाली केले की उपज है. इस वर्ष महाराष्ट्र में बंपर फसल हुई है और अब बाजार में फसल की बहुत ज्यादा सप्लाई हो गई है. इसका सीधा असर अनंतपुर के किसानों की मांग और कीमतों पर पड़ा है. यहां स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि किसानों के पास अपने बागानों को नष्ट करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है.
किसानों को अपनी उपज को बाजार तक पहुंचाने का खर्च भी खुद ही उठाना पड़ रहा है. जबकि वहां मिलने वाली कीमत जीरो है. इसलिए उन्होंने पके फलों को ट्रैक्टर पर लादकर सड़क किनारे फेंकना शुरू कर दिया है. केले की कीमत न मिलने के कारण सड़क किनारे फेंके जा रहे हैं. जो केले लोगों तक पहुंचने चाहिए थे, वो अब सड़क किनारे पशुओं और गायों का भोजन बन रहे हैं. नाराजगी इतनी ज्यादा है कई किसान ट्रैक्टर और बुलडोजर अपनी खड़ी फसल पर चढ़ा दे रहे हैं.
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