गांव-देहात हो या शहरों के बाजार, पपीता आपको हर जगह मिल जाएगा. पपीते के मीठे रस और टेस्टी गूदे के हजारों दीवाने हैं. ऊपर से इसका मेडिसिनल यूज इसे और खास बनाता है. फलों में पपीते का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है. यह फल पकाकर और कच्चा दोनों तरीके से उपयोग किया जाता है. वहीं भारत के अधिकांश हिस्सों में इसकी खेती की जाती है. किसान पपीते की खेती से भी अच्छी कमाई कर सकते हैं. लेकिन कई बार खेती करने पर पपीते का पौधा बौना रह जाता है. खाद डालने पर भी पौधा नहीं बढ़ता है. ऐसे में आइए जानते हैं कि किसान इसके उपचार के लिए क्या करें.
पपीते के पौधे में कई बार सफेद मक्खी लग जाती है, जिसकी वजह से पौधा बौना रह जाता है. इस अवस्था में पौधे पर किसी भी खाद का असर नहीं होता है. मक्खी लगने की इस अवस्था को निम्फ कहा जाता है. ये मक्खी चपटे, अंडाकार और स्केल-जैसे होती हैं, जो अक्सर लगभग पारभासी दिखाई देती हैं. प्रजाति के आधार पर, उसका रंग पीला-सफेद से लेकर काला तक हो सकता है. एक पत्ते पर बसने के बाद वे खुद को निचली सतह से जोड़ लेती हैं और हिलती नहीं हैं. फिर पौधे के उस भाग को चट करना शुरू कर देती हैं.
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सफेद मक्खियां पौधे के विकास को काफी हद तक रोक सकती हैं, खासकर यदि संक्रमण तब शुरू हुआ हो जब पौधा छोटा हो. इसके अलावा सफेद मक्खियां पौधे से रस चूसती हैं, जिससे उसके पोषक तत्व कम हो जाते हैं. इससे पौधे के बौने होने के साथ ही पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और बदरंग हो जाती हैं. वहीं इस गंभीर संक्रमण के कारण पत्तियां मुरझा सकती हैं, सूख सकती हैं और अंतिम में गिर सकती हैं, जिससे किसानों को काफी नुकसान होता है.
सफेद मक्खियां 15 डिग्री और 35 डिग्री तापमान के बीच गर्म परिस्थितियों में पनपती हैं. इस सीमा के बाहर का तापमान उनके विकास को धीमा कर सकता है और जीवित रहने की दर को कम करता है. इसके अलावा सफेद मक्खियां मध्यम से उच्च नमी के स्तर को पसंद करती हैं. वहीं शुष्क परिस्थितियां उनके विकास में बाधा डाल सकती हैं और उन्हें नष्ट कर सकती हैं.
अगर पपीते का पौधा बौना हो गया है तो उसमें खाद की जगह एसिटामिप्रिड 60 से 80 ग्राम प्रति एकड़ की दर से डालें. इसके अलावा डायफेंथियुरोन 250 ग्राम प्रति एकड़ की दर से डालना चाहिए. साथ ही पौधे पर इमिडाक्लोप्रिड 2 से 3 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी में डालकर छिड़काव करें. ऐसा करने से आपका पौधा बौना नहीं होगा और उत्पादन भी अधिक देगा.
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