मात्र 110 दिनों में तैयार हो जाती है ये फसल, कीमत जान हो जाएंगे हैरान

मात्र 110 दिनों में तैयार हो जाती है ये फसल, कीमत जान हो जाएंगे हैरान

जीरा एक मसाला फसल है, जिसकी मांग बाजार में हमेशा बनी रहती है. इसकी कीमत 200 से 600 रुपये प्रति किलो तक होती है. इसके अलावा, जीरे की फसल केवल 110-120 दिनों में तैयार हो जाती है, जिससे किसान जल्दी लाभ कमा सकते हैं. 

जीरे की खेतीजीरे की खेती
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Mar 16, 2025,
  • Updated Mar 16, 2025, 8:47 AM IST

राजस्थान का नागौर जिला जीरे की खेती के लिए देशभर में प्रसिद्ध है. यह क्षेत्र खासतौर पर शुष्क मौसम में जीरे की बुवाई के लिए उपयुक्त माना जाता है. जीरे की खेती न केवल किसानों के लिए एक लाभकारी व्यवसाय साबित हो रही है, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी अपनी पहचान बना चुका है. यदि आप भी इस फसल को लगाने के बारे में सोच रहे हैं, तो यह लेख आपके लिए काफी मददगार साबित हो सकता है.

बुवाई के लिए अनुकूल स्थिति

नागौर जिले में जीरे की बुवाई का समय मुख्य रूप से शुष्क मौसम के बीच होता है. उन्नत किसान इस क्षेत्र में उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए जीरे की खेती कर रहे हैं. जीरे के लिए हल्की दोमट या बलुई मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है, जिसमें जल निकासी का उचित प्रबंध हो. इसके अलावा, जीरे की बुवाई के लिए 20 से 25°C का तापमान आदर्श माना जाता है. 

किसानों के अनुसार, जीरे की बुवाई के बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए, लेकिन अत्यधिक नमी से बचना चाहिए, क्योंकि जीरे के पौधों में पानी की अधिकता से नुकसान हो सकता है. यदि बुवाई सही समय पर और सही विधि से की जाए, तो यह फसल लगभग 110-120 दिनों में पूरी तरह से तैयार हो जाती है, और मार्च-अप्रैल तक कटाई के लिए तैयार हो जाती है.

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जीरे की फसल के फायदे

कम समय में लाभ: जीरा एक मसाला फसल है, जिसकी मांग बाजार में हमेशा बनी रहती है. इसकी कीमत 200 से 600 रुपये प्रति किलो तक होती है. इसके अलावा, जीरे की फसल केवल 110-120 दिनों में तैयार हो जाती है, जिससे किसान जल्दी लाभ कमा सकते हैं. 

अच्छा बाजार मूल्य: नागौर का जीरा भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी निर्यात किया जाता है. खासकर, जीरे की मांग ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, ब्रिटेन, ब्राज़ील, दुबई, नेपाल और मलेशिया जैसे देशों में है. इसके कारण किसानों को अच्छा दाम मिलता है और उन्हें वैश्विक बाजारों तक पहुंचने का मौका मिलता है.

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कम लागत में अधिक उत्पादन: जीरे की खेती में पानी और उर्वरक की खपत अन्य फसलों की तुलना में कम होती है. उपजाऊ मिट्टी और सही जलवायु में प्रति हेक्टेयर 6-8 क्विंटल तक उत्पादन किया जा सकता है. यह फसल शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में भी अच्छा उत्पादन देती है, जिससे कम पानी और सीमित संसाधनों में भी इसका सफलतापूर्वक उत्पादन संभव है.

क्यों नागौर में इसकी खेती है प्रमुख?

नागौर जिले में जीरे की खेती का एक प्रमुख कारण है यहां की जलवायु और मिट्टी की अनुकूलता. इसके अलावा, यहां के किसानों की मेहनत और उन्नत खेती के तरीकों ने इसे जीरे के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र के रूप में स्थापित किया है. नागौर के जीरे की निर्यात क्षमता और अंतरराष्ट्रीय मांग इसे एक अत्यधिक लाभकारी फसल बनाती है.

यदि आप भी खेती में अपना भविष्य देख रहे हैं और कम लागत में अधिक मुनाफा कमाने का सोच रहे हैं, तो नागौर जिले में जीरे की खेती एक बेहतरीन विकल्प हो सकती है. इसकी उन्नत खेती के तरीके और इसके कम समय में तैयार होने वाली फसल से किसान जल्दी मुनाफा कमा सकते हैं. इसके अलावा, वैश्विक बाजारों में इसकी बढ़ती मांग इसे और भी आकर्षक बनाती है. 

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