उत्तर प्रदेश में बारिश का सिलसिला कई जिलों में जारी है. इसी क्रम में गन्ना फसल के बचाव के लिए विभाग ने कमर कस ली है. गन्ना विकास विभाग जलमग्नता, रोग व कीट के नियंत्रण पर जोर दे रहा है. मुख्यालय स्तर से सभी परिक्षेत्र के उप गन्ना आयुक्तों, जिला गन्ना अधिकारियों, चीनी मिल के प्रबंधकों को प्रतिदिन फील्ड में भ्रमण करने, रोग व कीट से प्रभावित गन्ना फसल के बचाव के लिए किसानों से संवाद स्थापित करने को कहा गया है. इसके साथ ही ड्रोन से आवश्यक दवाओं का छिड़काव व नियंत्रण कराने के निर्देश भी दिये गये हैं.
गन्ना विकास विभाग के मुताबिक 329 ड्रोन का उपयोग कर लगभग 24218 हेक्टेयर गन्ना क्षेत्रफल में दवाओं का छिड़काव कार्य किया जा चुका है. लगातार भारी बारिश से जलमग्नता के कारण कई क्षेत्रों में गन्ना फसल प्रभावित हुई है, जिससे गन्ने के पौधों की जड़ों में सड़न, कीट व रोग का प्रभाव तथा जंगली जानवरों के कारण जानमाल की क्षति बढ़ गयी है. वर्तमान में चीनी मिलें किसानों को रोग व कीट से बचाव के लिए लाइट ट्रैप मशीनें भी उपलब्ध करा रहीं हैं.
गन्ना विकास विभाग ने किसानों को सुझाव दिया है कि बाढ़ क्षेत्रों में गन्ना फसल को सफेद मक्खी, पोक्का बोइंग, जड़ बेधक, चोटी बेधक, रेड रॉट एवं हानिकारक कीटों से बचाव के लिए वैज्ञानिकों द्वारा संस्तुत कीटनाशकों का समय से छिड़काव करें. गन्ना खेतों में लगने वाले रोग व कीट नियंत्रण हेतु जानकारी, जंगली जानवरों से जान-माल की सुरक्षा से संबंधित जानकारी/सुझाव विभागीय टोल फ्री नम्बर 18001213203 पर दर्ज करा सकते हैं.
उप्र के पूर्व कृषि निदेशक डॉ जितेंद्र कुमार तोमर ने बताया कि जुलाई, अगस्त और सितंबर का महीना गन्ने की फसल के लिए सबसे खास होता है, क्योंकि इसी समय यह सबसे तेजी से बढ़ता है. लेकिन इस साल भारी बारिश से खेतों में पानी भर गया है. इस जलभराव के कारण गन्ने की बढ़वार रुक गई है और फसल में कीड़े-बीमारियां लगने का खतरा भी बढ़ जाता है.
उन्होंने बताया कि सबसे पहला काम खेत से पानी को जल्द से जल्द बाहर निकालना है. इसके लिए नालियां बनाएं या पंप का उपयोग करें. वहीं 2 ग्राम थायोफेनेट मिथाइल 70 WP या कार्बेन्डाजिम 50 WP को प्रति लीटर पानी में घोलकर जड़ों के पास ट्रेंचिंग करें. जबकि NPK 19:19:19 उर्वरक का 5 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें.
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