ग्वालियर के किसान बृजेश सिंह रघुवंशी ने अच्छे दाम की उम्मीद में अभी अपने पास 175 क्विंटल गेहूं रखा हुआ है. लेकिन सरकार महंगाई कम करने के नाम पर अक्टूबर से ओपन मार्केट सेल स्कीम (OMSS) के तहत खुले बाजार में रियायती दर पर गेहूं बेचने जा रही है. जिससे रघुवंशी जैसे लाखों किसानों को भारी आर्थिक नुकसान होगा. अच्छे दाम की उम्मीद में ही देश के लाखों किसानों ने रजिस्ट्रेशन करवाने के बावजूद सरकार को एमएसपी पर गेहूं बेचने से इंकार कर दिया था. लेकिन अब उन्हें केंद्र सरकार की इस स्कीम की वजह से भारी घाटा उठाने के लिए तैयार रहना होगा. इस स्कीम की वजह से उन किसानों में सरकार के खिलाफ गुस्सा है जिन्होंने गेहूं अभी नहीं बेचा है.
रबी मार्केटिंग सीजन 2024-25 में एमएसपी पर सरकार को गेहूं बेचने के लिए देश के 36,97,784 किसानों ने रजिस्ट्रेशन करवाया था, लेकिन ओपन मार्केट में अधिक दाम मिलने की वजह से सिर्फ 21,06,349 किसानों ने ही बिक्री की. बाकी ने बृजेश सिंह रघुवंशी की तरह या तो अच्छे दाम की उम्मीद में अपने पास गेहूं स्टोर करके रख लिया या फिर एमएसपी से ज्यादा दाम पर व्यापारियों को बेच दिया. लेकिन, अब सरकार उपभोक्ताओं को राहत देने के नाम पर जो ओएमएसएस के तहत मार्केट में सस्ता गेहूं बेचने जा रही है उससे ऐसे किसानों को बड़ी आर्थिक चोट लगने वाली है. क्योंकि सरकार के इस कदम से शार्ट टर्म के लिए दाम कम हो सकते हैं.
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उपभोक्ता मामले मंत्रालय के प्राइस मॉनिटरिंग डिवीजन के अनुसार 26 अगस्त को देश में गेहूं का औसत थोक दाम 2784.53, अधिकतम 4600 और न्यूनतम भाव 2100 रुपये प्रति क्विंटल रहा. दूसरी ओर, औसत रिटेल प्राइस 30.83, अधिकतम 51 और न्यूनतम 22 रुपये प्रति किलो रहा. ये तो रहा गेहूं का थोक और खुदरा भाव. अब जरा यह समझ लेते हैं कि सरकार बाजार में कितनी कम कीमत पर कितना गेहूं बेचने वाली है.
केंद्र सरकार इस साल ओएमएसएस के तहत लगभग 55 लाख टन गेहूं बेचने वाली है. जबकि पिछले वित्त वर्ष में लगभग 100 लाख टन गेहूं की इस स्कीम के तहत बिक्री हुई थी. बहरहाल, सरकार इस साल 2,325 रुपये प्रति क्विंटल के दाम पर गेहूं बेचने वाली है. जबकि ट्रांसपोर्टेशन, रखरखाव और अन्य मदों को जोड़ लिया जाए तो उसकी खुद की आर्थिक लागत लगभग 3200 रुपये क्विंटल आती है.
सवाल यह है कि जब 2325 रुपये क्विंटल पर बड़े व्यापारियों और रोलर फ्लोर मिलर्स को सरकार से गेहूं मिलेगा तो वो बृजेश सिंह रघुवंशी जैसे किसानों से क्यों 3000 रुपये क्विंटल से अधिक कीमत पर गेहूं खरीदेंगे. गेहूं निर्यात पर 13 मई 2022 से लगी रोक की वजह से पहले ही किसानों को भारी नुकसान हो चुका है.
रघुवंशी का कहना है कि उनके जैसे बहुत से किसानों ने गेहूं स्टोर करके रखा हुआ है ताकि आगे चलकर अच्छा दाम मिले. लेकिन, अब सरकार व्यापारियों को फायदा पहुंचाने के लिए ओएमएसएस लेकर आ रही है. यह किसानों पर वज्रपात है. सरकार को बताना चाहिए कि क्या उससे सस्ता गेहूं लेकर रोलर फ्लोर मिलर्स जनता को सस्ता आटा बेचते हैं? पहले से ही 80 करोड़ लोगों को मुफ्त में अनाज दिया जा रहा है. सरकार अगर मिडिल क्लास को भी महंगाई से राहत देना चाहती है तो किसानों से बाजार भाव पर गेहूं खरीदकर उसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत फ्री में बांट दे. किसानों के कंधे पर ही महंगाई कम करने की जिम्मेदारी क्यों लाद दी जाती है?
पिछले साल यानी 2023 में भी किसानों ने उपभोक्ताओं को खुश रखने की कीमत चुकाई थी. तब ओपन मार्केट सेल स्कीम से किसानों को करीब 45,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था. यह अनुमान इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस के एक रिसर्च पेपर में लगाया गया था. जिसे जानमाने अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी, राया दास, संचित गुप्ता और मनीष कुमार प्रसाद ने तैयार किया था.
दरअसल, जब अप्रैल 2023 में गेहूं की नई फसल आई थी, उससे पहले सरकार ने एमएसपी पर अपने खरीद टारगेट को पूरा करने और महंगाई पर कंट्रोल पाने के लिए ओएमएसएस को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया था. बाजार भाव से बहुत कम कीमत पर 33 लाख टन सस्ता गेहूं बाजार में डंप करके दाम घटा दिया गया था, वरना किसानों की जेब में गेहूं की बिक्री से ज्यादा पैसे जाते.
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