अल नीनो एक जलवायु पैटर्न है जो भारत सहित दुनिया भर के कई क्षेत्रों में मौसम की स्थिति को प्रभावित कर सकता है. भारत में, खरीफ का मौसम मुख्य मॉनसून का मौसम है, जिसके दौरान कई नकदी फसलों की खेती की जाती है. अल नीनो के बारे में कहा जा रहा है कि यह भारत के कुछ हिस्सों में औसत से कम बारिश और सूखे की स्थिति पैदा कर सकता है, जिसका फसल की पैदावार पर खराब प्रभाव देखा जा सकता है.
हालांकि, अल नीनो के फसल और पैदावार पर सटीक प्रभाव की भविष्यवाणी करना मुश्किल है, क्योंकि यह घटना की गंभीरता और अवधि के साथ-साथ स्थानीय खेती और सिंचाई जैसे कई कारकों पर निर्भर करता है. ऐसे में अल नीनो फसल उत्पादन के मामले में जोखिम पैदा कर सकता है.
इस साल भारत में अल नीनो की आशंका के बीच कृषि मंत्रालय ने 44 मिलियन टन (एमटी) तिलहन का लक्ष्य रखा है, जो राष्ट्रीय मिशन के तहत 47.36 मिलियन टन उत्पादन के अपने लक्ष्य से थोड़ा कम है. हालांकि, 2015 के बाद से जब देश में अल-नीनो आखिरी बार आया था, विभिन्न नकदी फसलों की बुवाई क्षेत्रों में हुई प्रगति को देखते हुए कहा जा रहा है कि इस बार बारिश कम होने पर भी खरीफ के रकबे में कोई बड़ी कमी नहीं देखी जाएगी. यहां एक बात ध्यान देने वाली है कि अल नीनो या सूखे के चलते खेती के रकबे पर असर नहीं पड़ता. यहां रकबा और खेती का उत्पादन दोनों अलग-अलग है.
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इसके बारे में पिछले खरीफ सीजन का उदाहरण ले सकते हैं. पिछले साल उत्तर प्रदेश और बिहार के कई जिलों में कम बारिश हुई थी. उस साल उपज भले कम हुई लेकिन उसके मुकाबले रकबा प्रभावित नहीं हुआ था. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि लोगों ने खरीफ के शुरुआती दो महीने में धान की रोपाई कर ली थी, लेकिन बाद में कम बारिश ने उत्पादन को घटा दिया. इस तरह बिहार और उत्तर प्रदेश में रकबा अधिक रहा, लेकिन उसके मुताबिक उत्पादन नहीं मिला. इसी तरह, 2015 में सोयाबीन का रकबा 116.05 लाख हेक्टेयर था, जो 2022 में बढ़कर 120.37 लाख हेक्टेयर हो गया. इसी दौरान उत्पादन 8.57 मिलियन टन से बढ़कर 13.98 मिलियन टन हो गया.
2015 में जब अल-नीनो का असर देखा गया, उस साल शुरुआती दिनों में 115 परसेंट बारिश हुई थी, लेकिन बाद में यह घटकर 86 परसेंट पर आ गई. 2015 के मॉनसून सीजन के अंतिम तीन महीनों में बारिश कम हुई थी. उस दौरान देश के 36 मेटरोलॉजिकल डिवीजन में बारिश की कम मात्रा दर्ज की गई थी. इसके बावजूद 2015 में उसके पिछले साल की तुलना में मात्र 0.5 मिलियन टन कम खाद्यान्न का उत्पादन हुआ था.
तो क्या इस साल भी अल नीनो के असर में उत्पादन कम होगा? विशेषज्ञ इसे अभी जल्दीबाजी मान रहे हैं क्योंकि उत्पादन जानने के लिए खेती का रकबा भी देखना होगा. अभी खरीफ के रकबे की पूरी जानकारी नहीं है और न ही अल नीनो के बारे में कोई पुष्ट सूचना दी गई है. इसके बावजूद अल नीनो की आशंका में किसानों को सावधान रहना चाहिए. किसानों को वैकल्पिक बीजों की भी व्यवस्था रखनी चाहिए कि अगर सूखे की स्थिति में दोबारा बुआई करनी पड़े तो बीजों की कमी न हो. बीज पर्याप्त मात्रा में हों तो दोबारा बुआई कर उत्पादन की चिंता को दूर किया जा सकता है.