रबी फसलों के लिए आयोजित एक सम्मेलन में केंद्र सरकार ने खाद्यान्न के रिकॉर्ड पैदावार का दावा किया है. अब सवाल यह है कि जब कि जब प्रमुख फसलों का बंपर उत्पादन हुआ है तो फिर क्यों एक तरफ जनता महंगाई से जूझ रही है और दूसरी तरफ किसानों को सही दाम नहीं मिल रहा है. चावल और गेहूं का एक्सपोर्ट क्यों बैन है? कृषि मंत्रालय की आंकड़ों की बाजीगरी से अलग हटकर जनता तो कुछ ऐसा ही सोचती है. बहरहाल, केंद्रीय कृषि सचिव मनोज आहूजा के दावों को उन्हीं की जुबानी समझते हैं. आहूजा ने कहा कि देश में 2015-16 से खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि का रुझान बना हुआ है. तीसरे अग्रिम अनुमान (2022-23) के अनुसार, देश में खाद्यान्न का उत्पादन 3305 लाख टन होने का अनुमान है, जो 2021-22 के दौरान खाद्यान्न के उत्पादन की तुलना में 149 लाख टन अधिक है.
गेहूं, चावल, दालों और चीनी की बढ़ती महंगाई के बीच आहूजा ने दावा किया कि चावल, मक्का, चना, दलहन, सरसों, अन्य तिलहन और गन्ने के रिकॉर्ड उत्पादन का अनुमान है. साल 2022-23 के दौरान कुल दलहन उत्पादन रिकॉर्ड 275 और तिलहन उत्पादन 410 लाख टन होने का अनुमान है. मंगलवार को रबी अभियान 2023-24 के लिए आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि वर्ष 2023-24 के लिए कुल खाद्यान्न उत्पादन का राष्ट्रीय लक्ष्य 3320 लाख टन निर्धारित किया गया है. इसमें रबी सीजन 1612 लाख टन का योगदान देगा. रबी फसलों का हिस्सा दलहन के लिए 292 लाख टन में से 181 और तिलहन के लिए 440 में से 145 लाख टन होगा. गेहूं के 60 फीसदी रकबे में इस बार जलवायु प्रतिरोधी किस्मों की बुवाई का लक्ष्य रखा गया है.
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कृषि सचिव ने दावा किया कि पिछले 8 वर्षों में कुल खाद्यान्न उत्पादन 31 प्रतिशत बढ़कर 251.54 से 330.54 मिलियन टन हो गया है. वर्ष 2022-23 के लिए कृषि उत्पादों का निर्यात 53.145 बिलियन डॉलर को पार कर गया है. यह कृषि निर्यात के लिए अब तक का उच्चतम स्तर है.
रबी अभियान सम्मेलन का मकसद पूर्ववर्ती फसल मौसम के दौरान फसल की समीक्षा और आकलन करना तथा राज्य सरकारों के परामर्श से रबी मौसम के लिए फसल-वार लक्ष्य तय करना है. साथ ही खाद जैसे महत्वपूर्ण इनपुट की आपूर्ति सुनिश्चित करना और उत्पादन, उत्पादकता बढ़ाना है.
सरकार की प्राथमिकता चावल और गेहूं जैसी अतिरिक्त वस्तुओं से लेकर तिलहन और दालों जैसी कमी वाली वस्तुओं पर फोकस करना है. उच्च मूल्य और निर्यात वाली फसलों की ओर जाना है. प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में धर्मशाला में मुख्य सचिवों के पहले राष्ट्रीय सम्मेलन ने राज्यों के परामर्श से फसल विविधीकरण और दलहन तथा तिलहन में आत्मनिर्भरता के लिए एजेंडा निर्धारित किया है. यह सम्मेलन एजेंडे को तार्किक निष्कर्ष की ओर ले जाएगा.
कृषि मंत्रालय के अधिकारियों ने इस सम्मेलन में दावा किया कि पिछले 3 साल में ही सरसों का उत्पादन 37 प्रतिशत बढ़कर 91.24 से 124.94 लाख टन हो गया है. उत्पादकता 7 प्रतिशत बढ़कर 1331 से 1419 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गई है. सरसों का क्षेत्रफल 2019-20 में 68.56 से 28 प्रतिशत बढ़कर 2022-23 में 88.06 लाख हेक्टेयर हो गया. इस सराहनीय उपलब्धि के लिए कृषक समुदाय और राज्य सरकारें विशेष प्रशंसा की पात्र हैं. सरसों का उत्पादन बढ़ने से पाम और सूरजमुखी तेल के आयात में आ रहे कुछ संकट से निपटने में मदद मिल रही है.
सम्मेलन में एडवांस टेक्नोलॉजी की तुलना में पारंपरिक तौर-तरीकों के साथ फसल उत्पादन में बड़े उपज अंतर पर चिंता जताई गई. फसल एवं तिलहन की संयुक्त सचिव शुभा ठाकुर ने देश को इन वस्तुओं में आत्मनिर्भर बनाने के लिए अगले 5 वर्षों के लिए दलहन और तिलहन के लिए विजन प्रस्तुत किया. दलहन के लिए, 2025 तक 325.47 लाख टन का लक्ष्य हासिल करने का प्रस्ताव है.
दावा किया गया है कि अंतर-फसल, चावल की परती भूमि को लक्षित करना, उच्च क्षमता वाले जिलों और गैर-पारंपरिक क्षेत्रों में विस्तार जैसी विशेष परियोजनाएं तिलहन के तहत अतिरिक्त क्षेत्र लाएंगी. नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने से अगले 5 वर्षों में आयात निर्भरता को 56 प्रतिशत से कम करके 36 प्रतिशत करने में मदद मिलेगी. देखना यह है कि यह सारा फोकस कागजों तक ही सीमित रहेगा या फिर जमीन पर भी उतरेगा और किसानों को उसका कुछ फायदा भी मिलेंगा.
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इस मौके पर रबी सीजन से संबंधित सभी तकनीकी और इनपुट संबंधी मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की गई. उर्वरक सचिव रजत कुमार मिश्रा ने उर्वरकों की समय पर आपूर्ति की आवश्यकता पर जोर दिया. उन्होंने उर्वरकों की समय पर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए उर्वरक विभाग द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों को साझा किया. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने खेती में जलवायु अनुकूल प्रेक्टिस को अपनाने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला.