केंद्र सरकार द्वारा बासमती राइस का मिनिमम न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) 1200 डॉलर प्रति टन करने के बाद से निर्यातक परेशान हैं. इस मसले पर वाणिज्य मंत्रालय में हुई बैठक में निराशा हाथ लगने के बाद निर्यातकों का गुस्सा और बढ़ गया है. उन्हें सरकार के इस फैसले से एक्सपोर्ट में बड़ा नुकसान होने की आशंका है. ऐसी उम्मीद जाहिर की जा रही है कि ज्यादा दाम होने की वजह से भारत अपने बड़े ग्राहक आधार को खो सकता है. इस बीच पंजाब राइस मिलर्स एंड एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन ने इस मुद्दे पर पंजाब सरकार को खत लिखा है. क्योंकि पंजाब में सबसे ज्यादा बासमती चावल का उत्पादन होता है और इस फैसले से उसी को सबसे ज्यादा नुकसान होगा. एसोसिएशन का दावा है कि इस फैसले से किसानों को नुकसान पहुंचेगा.
पंजाब राइस मिलर्स एंड एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन से लाल किला, दावत, इंडिया गेट, महारानी, ज़ीबा और क्राउन सहित प्रमुख बासमती ब्रांड जुड़े हुए हैं. जो भारत से 140 से अधिक देशों में बासमती चावल भेजकर निर्यात में लगभग 35 फीसदी का योगदान करते हैं. पंजाब के कृषि सचिव को लिखे गए पत्र में एसोसिएशन के निदेशक अशोक सेठी ने कहा कि 25 अगस्त से सरकार ने बासमती चावल के निर्यात पर 1200 डॉलर प्रति टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य तय कर दिया है. इस अभूतपूर्व कदम से निर्यातकों के सामने कई समस्याएं खड़ी हो गई हैं.
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इस वर्ष पंजाब में पूसा बासमती 1509 की फसल बासमती की कुल फसल का 36 प्रतिशत है. न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) लगाने के इस फैसले से 1509 धान जो पहले से ही बाजार में आ रहा है, वह खराब हो जाएगा. प्रतिबंध से पहले 1509 बासमती धान 3700 रुपये प्रति क्विंटल पर बेचा जा रहा था और अब बाजार में 3300 रुपये प्रति क्विंटल पर बेचा जा रहा है. प्रति क्विंटल निर्यात में 1509 का बिक्री मूल्य 850-900 अमेरिकी डॉलर है. न्यूनतम निर्यात मूल्य के कारण 1509 केवल भारत में बेचा जाएगा.इसलिए, भारत में धान की कीमत गिर जाएगी और किसानों को नुकसान होगा. सवाल यह है कि ऐसे में किसानों की आय कैसे बढ़ेगी.
वर्ष 2022-23 के लिए भारत में बासमती चावल का कुल उत्पादन 6 मिलियन टन है. जबकि भारत में गैर-बासमती चावल का कुल उत्पादन 135.54 मिलियन टन है. एक तरफ गैर-बासमती उबले हुए चावल के निर्यात पर कोई प्रतिबंध नहीं है, जिसका मतलब है कि प्रति मीट्रिक टन 300 डॉलर की किस्म को 20 फीसदी एक्सपोर्ट ड्यूटी के साथ निर्यात करने की अनुमति है. जबकि 1509 बासमती उबले चावल, जो चावल की अधिक कीमत वाली किस्म है, की अनुमति नहीं है. यदि चावल की कम कीमत वाली किस्म भारत से बाहर चली जाएगी और ऊंची कीमत पर रोक लग जाएगी, तो कीमतें नियंत्रित करने का एजेंडा विफल हो जाएगा.
एमईपी पर निर्णय भारत के 80 फीसदी बासमती निर्यात को प्रभावित करेगा. अचानक 1200 अमेरिकी डॉलर एमईपी लगाने का निर्णय निर्यात की औसत कीमत से लगभग 150 अमेरिकी डॉलर अधिक है. भारतीय से बासमती का 80 फीसदी निर्यात 850 डॉलर प्रति टन के दाम पर है. जबकि 1200-1700 डॉलर प्रति टन के बीच का निर्यात का लगभग 20 फीसदी ही है. ऐसे में केंद्र के इस फैसले से हमारे 80 फीसदी बासमती चावल निर्यात पर असर पड़ेगा.
एमईपी पर निर्णय से पहले के कांट्रैक्ट पूरे नहीं किए जा सकते. यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इस एमईपी आदेश से पहले जो निर्यात अनुबंध हाथ में हैं, उन्हें बिना किसी देरी के तुरंत पूरा करने की अनुमति दी जानी चाहिए अन्यथा व्यापार को भारी नुकसान होगा. सेठी ने कहा कि हमने अपनी प्रोसेसिंग लागत और अन्य शुल्कों के अनुसार लागत की गणना की है. यह पूरी तरह से तथ्यों और उचित लागत पर आधारित है. दाम 850 से 900 डॉलर प्रति टन ही आती है.
एपीडा को निर्यात को प्रोत्साहित करना चाहिए और न्यूनतम निर्यात मूल्य तय करने से पहले सलाह लेनी चाहिए थी. सेठी का कहना कि सरकार वर्तमान फसल मूल्य और उसके निर्यात योग्य मूल्य के आधार पर पूरे मामले की समीक्षा करे, ताकि देश के साथ-साथ किसानों और उद्योग के लिए भी फायदा हो. एसोसिएशन अपने दावे को प्रमाणित करने के लिए सरकार के साथ कोई भी अतिरिक्त जानकारी साझा करने को तैयार है.
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