बांस किसानों के घर के आंगन से लेकर लड़ाई के मैदान में दुश्मनों के खिलाफ लठ बजाने जैसे कई काम में सहारा देने वाला एक टिकाऊ बहुमुखी प्राकृतिक पौधा है. यह जीवन में में भी शादी के मंडप से मृत्यु की शैय्या तक साथ देने के कारण काफी उपयोगी होता है. बांस ने साबित किया है कि यह किसी भी परिस्थिति में अपना विकास करने में सक्षम है, क्योंकि यह अपनी जलवायु विविधता के अनुरूप बदलाव लाने की क्षमता के कारण संजीवनी पौधा है. चाहे बाढ़ हो या सुखाड़, रेगिस्तान, या पहाड़ी इलाका हो, यह बांस आसानी से उग जाता है. यह उपजाऊ या बंजर जमीन में भी सफलता से उग सकता है. बांस की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. इसलिए, इसे 'ग्रीन गोल्ड' कहा जाता है और किसानों के लिए एक वास्तविक एटीएम के रूप में माना जाता है.
दरअसल बांस एक बहुउपयोगी पौधा है, इसलिए इसे ग्रीन गोल्ड कहा जाता है. बांस का उपयोग भवन निर्माण से लेकर खानपान और कुटीर उद्योग में बहुतायत से किया जाता है. अगरबत्ती उद्योग, पैकिंग उद्योग, कागज उद्योग और बिजली पैदा करने आदि में भी इस्तेमाल किया जाता है. आम तौर पर शहरों-क़स्बों या गांवों में सीमेंटेड मकान बनाते वक्त, इसके उपयोग पर आपकी नज़र पड़ी होगी. लेकिन सजावटी, रसोई और घरेलू सामान बनाने में भी ये बहुत काम आता है. इसका इस्तेमाल वाद्य-यंत्र और आयुर्वेदिक दवा के रूप में होता है. इससे अच्छी क्वालिटी की चेचरी और मैट बनाए जाते हैं. बाढ़-भूकंप और तूफान वाले इलाक़ों में, बांस से बने घर ज्यादा सुरक्षित माने जाते हैं. इतना ही नहीं, मृदा-क्षरण को रोकने में भी, बांस की अहम भूमिका है. बाढ़ वाले इलाक़ों में, जहां बाकी फ़सलों को नुक़सान होता है, वहां बांस सुरक्षित रहता है.
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बांस को किसानों का ATM कहा जाता है. बहुउपयोगी होने के कारण बांस की बिक्री की कोई समस्या नहीं रहती है. खरीदार या व्यापारी खुद, खेतों से बांस काटकर ले जाते हैं. ना बाज़ार का झंझट, ना दाम की चिकचिक. साथ ही दूसरी फ़सलों में जहां हर वक्त नजर रखनी पड़ती है, उसमें मानव-श्रम ज्यादा लगता है, वहीं बांस का बगीचा, एक बार लगा देने पर इसमें ज्यादा मानव-श्रम की ज़रूरत नहीं पड़ती, और 5 साल बाद से लेकर, 30 साल तक इससे नियमित आमदनी होती रहती है. अपने इन्हीं ख़ास गुणों के कारण, बांस को किसानों का ATM कहा जाता है.
बांस की खेती के लिए बलुआही-दोमट मिट्टी से लेकर चीकनी, चट्टानी और दलदली मिट्टी भी अच्छी होती है. इसे आप उपेक्षित एरिया में भी उपजा सकते हैं. लेकिन बांस की व्यावसायिक तौर पर खेती के लिए, शुरुआत में काफी ध्यान देना पड़ता है. मॉनसून का वक्त, इसकी रोपाई के लिए काफ़ी बेहतर होता है, इसलिए जून से लेकर सितंबर तक का महीना, उपयुक्त है. खेत की जुताई, पाटा लगाना, समतल करना, तब फिर बीज प्रसारण या वानस्पतिक विधियों से आप बांस की रोपाई कर सकते हैं. ज्यादातर 01 साल पुराने कंद और कंद के बीट्स रोपाई के उपयोग में लाए जाते हैं.
राष्ट्रीय कृषि वानिकी अनुसंधान केंद्र झांसी के अनुसार भारत में आमतौर पर बांस की 23 वंश की 58 प्रजातियां पाई जाती हैं. जातियां अधिकतर पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्रों में हैं. भारत में सेंट एक्टस वंश 45 प्रतिशत, बॉम्बुसा बॉम्बे;13 प्रतिशत और डेंड्रोकैलामस मिल्टनी 7 फीसदी पाई जाती है. बांस के बीज चावल की तरह होते हैं. बांस को टिश्यू कल्चर द्वारा तैयार पौध से रोपाई की जाती है.
बांस के तैयार खेत में 60 बाई 60 सेमी का गड्ढा खोदकर, उसमें दानेदार कीटनाशक, वर्मी कंपोस्ट वगैरह को मिक्स कर रोपाई की जाती है. एक एकड़ में लगभग 250 पौधे लगते हैं. कुछ मुरझाकर सूख भी जाते हैं, इसलिए आपको गैप फिलिंग के लिए भी तैयार रहना होगा. शुरुआती देखभाल और 2-4 महीने पर सिंचाई के आलावा, बांस के पौधे को ज़्यादा कुछ नहीं चाहिए होता है. चूंकि इसे तैयार होने में लगभ चार साल लग ही जाते हैं, इसलिए शुरुआती तीन साल में आप अंतर्वर्ती फ़सलें लगाकर अच्छी आमदनी कर सकते हैं. इसमें अदरक, ओल और हल्दी के अलावा छाया में बढ़ने वाले फूल लगाकर आप मुनाफ़ा कमा सकते हैं.
हर चार साल बाद बांस के बगीचे तैयार हो जाते हैं और तब आप इसकी कटाई कर सकते हैं. चार साल पर एक एकड़ से 15 से 20 लाख आमदनी ले सकते हैं या मेड़ पर लगाकर हर साल 20 हजार तक की आमदनी ले सकते हैं. बांस 30 साल के जीवनकाल तक चलता रहता है. इस तरह बांस की बागवानी लगाकर आप बाढ़ वाले इलाक़े में भी अच्छी और निश्चित आय कमा सकते हैं. ये हर वक्त बिकने को तैयार रहने वाला पौधा है, जिस कारण इसे ग्रीन गोल्ड भी कहते हैं. देश में इसकी खेती को बढ़ावा देने के लिए नेशनल बैंबू मिशन चलाया जा रहा है. अब नेशनल बैंबू मिशन के तहत सरकार सब्सिडी भी दे रही है. इसके सहभागी बन कर आप लाभ उठा सकते हैं.
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आज की परिस्थिति में सबसे बेहतर है बांस की खेती क्योंकि प्रदूषण बढ़ रहा है. बांस कार्बन अवशोषित कर 35 फीसदी ऑक्सीजन रिलीज करता है. वहीं जलवायु परिवर्तन के दौर में अच्छा विकल्प हो सकता है. बांस की खेती और व्यवसाय से करीब पांच करोड़ से ज्यादा लोगों को रोजगार मिल सकता है. बांस का अचार, साथ ही अब बांस के नूडल्स, कैंडी, पापड़ भी बनाए जा रहे हैं. इसकी पत्तियों में प्रोटीन, रेशा,खनिज और विटामिंस आदि अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं. सर्दियों के मौसम में हरे चारे की कमी होने के कारण बांस की पत्तियों का महत्व और भी बढ़ जाता है.