बेल वाली सब्जियों की उपज तब और बढ़ जाती है जब उन्हें मचान पर चढ़ा दिया जाए. इस तरह से सीजन में या बिना सीजन भी, दोनों मौसम में इस तरह की सब्जियां बंपर उपज देती हैं. आप अगर लौकी की खेती करते हैं, तो मचान विधि से उत्पादन बढ़ा सकते हैं. मचान विधि पूरी तरह से वैज्ञानिक तरीका है जिसका फायदा किसान उठा रहे हैं. इन्हीं किसानों में एक हैं राजस्थान के भीलवाड़ा के अब्दुल जलील लोहार. अब्दुल जलील बिगोद के रहने वाले हैं और वहीं पर अपनी खेती करते हैं. वे कभी स्कूल भले न गए हों, लेकिन उनके इनोवेटिव आइडिया ने अच्छे-अच्छे लोगों को सोचने पर मजबूर किया है.
इन दिनों किसानों में मचान विधि काफी प्रचलित है. मचान विधि बेल वाली सब्जियों के लिए बेहद कारगर मानी जाती है. बिगोद के रहने वाले अब्दुल जलील लोहार पिछले तीन साल से अपने ढाई बीघा खेत में लौकी की फसल मचान विधि से ले रहे हैं. इसके साथ वे मिश्रित खेती भी कर रहे हैं. इस बार उन्होंने लौकी की हजारा की नई किस्म भी लगाई है जिसको लोग खूब पसंद कर रहे हैं.
लौकी में हजारा के नाम से नई किस्म आई है. इसकी खासियत है कि एक पौधे पर एक हजार से भी अधिक लौकी आती है. इस किस्म की लौकी खाने में स्वादिष्ट होने से मंडियों में भी खूब पसंद की जा रही है.
मचान विधि बेल वाली सब्जियों जैसे लौकी, खीरा और करेला के लिए उपयुक्त मानी जाती है. इसमें बांस या तार की मदद से खेत में मचान तैयार करके उस पर सब्जियों की बेल को चढ़ा देते हैं. मचान विधि से फसल का नुकसान कम होता है. बारिश होने पर बेल वाली सब्जियों के खराब होने का अंदेशा बना रहता है.
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मचान विधि से फसल सुरक्षित रहती है. फसलों में किसी प्रकार का रोग या कीट लगने पर दवाइयां छिड़कने में भी बेहद आसानी होती है. मचान के नीचे धनिया, टमाटर, मिर्ची, पालक लगाकर अतिरिक्त आय ली जा सकती है. मचान विधि से फसल की क्वालिटी और पैदावार दोनों में बढ़ोतरी होती है.
तीन साल पहले किसान अब्दुल जलील लोहार ने मचान विधि से बेल की सब्जियों की खेती शुरू की थी. वे कहते हैं, जमीन पर लौकी की खेती करने से उसका रंग और आकार अच्छा नहीं होता. इससे मंडी में उपज का उचित दाम नहीं मिलता था. इस कमी को देखते हुए लोहार को आइडिया आया कि लौकी की बेल को क्यों नहीं मचान पर चढ़ाया जाए. इस आइडिया में साथ दिया एक अन्य किसान अब्दुल रजाक ने. अब मचान से खेती ने उनकी किस्मत बदल दी है.
लौकी पैदा करने वाले किसान अब्दुल जलील कहते हैं कि जमीन पर बेल पड़ी रहने से लौकी का रंग एक जैसा नहीं होता है. उसका आकार भी टेढ़ा मेढा हो जाता है. जबकि मचान पर लौकी की बेल चढ़ाने से लौकी चारों तरफ चमकिले हरे रंग वाली और सीधी होती है. मिट्टी से लौकी खराब भी हो जाती है. इसकी क्वालिटी अच्छी होने से जहां जमीन पर उगाई जाने वाली लौकी मंडी में 5 रुपये प्रति किलो बिकती है, वही मचान वाली लौकी का भाव 10 रुपये आसानी से मिल जाता है. यहां तक की उपज को मंडी में बिकने में 5 मिनट भी नहीं लगते.
अब्दुल जलील आगे कहते हैं कि मचान लगाने से उत्पादन बढ़ा है. गर्मी के दिनों में जमीन पर तैयार होने वाली लौकी को तीन से चार दिन में तोड़ा जाता है. ठंड के दिनों में 10 दिन में तोड़ा जाता है, जबकि मचान पर लगाई गई लौकी को गर्मी के दिनों में हर दिन तोड़ सकते हैं. ठंड के दिनों में चार दिन में तोड़ा जाता है.
डेढ़ बीघा जमीन में गर्मी में जमीन की फसल से 150 किलो लौकी का उत्पादन होता है, तो मचान पर यह उत्पादन 400 किलो तक पहुंच जाता है. अभी सर्दी के दिनों में हर चार दिन पर लौकी तोड़कर डेढ़ बीघा खेत से 216 किलो लौकी की उपज ली जा रही है. अगर जमीन पर फसल फैलाते तो मुश्किल से 150 किलो लौकी ही मिलती.
अब्दुल जलील लोहार तीन साल पहले तक मचान विधि से खेती नहीं करते थे. तब वे फसल को लेकर परेशान रहते थे क्योंकि पूरा खर्च नहीं निकल रहा था. अब स्थिति ये है कि फोन पर उपज का ऑर्डर आता है और कुछ ही देर में पूरी उपज बिक जाती है. सीजन में 16 रुपये किलो और अभी 20 रुपये प्रति किलो के हिसाब से लौकी बिक जाती है.
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अगर जमीन पर लौकी होती तो सीजन में चार रुपये पर भी बिक्री नहीं होती. जलील बताते हैं कि डेढ़ बीघा लौकी की खेती के लिए मचान तैयार करने में उन्हें लकड़ी, लोहे के तार और प्लास्टिक की डोरी में मुश्किल से 40,000 का खर्चा आया जो कब का निकल चुका है.
अब लौकी की फसल खत्म होने वाली है तो किसान ने इसके नीचे टमाटर के पौधे लगा दिए गए हैं. पौधे को धूप मिलती रही तो मार्च में टमाटर की फसल तैयार हो जाएगी. इस फसल को भी प्लास्टिक की डोरी से ऊपर बांधा जा रहा है. इससे टमाटर के पौधे भी जमीन पर नही फैलेंगे. इससे टमाटर खराब नहीं होंगे.
खेत से निकलने वाले टमाटर की क्वालिटी बेहतर होगी जिससे अच्छे दाम मिलेंगे. अब्दुल जलील बताते हैं कि डेढ़ बीघा जमीन में 40,000 रुपये की मचान के साथ-साथ उन्होंने अब तक कुल 70,000 रुपये लौकी की बुआई, खाद और दवाइयों पर खर्च किए हैं. इसके बाद वे डेढ़ लाख रुपये से अधिक लौकी की फसल ले चुके हैं और अभी दो तुड़ाई बाकी है.(प्रमोद तिवारी की रिपोर्ट)