
हल्दी भारत के लिए सिर्फ एक मसाला ही नहीं है बल्कि यह एक इमोशन भी है. किचन के एक कोने से लेकर घर के हर शुभ काम में इसका प्रयोग होता है. लेकिन अब इस पर सिर्फ भारत की दावेदारी ही नहीं रह गई है बल्कि एशिया के दूसरे देशों ने भी इसमें अपनली हिस्सेदारी दर्ज करा दी है. एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की हल्दी की एशिया के दूसरे देशों से कड़ी टक्कर मिल रही है और ये देश अब भारत की बराबरी करने की कोशिशों में लगे हैं.
भारत, जिसका ग्लोबल हल्दी मार्केट में करीब 70 परसेंट हिस्सा है, उसे वियतनाम, म्यांमार और कुछ अफ्रीकी देशों से कड़ी टक्कर मिल रही है. विशेषज्ञों का कहना है कि ये देश काफी तेजी से हल्दी की खेती में भारत की बराबरी करने की कोशिश कर रहे हैं. अखबार बिजनेसलाइन ने नेशनल टर्मरिक बोर्ड की सेक्रेटरी एन भवानी श्री के हवाले से लिखा, 'हमें ग्लोबल स्टैंडर्ड्स को पूरा करने के लिए हल्दी की क्वालिटी में सुधार करने की जरूरत है. हमारी हल्दी को वियतनाम, म्यांमार और कुछ अफ्रीकी देशों से कड़ी टक्कर मिल रही है. इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है कि करक्यूमिन की मात्रा कैसे बढ़ाई जाए और नमी का लेवल 10 परसेंट से कम किया जाए.'
मंगलवार को हुए टर्मरिक वैल्यू चेन समिट 2025 के दौरान उन्होंने कहा कि टॉप एक्सपोर्टर जितना हम दे सकते हैं, उतना एक्सपोर्ट करने के लिए उत्सुक हैं लेकिन वो खास तौर पर गुड एग्रीकल्चरल प्रैक्टिसेज (GAP) का इस्तेमाल करके उगाए गए अच्छी क्वालिटी के बीज की मांग कर रहे हैं. हालांकि, उपज का ऑर्गेनिक होना जरूरी नहीं है, लेकिन इसमें इंटीग्रेटेड पेस्टमैनेजमेंट टेक्निक्स का इस्तेमाल होना चाहिए जो ग्लोबल स्टैंडर्ड्स को पूरा करती हों.
जिस करक्यूमिन की बात भवानी श्री ने की है वह दरअसल हल्दी का सबसे एक्टिव और फायदेमंद कंपाउंड होता है. यही हल्दी को उसका पीला रंग देता है और इसके औषधीय गुणों के लिए जिम्मेदार होता है. किसी हल्दी में 3 फीसदी या 5 फीसदी करक्यूमिन कंटेंट होता है तो उसे अच्छा माना जाता है. विशेषज्ञों के अनुसार ज्यादा करक्यूमिन वाली हल्दी की बाजार कीमत भी ज्यादा मिलती है.
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