झारखंड के युवा कृषि के क्षेत्र में आगे आ रहे हैं और खेती को अपना रोजगार के तौर पर अपनाकर इससे अच्छी कमाई कर रहे हैं. युवाओं के कृषि में आने से इसमें नए प्रयोग हो रहे हैं. इस तरह नए आइडिया भी निकल कर सामने आ रहे हैं. रांची जिले के ठाकुरगांव में रहने वाले ऐसे ही युवा किसान हैं बिसेश्वर साहू जो 2008 से खेती कर रहे हैं. वह बताते हैं कि दसवीं पास करने बाद पूरी तरह से खेती करने लग गए. दरअसल बोर्ड की परीक्षा के दौरान उनके पिताजी का एक्सीडेंट हो गया जिसके बाद वो पूरी तरह से खेती करने लग गए.
बिसेश्वर साहू फिलहाल ढाई एकड़ जमीन में खेती करते हैं. इस जमीन में वो सभी प्रकार के सब्जियों की खेती करते हैं. हरी सब्जियों की बात करें, तो आलू, मटर, गाजर और गोभी जैसी सब्जियों की खेती करते हैं. सरकारी योजनाओं के लाभ के सवाल पर उन्होंने कहा कि उन्हें आज तक ड्रिप इरिगेशन में सरकारी योजना के लाभ के अलावा कोई लाभ नहीं मिला है. पीएम किसान योजना के लाभ के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि उन्हें पीएम किसान योजना का आज तक लाभ नहीं मिला है. उन्होंने इसके लिए आवेदन दिया था पर इसके बावजूद उन्हें लाभ नहीं मिला है.
बताते हैं कि उनके गांव जीवन बगीचा के 10 प्रतिशत से किसानों को भी पीएम किसान योजना का लाभ नहीं मिला पाता है. किसानों का कहना है कि उन्होंने आवेदन तो किया था पर किसी को योजना का लाभ नहीं मिल पाया है. फसल नुकसान के मुआवजा के सवाल पर उन्होंने कहा कि पांच साल पहले हुए ओलावृष्टि के कारण उनके खेत पर लगी सब्जियों को काफी क्षति हुई थी. मुआवजे को लेकर उन्होंने आवेदन दिया था पर उन्हें किसी प्रकार का मुआवजा नहीं मिला.
बिसेश्वर साहू ने बताया कि वो जैविक खेती करने पर पूरा जोर देते हैं, पर अभी तक पूर्ण जैविक खेती नहीं करते हैं. उन्होंने कहा कि वो रासायनिक खाद का इस्तेमाल बेहद कम करते हैं. ढाई एक़ड जमीन में खेती करते हैं पर एक साल में तीन बोरा यूरिया का इस्तेमाल नहीं कर सकते, अधिकाशं जैविक खाद का इस्तेमाल करने पर जोर देते हैं. वह अपने खेत में केंचुआ खाद के साथ-साथ पर्याप्त मात्रा में गोबर खाद भी डालते हैं. फिलहाल तरबूज की खेती के लिए केंचुआं खाद अपने खेत में इस्तेमाल कर रहे हैं.
बिसेश्वर साहू जीवन बगीचा के उन दो किसानों में शामिल हैं जो ड्रिप इरिगेशन के जरिए खेती करते हैं. जीवन बगीचा में पानी का स्तर काफी तेजी से नीचे गिरा है, क्योंकि सभी किसान फ्लड इरिगेशन से खेती करते हैं. इसके पीछे का तर्क देते हुए बिसेश्वर बताते हैं कि वहां कि मिट्टी बलुई है जिसके कारण किसान ड्रिप तो लगाते हैं पर सफल नहीं हो पाते हैं. जबकि उन्होंने पाइप के छेद में बदलाव करके ड्रिप इरिगेशन में सफलता हासिल की है. इस तरह से उन्होंने एक उदारण भी पेश किया है.
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