महाराष्ट्र के किसानों को इस साल पिछले वर्ष की तरह कॉटन का भाव नहीं मिल रहा है. साल 2022 में उन्हें 12000 रुपये प्रति क्विंटल तक का रेट मिला था. लेकिन, इस बार दामों की सुई 8000 रुपये पर ही अटकी हुई है. किसान पिछले साल के भाव में ही उपज बेचने के मूड में नजर आ रहे हैं. ऐसे में अब उन्होंने कॉटन को अपने पास होल्ड करना शुरू कर दिया है. मतलब, महाराष्ट्र के किसान मंडियों में कॉटन बेचने नहीं जा रहे हैं. जिसका असर कपड़ा उद्याेग भी दिखाई देना शुरू हो गया है. नतीजतन किसानों की तरफ से कॉटन नहीं बेचने की वजह से टेक्सटाइल इंडस्ट्री के काम पर असर पड़ा है. हालांकि कॉटन का मौजूदा भाव MSP से अभी भी ज्यादा है. कॉटन का MSP साल 2022-23 के लिए 6380 रुपये प्रति क्विंटल है.
मालूम हो कि पाकिस्तान में बारिश की वजह से इस साल कॉटन की फसल खराब हो गई थी. पाकिस्तान में कॉटन का उत्पादन गिरने से देश की कई टेक्सटाइल फैक्ट्रियों को बंद करना पड़ा है. नतीजतन, इस वजह से पाकिस्तान में 70 लाख लोगों को बेरोजगार होना पड़ा.
महाराष्ट्र में काॅटन की खेती करने वाले किसान अपनी उपज को कम दाम की वजह से मंडियों में बेचने से परहेज कर रहे हैं. कॉमोडिटी रिसर्चरों के मुताबिक फसल सीजन 2022-23 के लिए अब तक कॉटन की कुल आवक 1.74 मिलियन मीट्रिक टन दर्ज की गई है, जो कि पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 37.67 फीसदी कम है. इससे मिलों का काम बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है.
मंडियों तक कॉटन नहीं पहुंचने से टेक्सटाइल इंडस्ट्री का काम प्रभावित हो रहा है. जानकारी के मुताबिक टेक्सटाइल इंडस्ट्री अभी अपनी मौजूदा क्षमता का सिर्फ 40-50 फीसदी ही परिचालन कर पा रही हैं. हालांकि इस साल परिदृश्य अलग है क्योंकि कपास की आवक में तेजी आना अभी बाकी है और असमानताएं बाजार के लिए चिंता का विषय बनी हुई हैं. महाराष्ट्र सबसे बड़ा कपास उत्पादक है. यह भारत के कुल कपास उत्पादन का करीब 30 फीसदी का योगदान देता है.
कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (CAI) दाम 8000 रुपये से भी कम करवाने के लिए जुटा हुआ है. सीएआई ने दावा किया है कि वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धी देशों की तुलना में भारत में कॉटन का भाव काफी ज्यादा है. इसलिए वो कपास पर लगी हुई 11 फीसदी इंपोर्ट ड्यूटी को कम करने की मांग उठा रहा है. उसका तर्क है कि इस ड्यूटी की वजह से इंपोर्टेड कॉटन महंगा हो गया है. माना जा रहा है कि अगर सरकार ने उसकी बात मानी तो किसानों को और नुकसान हो जाएगा. क्योंकि इंपोर्ट ड्यूटी खत्म होते ही विदेशों से आने वाला कॉटन घरेलू कपास से सस्ता हो जाएगा.
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कपास की खेती करने वाले किसान सावंत सुरेश मंडल बताते हैं कि नासिक जिले के मालेगांव में किसान प्याज और कपास की खेती करते हैं. उनका कहना है कि इस समय किसानों को जो भाव मिल रहा है उससे हम किसानों की तो लागत ज्यादा है. सावंत बताते हैं कि कपास के बीज खरीदी से लेकर हार्वेस्टिंग तक प्रति एकड़ 60 से 70 हज़ार तक खर्च आता है और प्रति एकड़ में 10 क्विंटल तक का उत्पादन मिलता है.
ऐसे में किसानों को मिल रहा 7500 से लेकर 8000 रुपये प्रति क्विंटल का रेट कुछ भी नहीं है. फिर बढ़ती मंहगाई में किसान इतने कम भाव में कैसे गुजारा कर पाएगा. किसान कपास का कम से कम 10,000 से 11000 रुपये क्विंटल का भाव चाहते हैं. इसलिए अब किसान कपास के स्टॉक पर ज़ोर दे रहे हैं.
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