बाजरे की खेती और इसके इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए ओडिशा में संचालित ओडिशा मिलेट मिशन देश के एक बेहतरीन अभियानों में से एक है. इससे ओडिशा में बाजरा उत्पादन को काफी गति मिली है. लोग इसके इस्तेमाल के प्रति जागरूक भी हुए हैं. ओडिशा में बाजरे को इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए जमीनी स्तर पर कई तरह से काम हुए और कई नए प्रयोग किए गए. इसकी मार्केटिंग और ब्रांडिंग पर खास ध्यान दिया गया ताकि अधिक से अधिक लोगों तक इसकी पहुंच हो सके और किसान इसकी खेती के लिए तैयार हो सकें.
सबसे पहले किसानों से यह जानने की कोशिश की गई कि आखिर वक्त के साथ बाजरे की खेती करने वाले किसानों की संख्या कैसे कम हो गई. पहले यहां ऐसे किसानों की संख्या अधिक थी जो बाजरे की खेती करते थे. पर पिछले दो दशकों में बाजरे की खेती करने वाले किसानों की संख्या काफी कम हो गई थी. इसके पीछे किसानों का तर्क था कि कंधमाल जैसे क्षेत्रों में उनके फसलों को जंगली सूअर काफी नुकसान पहुंचा रहे थे. इसके कारण किसान थक कर बाजरे की खेती से धीरे-धीरे दूर होते गए.
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किसानों की इस समस्या को दूर करने के लिए खेतों में फसलों को बचाने के उपाय किए गए. धान के मुकाबले बाजरा का उत्पादन कम होता है, इसलिए किसान धान की खेती की तरफ बढ़ रहे थे. पर इसकी मार्केटिंग के तहत महिला किसानों का समूह बनाया गया. अलग-अलग उत्पादक संगठनों का गठन किया गया और खेती में शामिल किया गया. इसके बाद बाजरे के उत्पादन पर फोकस किया गया. पहले साल उत्पादन में 20-30 क्विंटल की बढ़ोतरी हुई. इसके बाद से सरकार ने इसकी खेती की तरफ ध्यान देना शुरू किया.
मार्केटिंग पर जोर देने के लिए उत्पादन बढ़ाया गया. फिर बाजरे की खरीद पर फोकस किया गया. 2018 से इसकी सरकारी खरीद शुरू की गई. इसकी एमएसपी 28 रुपये तक तय की गई. दाम और उत्पादन बढ़ने के साथ ही जागरूकता अभियान भी शुरू किया गया. गांव स्तर पर यह काम शुरू हुआ जिसमें आठ हजार किसानों को जोड़ा गया. आज राज्य के 1.5 लाख किसान इससे जुड़े हुए हैं और हर साल इतनी ही संख्या में लोग इस अभियान का हिस्सा बन रहे हैं. तीन हजार हेक्टेयर से इसकी खेती शुरू हुई थी जो आज दो लाख हेक्टेयर में पहुंच गई है.
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राज्य में अधिक से अधिक लोग बाजरे का सेवन कर सकें, इसलिए बाजरे की अधिक से अधिक रेसीपी बनाने पर जोर दिया दिया गया. विभिन्न रेस्त्रां औj होटलों में इससे सबंधित भोजन को प्रमोट करने के लिए कहा गया. बाजरा और इसके उत्पादन की बिक्री सुनिश्चित करने के लिए अलग से आउटलेट खोले गए जहां पर 'रेडी टू इट फूड' उपलब्ध कराया गया. बच्चों के पोषाहार में इसे शामिल किया गया. इस तरह से इसकी बिक्री को बढ़ावा मिला और किसान इसकी खेती करने में जुट गए.