झारखंड वनों संपदा से भरापुरा प्रदेश हैं. आदिवासी बहुल इस राज्य में खान-पान भी अलग-अलग है. इसी क्रम में आज आपकों इस में खबर बताने जा रहे हैं झारखंड में खाई जाने वाली एक साग के बारे में. इस साग का नाम फुटकल साग है. साल भर में एक बार ही मिलता है. इस दौरान इसे सूखा कर रख लिया जाता है जिसे सालभर लोग खाते हैं. पहले यह सिर्फ आदिवासियों के खान-पान में शामिल था पर अब अन्य लोग भी इसे खाने लगे हैं. खाने में हल्का खट्टापन लिए हुए यह साग बेहद स्वादिस्ट होता है. इस साग के अलग-अलग रेसिपी बनाए जाते हैं.इसके अलावा यह सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद होता है.
फुटकल साग की खास बात यह है कि इसकी खेती नहीं होती है. इसे पेड़ से तोड़ा जाता है. यह पेड़ बड़े आकार के होते हैं. बसंत ऋतु की शुरुआत में जब पेड़ों के नए पत्ते निकलती है उस वक्त फुटकल पेड़ के नए और नाजुक कोंपलों को तोड़ा जाता है. इसे साग के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. इसका वैज्ञानिक नाम फिकस जेनीकुलाटा है. झारखंड में प्रमुख तौर पर इसके पेड़ पाए जाते हैं. फुटकल के ताजा पत्तों से भी कई प्रकार की रेसिपी बनाई जाती है, जबकि अन्य महीनों में खाने के लिए अच्छे से सूखाकर रखा जाता है.
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कच्चे फुटकल साग को उबालकर उससे चटनी बनाई जाती है जो बेहद स्वादिस्ट होती है. इसके अलावा चावल बनाने के बाद जो माड़ बचता है उसमें मिलाकर ग्रेवी वाली सब्जी बनाई जाती है, साथ ही सूप के तौर पर इसका इस्तेमाल किया जाता है जो बेहद स्वादिस्ट होता है. इसमें हल्का खट्टा स्वाद आता है. इसके अलावा इसे उबालकर धूप में सुखाया जाता है. फिर इसे कुटकर चूर्ण बनाकर रखा जाता है. जिसे ग्रेवी वाली सब्जियों में मिलाया जाता है. इससे ग्रेवी में एक खास स्वाद आता है. इसके अलावा अब फुटकल का आचार भी बनाया जाता है. जिसे झारखंड में लोग बड़े चाव से खाते हैं.
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फुटकल साग के स्वाद के बारे में जानने के बाद अब यह जानना बेहद जरूरी है कि इसके सेवन के क्या फायदे होते हैं. फुटकल साग में कैल्शियम आयरन और जिंक भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. इसके अलावा यह फाइबर का भी अच्छा स्त्रोत है. दादी नानी के नुस्खों के अनुसार फटकल साग के सेवन से दांत और हड्डियां मजबूत होती है. साथ ही इसके सेवन से हिमोग्लोबिन भी बढ़ता है. वहीं उल्टी, दस्त या पेचिश जैसे पेट के रोगों के लिए यह बेहद कारगक घरेलु इलाज है. इसकी चटनी बनाकर खाने से लाभ मिलता है.