बिहार सरकार अब चौर क्षेत्रों की परंपरागत पहचान बदलने को तैयार है. जो ज़मीन पहले बेकार मानी जाती थी, वहीं अब मछली पालन, बागवानी और खेती के ज़रिए रोज़गार और उद्यमिता की नई इबारत लिखी जा रही है. मुख्यमंत्री समेकित चौर विकास योजना के तहत सरकार किसानों और उद्यमियों को 40 फीसदी से लेकर 70 प्रतिशत तक का अनुदान दे रही है.
बिहार सरकार मत्स्य पालन के माध्यम से उद्यमिता और रोजगार को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चला रही है. इसी कड़ी में पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग के मत्स्य निदेशालय ने राज्य में उपलब्ध निजी चौर भूमि को मत्स्य आधारित समेकित जलकृषि के लिए विकसित करने के उद्देश्य से लाभूक आधारित चौर विकास और उद्यमी आधारित चौर विकास योजनाएं शुरू की हैं. इन योजनाओं का लाभ वे किसान उठा सकते हैं, जिनकी जमीन चौर क्षेत्रों में स्थित है.
राज्य के पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग के तहत संचालित इस योजना का मकसद है कि निजी चौर भूमि को मत्स्य आधारित समेकित जल कृषि मॉडल के तहत विकसित किया जाए. इससे राज्य के युवाओं, किसानों और उद्यमियों को स्थायी रोजगार के अवसर मिल सके.
योजना के तहत सरकार द्वारा दिया जाने वाला अनुदान पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग के मत्स्य निदेशालय द्वारा इन योजनाओं के अंतर्गत अनुदान की व्यवस्था इस प्रकार से रहेगी.
• एक हेक्टेयर में दो तालाब निर्माण- इकाई लागत 8.88 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर.
• एक हेक्टेयर में चार तालाब निर्माण (इनपुट सहित)- इकाई लागत 7.32 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर.
• एक हेक्टेयर में एक तालाब निर्माण और भूमि विकास (इनपुट सहित)- इकाई लागत 9.69 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर.
• SC/ST/अति पिछड़ा वर्ग- 70%
• सामान्य किसान वर्ग- 50%
• उद्यमी आधारित परियोजना- 40%
इस योजना का एक और फायदा है, एकीकृत खेती मॉडल. किसान तालाब के चारों ओर बागवानी, कृषि और वानिकी को भी अपनाकर बहु-स्तरीय आय अर्जित कर सकते हैं. पहले से कई चौर क्षेत्रीय किसान इस मॉडल को अपनाकर दोगुनी से भी ज्यादा कमाई कर रहे हैं.
इस योजना का लाभ उठाने के लिए इच्छुक किसान और उद्यमी बिहार सरकार की वेबसाइट पर जाकर आवेदन कर सकते हैं. अप्लाई करने के लिए इस वेबसाइट पर जाएं या अपने जिला मत्स्य कार्यालय से संपर्क कर सकते हैं.
बिहार आज देश में मछली उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन चुका है. यहां की मछलियां अब अन्य राज्यों और विदेशों में भी भेजी जा रही हैं. सरकार की यह योजना मछली पालन को एक लघु उद्योग का रूप देकर गांवों में आर्थिक क्रांति ला सकती है.