देश के ज्यादातर राज्यों में बेसहारा और निराश्रित गोवंश किसानों और राहगीरों के लिए बड़ी समस्या पैदा करते रहे हैं. बेसहारा गोवंश आए दिन फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान होता है. मध्य प्रदेश में भी लगभग यही स्थिति है, लेकिन अब राज्य सरकार ने इस समस्या का स्थायी समाधान देते हुए सरकारी जमीन पर बड़ी गौशालाओं को बढ़ावा देकर पशुओं को आश्रय देने का ऐलान किया है. राज्य सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि प्रदेश में अब कामधेनु निवास यानी स्वावलंबी गौशालाएं बनाई जाएंगी. इनमें बड़ी संख्या में गौवंश को आश्रय दिया जाएगा और इनकी देखभाल की जाएगी.
बयान में कहा गया कि सरकार ने "मध्यप्रदेश राज्य में स्वावलंबी गौशालाएं (कामधेनु निवास) स्थापना की नीति 2025" को मंजूरी दी है. इस नीति के तहत ही राज्य में स्वावलंबी गौशालाएं बनाई जाएंगी. यहां स्वावलंबी गौशाला से राज्य सरकार का मतलब है कि इनमें गोपालन के साथ ही पंचगव्य निर्माण, बायोगैस, जैविक खाद, नस्ल सुधार, दुग्ध प्रसंस्करण, सौर ऊर्जा, बायोगैस जैसी कमर्शियल गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाएगा और इससे जो भी आय होगी, उससे पशुओं की देखभाल समेत गौशालाओं के अन्य विकास के काम होंगे.
कामधेनु निवास में गोवंश की कम से कम संख्या 5000 रखी गई है. वहीं, इनमें से 30 प्रतिशत गाय-गोवंश उन्नत दुधारू नस्ल की रखी जा सकेंगी. राज्य सरकार ने कहा है कि वह गौशाला संचालकों को अधिकतम 125 एकड़ सरकारी जमीन इस्तेमाल का अधिकार देगी. वहीं, इन गौशालाओं में गौवंश की संख्या 5000 से ज्यादा होने पर प्रति 1000 गौवंश पर 25 एकड़ अतिरिक्त सरकारी जमीन दी जाएगी.
बयान के मुताबिक, पशुपालन और डेयरी विभाग लैंड बैंक तैयार करेगा. गौशाला के लिए दी गई जमीन पशुपालन और डेयरी विभाग के स्वामित्व में रहेगी और विभाग की तरफ से मध्यप्रदेश गौ संवर्धन बोर्ड और गोपालक संस्था के बीच इस्तेमाल को लेकर काॅन्ट्रैक्ट बनाया जाएगा. भूमि अपनी मूलभूत अवस्था (जैसी है वैसी के आधार पर) उपलब्ध कराई जाएगी. वहीं जमीन पर विकास का काम गोपालक संस्था को करवाना होगा.
कामधेनु निवास बनाने के लिए कोई भी पंजीकृत संस्था- फर्म, ट्रस्ट, समिति, कंपनी या उनके संघ इस योजना का लाभ ले सकते हैं. संघ अधिकतम पांच संस्थाओं के लिए मान्य होगा, इससे ज्यादा संख्या वाले संघ को योजना का लाभ नहीं मिलेगा. बता दें कि अन्य कुछ राज्यों जैसे हरियाणा और राजस्थान में राज्य सरकारें किसानों के लिए ताड़बंदी (फेसिंग) योजना चलाती है, जिससे किसानों को अपनी फसल बचाने में मदद मिलती है.
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